15.09.2025

नमस्कार

हिन्दी माह, हिन्दी पखवाड़े, हिन्दी सप्ताह और हिन्दी दिवसों को मनाने वाले इस कालखण्ड में हमने हिन्दी गजलों के साथ उर्दू, संस्कृत, अवधी, ब्रजभाषा और राजस्थानी गजलों का भी समावेश किया है. शंका न हो इसलिए स्पष्ट कर दें कि हम केवल देवनागरी में लिखे होने के कारण किसी गजल को हिन्दी गजल नहीं मानते. अनेक आकर्षणों से सुसज्जित इस नवीनाद्यतन के साथ हम पुनः उपस्थित हैं. विभिन्न भाषाओं की स्वीकार्यसम्भाव्य एवं रुचिकर विविध विधाओं के प्रकाशन के लिए समर्पित वेबपोर्टल साहित्यम के सद्याद्यतन में निम्नलिखित कृतियों का समावेश किया गया है.

लघुकथा - आधे अधूरे - योगराज प्रभाकर

फोटो एलबम के पन्ने पलटते-पलटते एक पुरानी, धुँधली सी तस्वीर उभर आई। देखते ही आवाज़ आई, “नाना जी, ये घर हमारा ही है न? बँटवारे से पहले वाला?”

व्यंग्य - आचार्य अतरंगी - सुभाष काबरा

महाभारत का युद्ध जीतने के बाद एकदिन कृष्ण ने अर्जुन से कहा, ‘हे पार्थ! तुम अच्छे योद्धा हो. अब मुझसे गीता सुनने के बाद, विद्वान भी हो गये हो. मेरा मन है कि तुम आचार्य अतरंगी के पास जाओ और उन्हें शास्त्रार्थ में हरा कर आओ!’

संस्कृत गजल - वञ्चनारीतेःकृतं केन कदा सम्पादनम् – डॉ लक्ष्मीनारायण पाण्डेय

 

(संस्कृत गज्जलिका भावानुवाद सहिता)

 

वञ्चनारीतेःकृतं केन कदा सम्पादनम्

नीयते हृदयं समोदं दीयते सन्तापनम्

 

रीति यह किसने चलाई और कबसे बोल तो

मुस्कुराते दिल को लेकर भेंट करना पीर को

हिन्दी गजल - अविश्वास का कोई कारण नहीं - राजमूर्ति 'सौरभ

 


अविश्वास का कोई कारण नहीं

कभी बोलता झूठ दर्पण नहीं।

 

जो शंकालु है ही स्वभाव आपका,

तो इस रोग का है निवारण नहीं

हिन्दीगजल - इस बात को लेकर दुखी है इन दिनों अन्तःकरण - संजीव प्रभाकर

 


इस बात को लेकर दुखी है इन दिनों अन्तःकरण 

उसकी बहुत अवहेलना करने लगा है आचरण

 

गम्भीरता संलग्नता प्रतिबद्धता जिनमें नहीं

वे आजकल आदर्श हैंवे आजकल हैं उद्धरण

सिंहावलोकन ग़ज़ल - क्यों उनका मेयार जिऊँ - विज्ञान व्रत

 


क्यों   उनका   मेयार    जिऊँ 

मैं   अपना   किरदार    जिऊँ

 

मैं   अपना    किरदार   जिऊँ

जीने    के    आसार     जिऊँ

कविता - चकोर - रेखा बब्बल

 


क्यों माँ

क्या बातें कर रहे थे

पापा,चाचा और दादी ?

क्या जन्म लेने से पहले ही

कविता - दो पाटन के बीच - सन्ध्या यादव

 

दो पाटन के बीच...

वो औरतें जो जबरदस्ती

घर में घुस आयीं घुसपैठियों की तरह

" मैं तुलसी तेरे आंगन की तर्ज पर "

उन औरतों को सबसे मिली उपेक्षा

उनका दावा था इस उपेक्षा की चादर को

नवगीत - चुप रहे तुम - सीमा अग्रवाल

 

 

 चुप रहे तुम

वक़्त था जब बोलने का

अब तुम्हारी

चीख का हम क्या करेंगे

ब्रजगजल - कौनसी बातन पै इतरायौ भयौ ऐ - उर्मिला माधव

 

कौनसी बातन पै इतरायौ भयौ ऐ 

बाबरौ इनसान भरमायौ भयौ ऐ

 

