दोहे - विवेक मिश्र


सियानाथ रघुकुल तिलककृपासिंधु प्रभु आप

करो  दूर   बाधा  सभी,    मिट जाए    संताप

जीवन  के  संग्राम में हूँ  बेबस  मजबूर 

कृपासिंधु अब कीजिये, हर बाधा को दूर

 

हर लेंगे  संताप सबदिल में  रखिये  नाम

जनकसुता जय जानकी,जय रघुनंदन राम

 

जगत  नियंता आप ही,   जग  के  पालनहार

कृपा सिंधु हर लीजिये, मन के सकल विकार

 

महादेव अब कीजिये, मंगल धवल प्रभात

कब तक आखिर यूँ रहे, संशय में हर रात

 

बीच भँवर मल्लाह ने, खड़े कर दिये हाथ

आकर हमें  उबारियेदीनबंधु  रघुनाथ

 

अब मर्जी ले जाइए, चाहे भी  जिस ओर

नाथ! आपके हाथ में, सौंप चुका मैं डोर

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