01.12.2025

नमस्कार.

ठिठुराने वाली ठण्ड तो अभी दूर है मगर हाँ गर्मागर्म गाजर के हलवे और आलू के पराठों की याद दिलाने वाला मौसम अवश्य आ चूका है. आप में से अनेक लोग इनका स्वाद ले भी चुके होंगे. आइये अगले अद्यतन का आनन्द लिया जाए.

कहानी - चीनी की स्वीटी और लाटसाहब – रेखा बब्बल

यक़ीन ही नहीं होता कि चीनी और स्वीटी को दस बरस हो गए इस घर में आए। सामने डटे हुए सोफ़े को तो शायद पंद्रह या बीस साल हो गए होंगे। 

कविता – मन का टूटना – हृदयेश मयंक

 


डाल से टूट कर

बिछुड़ते हुए पत्तों को देखा है

टूटती हुई डालियाँ चरमराती हुईं टूटती हैं

एक इन्सान को टूटते हुए देखना बड़ा भयानक होता है

कविता – खिड़की भर दुनिया - डॉ कनक लता तिवारी


खिड़की भर दुनिया

अस्पताल की खिड़की से

दुनिया कुछ अलग दिखती है—

यहाँ समय की चाल धीमी,

पर बाहर ज़िंदगी तेज़ भागती है।

दोहे - विवेक मिश्र


सियानाथ रघुकुल तिलककृपासिंधु प्रभु आप

करो  दूर   बाधा  सभी,    मिट जाए    संताप

नवगीत - सोच रहा सुधुआ - राम निहोर तिवारी


सोच रहा सुधुआ

धरती भूले आसमान में

ठहरे नेताजी.

सुविधाओं के लहरताल में

लहरे नेता जी.के

तज़मीनी (मुख़म्मस) ग़ज़ल – सत्यवान सत्य

 


माना कि तुझसा है नहीं तैराक यार देख

इस फील्ड में है तू बड़ा ही होनहार देख

लेकिन ज़माने पर नहीं है एतबार देख

ग़ज़ल - हमारी नज़्म को तब इक नई हयात मिली – मयंक अवस्थी

 


हमारी नज़्म को तब इक नई हयात मिली

तुम्हारे हिज्र में जब रतजगे की रात मिली

व्यंग्य - आम आदमी और मसीहा – कमलेश पाण्डेय

वो भी एक आम आदमी ही हैइसमें संदेह की कोई गुंजाईश नहीं दिखती।  इस वजह के अलावा कि सीजन के सबसे आम फल आम को वो खूब पसंद करता हैऔर अपने परिवेश में शक्तिशाली व्यक्ति या संस्थाओं को खुद इसी रसीले फल सरीखा नज़र आता है, कुछ और तथ्य भी हैं जो उसे आम सिद्ध करते हैं।  

ग़ज़ल - रक्खा जमा के पाँव फिसलने नहीं दिया - निरुपमा चतुर्वेदी 'रूपम'

 


रक्खा जमा के पाँव फिसलने नहीं दिया

जो तय किया फिर उसको बदलने नहीं दिया

ग़ज़ल - हर बात की है आपको उजलत मेरे हुज़ूर विकास जोशी ‘वाहिद’

 


हर बात की है आपको उजलत मेरे हुज़ूर

मरने के बाद मिलती है जन्नत मेरे हुज़ूर

ग़ज़ल - देख चाहत से न यूँ देखने वाले मुझको - सिद्धार्थ शाण्डिल्य


देख चाहत से न यूँ देखने वाले मुझको

ये करम तेरा कहीं मार न डाले मुझको

ग़ज़ल - मै ऊबता हूँ न क़िस्से को और लम्बा खींच – सुभाष पाठक ‘ज़िया’

 


मै ऊबता हूँ न क़िस्से को और लम्बा खींच

अगर है हाथ में डोरी तो फिर ये पर्दा खींच

ग़ज़ल - दूर हो माँ बाप से तो ज़िन्दगी किस काम की - तनोज दाधीचि


दूर हो माँ बाप से तो ज़िन्दगी किस काम की 

सुख नहीं परिवार का तो नौकरी किस काम की

ग़ज़ल - ज़रा सी बात पर रूठा हुआ है – माधवी शंकर

 


ज़रा सी बात पर रूठा हुआ है

अना इस बार उसका मस’अला है

नज़्म - मेरी माँ - अजय सहाब

 


ये मेरी माँ जो चला करती है लाठी लेकर

चाल में इसकी भी हिरनी सी लचक थी पहले

जिस्म से इसके अब आती है दवाओं की महक

जिस्म में इसके भी सन्दल सी महक थी पहले

नज़्म - सारिफ़ीयत (कंज्यूमरिज्म) – शाहिद लतीफ़

 


चराग़दान था, कन्दील थी, सुराही थी
दुलाईयाँ थीं, रजाई थी, चारपाई थी
एक इत्रदान था, एक पानदान, एक गुलदान
एक आफ़ताबा, नमकदान, एक दस्तर-ख़्वान

एक नज़्म़ पूना शहर के नाम – उद्धव महाजन ‘बिस्मिल’

 


इस जहाँ के सारे शहरों में बडा़ जाँबाज़ है,

तेरी ये तारीख़ सुनकर होता ये दिलसाज़ है,

हर हुनरवाले बशर पे होता  हमको नाज़ है,

सुन के शोहरत के फसाने होता ये दिलसाज़ है!