हाऊँ-फाऊँ कर रह्यौ ऐ चार लँग कूँ

झूठ की दुनिया पै बौरायौ भयौ ऐ

अवधी गजल - बदला बहुत जबाना ,अबहीं कहब त कहब्या - राजमुर्ति सौरभ

 


बदला बहुत जबाना, अबहीं कहब त कहब्या

केउ का न कुछ ठेकाना, अबहीं कहब त कहब्या

 

एतनी उमिर क बाटीं अब्बउ ठसक उहइ बा

बूढ़ा चलइँ उताना,अबहीं कहब त कहब्या

राजस्थानी गजल - दिन दोपारै रात अठै - राजेन्द्र स्वर्णकार

 


दिन दोपारै रात अठै ! 

सौ-सौ झंझावात अठै !

 

घात पछै पड़घात अठै !

किण सूं करलां बात अठै !

ગુજરાતી ગઝલ - થોડું મોં પર હાસ્ય ધરો તો સારું લાગે, રક્ષા શાહ

 


થોડું મોં પર હાસ્ય ધરો તો સારું લાગે

અમને તો બિરયાની પર કાજુ લાગે.

 

અંગત બાબતના ઉત્તર સાચા ના આપ્યાં,

એનું જીવન અઘરું એક પલાખું લાગે.

मराठी गझल - खूपच हलके वाटत आहे आता आयुष्या - गोविंद नाईक

 


खूपच हलके वाटत आहे आता आयुष्या 

(काढलास तू नक्की कुठला काटा आयुष्या?)

 

बघतो आहे नवीन घर आता माझ्यासाठी

तुला किती लागणार आहे जागा आयुष्या

ग़ज़ल - शाम ए हिज्र, पुरवाई, और फिर ये तन्हाई - रेखा किंगर 'रौशनी'

 

शाम ए हिज्र,  पुरवाईऔर फिर ये तन्हाई 

जान ओ दिल पे बन आई और फिर ये तन्हाई

 

वक़्त ने ली अँगड़ाई, और फिर ये तन्हाई

हो न जाये रुस्वाई, और फिर ये तन्हाई

नज़्म - सोशल मीडिया - मुमताज़ अज़ीज़ नाज़ाँ

 


सुनो ऐ हमनवा मेरी

तिजारत का ज़माना है

यहाँ हर ख़ास दिन ब्यौपार का इक आम हिस्सा है

वगरना इस ज़माने में 

मोहब्बत कौन करता है

कहानी - खोटा नसीब - रचना निर्मल

मम्मी…. मम्मी... पापा कहां है। बैठे होंगे अपने पियक्कड़ दोस्तों के बीच। क्या हुआ? कमला ने पूछा।मम्मी तुम्हारा लाडला राकेश हरिद्वार के अस्पताल में भर्ती है उसके दोस्त का फोन आया है। यह कब गया? कौन से पाप धोने गया है? कमला धीरे से बोली बेटा

1 सितम्बर 2025

नमस्कार

गणपति महोत्सव की ढेर सारी बधाइयाँ. विगताद्यतन को आप सभी से मिले उत्साहवर्धक प्रतिसाद से प्रेरित हो कर हम नवीनाद्यतन के साथ पुनः उपस्थित हैं. विभिन्न भाषाओं की स्वीकार्यसम्भाव्य एवं रुचिकर विविध विधाओं के प्रकाशन के लिए समर्पित वेबपोर्टल साहित्यम के सद्याद्यतन में निम्नलिखित कृतियों का समावेश किया गया है.

गणेश वन्दना - हे गणनायक, सिद्धिविनायक हम पर कृपा करो - राजीव मिश्र ‘मधुकर’


हे गणनायकसिद्धिविनायक 

हम पर कृपा करो

गजाननमेरे विघ्न हरो

गजाननमेरे विघ्न हरो

नज़्म - ख़त लिखा चाहत के साथ - गुलशन मदान

 

ख़त लिखा चाहत के साथ 

लेकिन कुछ शिद्दत के साथ

 

मां की हालत भी पतली है

बापू की हालत के साथ

ग़ज़ल - तेरे होते हुए तेरी कमी में - पूजा भाटिया

 


तेरे होते हुए तेरी कमी में 

कहूँ क्या लुत्फ़ क्या था तिश्नगी में 

 

