ग़ज़ल - ज़रा सी बात पर रूठा हुआ है – माधवी शंकर

 


ज़रा सी बात पर रूठा हुआ है

अना इस बार उसका मस’अला है

मिले हैं प्यार में पहले भी धोखे

मगर ये तज्रबा बिल्कुल नया है

 

किधर जाएँ कई रस्ते खुले हैं

हमें तो इल्म ने भटका दिया है”

 

तअर्रुफ़ इश्क़ से पहले हुआ था

ख़ुदा से रब्त उसके बाद का है

 

क़रीने से सजा रक्खा है घर को

मगर ये अंदरूँ बिखरा पड़ा है

 

उसे कुछ ख़ास कहना हो तो मुझसे

झगड़ने के बहाने ढूँढता है

 

बदलते वक़्त में बदला है ख़ुद को

ये मुश्किल काम हमने ख़ुद किया है

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