लघुकथा - आँसुओं की भाषावली - योगराज प्रभाकर

विद्यालय के बाहर एक लड़का अक्सर अकेला बैठा मिलता था। उसकी निगाहें उन चेहरों पर होतीं जो उस बरामदे से गुज़रते समय रो चुके होते। वह कुछ नहीं पूछता था। 

लघुकथा - माँ - अनिल शूर ‘आज़ाद’

रात्रि साढ़े दस बजे उसकी हरिद्वार की ट्रेन थी। निर्धारित कार्यक्रमानुसार उसने श्मशान-भूमि के विशेष कक्ष में रखी माँ की अस्थियाँ लीं और वहीं से सीधे स्टेशन पहुँचा। 

एक हरियाणवी रागिनी किस्सा मदनसेन चन्दकिरण - शिवचरण शर्मा 'मुज़्तर'

 

उमर जवान चमक चेहरे पै शान शकल का सूणा हे।

चंद किरण तेरी झांकी नीचै बाबा लारया धूणा हे।

बालगीत - बिल्ली बोली शेर बनूँगी - आशा पाण्डेय ओझा 'आशा'

 


बिल्ली बोली शेर  बनूँगी

बिना किए कुछ देर बनूँगी

भोजपुरी नवगीत - नवका साल के नवगीत – सौरभ पाण्डेय


 

कवनो कोसिस बढ़ि जाये के

रुकल त नइखे

मनवा भलहीं

लसरल लउकल

झुकल त नइखे

संस्कृत गजल - चिन्त्यते यन्नो तथा संजायते – डॉ. लक्ष्मी नारायण पाण्डेय

 


चिन्त्यते यन्नो तथा संजायते

किं विधातुर्वामता लोलायते

हिन्दी गजल - तपन पीता हूँ मैं सबकी अगन की - अशोक अग्रवाल 'नूर'


तपन पीता हूँ मैं सबकी अगन की 

नई है रीत मेरी आचमन की

हिंदीगजल - कितना भी कोई घर को भरे जोड़-तोड़ कर - डॉक्टर दमयंती शर्मा 'दीपा'

 


कितना भी कोई घर को भरे जोड़-तोड़ कर

निश्चय ही सब को जाना है सर्वस्व छोड़ कर

अवधी गजल - हँसी हँसारत करावा जनि तू, करै लगे बतकही जमाना - राजीव मिश्र 'मधुकर'

 


हँसी हँसारत करावा जनि तूकरै लगे बतकही जमाना

घरे के बतिया गईल जो बहरे बिछाये बइठल दरी जमाना

अवधी गजल - धरा धीर सूरज निकरबइ करे - राजमूर्ति 'सौरभ'

 


धरा धीर सूरज निकरबइ करे

दुखे कइ ई रतिया गुजरबइ करे

ગુજરાતી ગઝલ - જીવવાનું મૂલ્ય બહુ વરવુ પડ્યું, - ડૉ પ્રણય વાઘેલા

 


જીવવાનું મૂલ્ય બહુ વરવુ પડ્યું,

જે ન'તું કરવું, બધું કરવું પડ્યું.

ગુજરાતી ગઝલ – હું લાગુ છું સદાચારી – રાજેશ હિંગુ

 

હું લાગુ છું સદાચારી?

કરી લઉં છું અદાકારી!

मराठी गझल - मनातले बोलला थेट तर काय करावे - शिल्पा देशपांडे’


मनातले बोलला थेट तर काय करावे

झाले मी जर चेकमेट तर काय करावे

समीक्षा - चाँद अब हरा हो गया है (के पी अनमोल एवं अनामिका कनौजिया 'प्रतीक्षा' का अनूठा कविता संग्रह)

समकालीन हिन्दी काव्य में युगल-स्वर या संवाद-आधारित काव्य-संरचना अत्यंत विरल है। “चाँद अब हरा हो गया है”—अनामिका कनौजिया ‘प्रतीक्षा’ और के.पी. अनमोल का संयुक्त काव्य-संग्रह—इस दृष्टि से हिन्दी में एक विशिष्ट और उल्लेखनीय प्रयोग के रूप में सामने आता है। 

साहित्यम् के साथी - नीरज गोस्वामी जी

सोश्यल मिडिया ने जिन अद्भुत और अनूठे व्यक्तियों से परिचित करवाया आप उनमें से एक हैं. एक ऐसा व्यक्तित्व जिसमें सहजता, संवेदना, साहित्य और मानवता की चारों दिशाएँ एक साथ मिलकर एक पूर्ण वृत्त का निर्माण करती हैं. 