करेंगे याद साअत हिज्र की हम

बजेगा एक अब जब भी घड़ी में

मराठी गझल - डाग कुणाला लागत नाही कुठल्याही बेमानीचा - चन्द्रशेखर सानेकर

 

डाग कुणाला लागत नाही कुठल्याही बेमानीचा 

आजकालचे जगणे म्हणजे धंदा हातचलाखीचा

 

काही प्रेषित शांतीसाठी चर्चा करायला गेले

येउ घातला आहे म्हणजे भीषण काळ लढाईचा

ब्रजगजल - लिखूँ मनमीत कूँ पाती - पूनम शर्मा 'पूर्णिमा'

 


लिखूँ  मनमीत  कूँ  पाती 

करूँ का, लाज हू आती 

 

करेजा  चीरि  लिख  देती

पते बिनु, कौन घर जाती

ગુજરાતી ગઝલ - પથ્થર ને દેવ માની, બહુધા નમી ગયો છું - ચેતન ફ્રેમવાલા

 


પથ્થર ને દેવ માનીબહુધા નમી ગયો છું . 

લઈ રામ નામ દિલથી, સાચે તરી ગયો છું 

 

એવું નથી ઈશ્વર આજે ડરી ગયો છું

વ્યથાઓ વ્યક્ત કરતાં, હા! કરગરી ગયો છું

कविता - रहे रेडियो के हम श्रोता, बड़े प्रेम से सुनते थे - अटल राम चतुर्वेदी

 


रहे रेडियो के हम श्रोताबड़े प्रेम से सुनते थे 

फिल्मी गीतों को सुन-सुन कर, स्वर्णिम सपने बुनते थे 

रहे रेडियो के हम श्रोता, बड़े प्रेम से सुनते थे

गीत - इक दिन तुम पर गीत लिखूंगा - अशोक अग्रवाल 'नूर'

 


इक दिन तुम पर गीत लिखूंगा

तुमको  मन का मीत  लिखूंगा

 

सांसें   बंसी   की पुरवाई 

तन में  मुरकी की  अंगड़ाई

पग-पग में ज्यों  बजे पखावज

स्वर  खां  साहब  की  शहनाई

व्यंग्य - शादी के मौसम में भूषण के छंद - अरुणेन्द्र नाथ वर्मा


शादी की मौसम गर्माया हुआ है. बैंड-बाजा-बारात के धंधे के आगे अन्य हर धंधा मंदा पड़ गया है. शहर की सडकों पर बारातियों के झुंड के झुंड टिड्डी दल की तरह उमड़ पड़े हैं. गलियों के ऊपर शामियाने तने हुए हैं. बारातों से अवरुद्ध सड़कें ज़ुकाम के प्रकोप से बंद नाक की तरह न अनुलोम के लायक रह गई हैं ना विलोम के. घंटों पहले घर से निकली गृहस्वामिनी

ग़ज़ल - मेरे फ़र्दा में बड़ी दूर तलक बनती है - नवीन जोशी नवा



मेरे फ़र्दा में बड़ी दूर तलक बनती है

मेरी बीनाई से कोहरे की सड़क बनती है 

 

पहले मिट्टी से बनाती है पसीना मेहनत

फिर पसीने से ही मिट्टी में महक बनती है

ग़ज़ल - हुनर किसीको जीने का सिखा रही है ज़िन्दगी - ताज मोहम्मद सिद्दीक़ी

 


हुनर किसीको जीने का सिखा रही है ज़िन्दगी 

कहीं किसी को ख़ाक में मिला रही है ज़िन्दगी 

 

मसर्रतों  से भी  कभी तो  रू -ब -रू  करे हमें

फक़त हसीन ख़्वाब क्यों दिखा रही है ज़िन्दगी

ग़ज़ल - ख़ुशबू है सहमी सहमी सी, गुल भी उदास है - देवमणि पाण्डेय

 


ख़ुशबू है सहमी सहमी सीगुल भी उदास है 

गुम है किसी ख़याल में लड़की उदास है

 

दो चार पल ठहर के जो बादल चले गए

बारिश के इंतज़ार में मिट्टी उदास है

नवगीत - कितना काम किया कितना है और बचा - सीमा अग्रवाल

 


कितना काम किया

कितना है और बचा

छोड़ छोड़

आ जा आ

थोड़ा बतिया लें