भोजपुरी नवगीत - नवका साल के नवगीत – सौरभ पाण्डेय


 

कवनो कोसिस बढ़ि जाये के

रुकल त नइखे

मनवा भलहीं

लसरल लउकल

झुकल त नइखे

नवका सूरुज

धमक बनावत

आस जगावत आइल बाटे

’का का सोचल का हासिल बा..’

के फरियावत आइल बाटे

दरद-पीर के भाव नरम बा

चुकल त नइखे

 

हमनीं के बस ईहे हासिल

थथमत काया सोच पिराता

जीतल-हारल अपने कपरे

भागि कहाँ के, कवन बिधाता

थुरा-पिटाइल ठाढ़ भइल तन

झुरल त नइखे

 

मेड़े-मेड़े खेत भाव में

देखत गइनीं पाला मारल

उहे हवा अब तिरछे छुवलस

बउराइल बा मनवा पागल

अकुताही के मौसम में

मन बुड़ल त नइखे

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