ब्रजगजल - चौं तुम झूठी रार करौ हौ – भरतदीप माथुर

 


चौं   तुम   झूठी रार करौ हौ

हमैं  पतौ  है   प्यार करौ हौ

 

खुस है रयै हो घाटो खायकैं

जे    कैसो  ब्योपार करौ हौ

 

हम  काँटन्नैं  फूल  करैं    हैं

तुम    फूलन्नैं  हार  करौ हौ

 

या  ठगनी   माया   के पीछे

चौं  जूतम - पैजार  करौ हौ

 

जो तुमकूँ ध्यावे तुम वा की

जीवन   नैया  पार  करौ हौ

 

जनता  भूकी  है  राजा जी

तुम छिक कें ज्यौनार करौ हौ

 

वा’ जी कलम के चलवैया’औ

'दीप' बिना उजियार करौ हौ

01.11.2025


नमस्कार

 

पर्वों के गुलिस्तान हिन्दुस्तान के कहने ही क्या. एक के बाद एक उत्सवों का आनन्द ले रहे हैं हम लोग. सभी उत्सवों की सभी साहित्यानुरागियों को ढेर सारी बधाइयाँ. उत्तरोत्तर अपने गन्तव्य की दिशा में अग्रगामी वेबपोर्टल साहित्यम के वर्तमानाद्यातन के साथ हम पुनः उपस्थित हैं. 

एक रोचक दास्तान - वाक़ई 'नाम चलने लग गया'

एक बात बहुत अधिक सुनने में आती थी कि बड़े प्रोग्राम्स को छोड़ दें तो लोग टिकट लेकर सनीमा तो देख सकते हैं मगर किसी कवि को सुनने नहीं जाते. 

शायरी आज भी कंटेंट नहीं आर्ट ही है

इस बात में कोई दो राय नहीं कि सोश्यल मीडिया की इस अन्धी दौड़ में और विशेषकर बुलेट ट्रेन की स्पीड में दौड़ती रीलों वाले इस दौर में शायरी नयी चुनौतियों से जूझ रही है.

नस्ल-ए-नौ भारत - जेन नेक्स्ट ऑफ शायरी 2025

पिछले कुछ वर्षों में मुंबई महानगरी में  शाइरी की लोकप्रियता में बहुत अधिक उठान आया है। इसका श्रेय जिन संस्थाओं के अथक प्रयासों को दिया जाता है उनमें इंशाद फाउंडेशन एक प्रमुख नाम बन कर उभरा है। 

राष्ट्रीय कवि संगम की महाराष्ट्र इकाई का पुनर्गठन

राष्ट्र जागरण धर्म हमारा के ध्येय वाक्य के अनुसार लेखनी का उत्तरदायित्व राष्ट्र के प्रति सकारात्मक और राष्ट्रवादी विचारों का जन जन में अलख जगाना कवियों का पवित्र कार्य रहा है। इसी उद्देश्य हेतु राष्ट्रीय कवि संगम का गठन किया गया तथा इसका प्रथम अधिवेशन दिल्ली में रखा गया। 

कविता - अपनी सीमा तय करते लोग - रीता दास राम

 


हमारे समय के लोग

बातें करते हैं, बातें करते रहते है, तब तक

जब तक बातें की जा सकें

कविता - प्रेम - सन्ध्या यादव


प्रेम ...

1)अपनी बेकारी के दिनों में

एक लोहे का कड़ा खरीद 

दिया था उसने जन्मदिन पर

आज भी सोने के कंगन

के साथ पहनती हूँ

"मंदिर का चढ़ावा है " पूछने पर

सवैया छन्द - गोपाल प्रसाद गोप

 


कविता की निराली है जाति घनी कवि के अधरान हँसै कविता।

कविता जु उमंग रहै हित सौं प्रिय के हिय माँहिं बसै कविता।

कविता इक प्रेम कौ आश्रय है, बिरहीन के नैन खसै कविता।

कविता कहूँ मंचन पै ठुमकै जु अमीरन कैं बिलसै कविता।

घनाक्षरी छन्द - आयुष चराग़

 


पर्णकुटी में तुम्हें न पाया जिस क्षण सीते!

उस क्षण से तुम्हीं को पाया कण कण में।

शब्दशः मन बसी छवि को उतार दिया

वन वासियों को दिये हुए विवरण में।

दोहे - यशपाल सिंह 'यश'

 

ऊपर अंबर मौन है, नीचे धरती शांत।

मोबाइल में ढूँढ़ता, पागल मन विश्रांत।।

गीत - आवरण मन के सारे हटा दीजिए – डॉ. राखी कटियार

 


आवरण मन के सारे हटा दीजिए

आवरण युक्त मन मिल सकेंगे नहीं

बाग़ सम्वेदना के लगेंगे  मगर

प्यार के फूल तो खिल सकेंगे नहीं