सोश्यल मिडिया ने जिन अद्भुत और अनूठे व्यक्तियों से परिचित करवाया आप उनमें से एक हैं. एक ऐसा व्यक्तित्व जिसमें सहजता, संवेदना, साहित्य और मानवता की चारों दिशाएँ एक साथ मिलकर एक पूर्ण वृत्त का निर्माण करती हैं.
आप उन दुर्लभ व्यक्तियों में से हैं जिनके भीतर कला-प्रेम और परोपकार भिन्न समानांतर ध्रुवों की तरह नहीं, बल्कि परस्पर घुले मिले हुए हैं. आपका जीवन किसी सुवासित दीपस्तम्भ की तरह है. आप जितने प्रकाशवंत हैं उतने ही उष्मावंत भी हैं. यही कारण है कि आप जहाँ भी जाते हैं, वहाँ वातावरण कुछ अधिक सौम्य, कुछ अधिक आत्मीय और कुछ अधिक मानवीय हो उठता है.
आप
अपने ब्लॉग “डाली मोंगरे की” के माध्यम से अब तक सैंकड़ों पुस्तक-समीक्षाएँ प्रस्तुत
कर चुके हैं. आपकी इस साहित्यसेवा ने अनेक गुदड़ी के लालों को वैश्विक साहित्य-पटल
पर प्रस्तुत किया है. आपका ब्लॉग न केवल भारत के दूर दराज इलाकों बल्कि दुनिया के अनेक देशों के साहित्य
प्रेमियों की साहित्यिक-पिपासा को शांत करता रहा है. समीक्षाओं के प्रति आपकी निष्ठा, सूक्ष्म दृष्टि और पाठकीय जिम्मेदारी आपको
भीड़ से अलग पहचान देती है. आपकी दृष्टि में लेखक के भाव-लोक का संवेदनात्मक
अन्वेषण समाहित होता है. इसीलिए पाठक आपके द्वारा प्रस्तुत समीक्षाओं में आत्मीयता
और बौद्धिक पारदर्शिता की अनुभूति करते हैं. साहित्य के प्रति यह प्रतिबद्धता ललितकलाओं
में आपकी गहरी रुचि की परिचायक है.
आपका शायराना मिज़ाज आपसे मिलने आने वाले हर व्यक्ति पर प्रभाव डालता है. आपकी प्रसिद्ध नज़्म “करें जब पाँव ख़ुद नर्तन समझ लेना कि होली है” न केवल भारत बल्कि जहाँ-जहाँ भारत बसता है और रंगरंगीला होली का भारतीय त्यौहार मनाया जाता है; वहाँ वहाँ इस नज़्म को पढ़ा गया, शेयर किया गया और कुछ लोगों ने तो इसे गाया भी. इस नज़्म के वायरल होने का आलम ऐसा रहा कि लोगों ने इसे गोपालदास नीरज जी की कविता मान लिया. आज भी यदि गूगल पर इस नज़्म को सर्च किया जाए तो गूगल बाबा इसे गोपालदास नीरज जी की कविता बता कर परोस देते हैं. ऐसी अप्रत्याशित और अनपेक्षित घटना पर भी आप ने कोई हो-हल्ला या तमाशा नहीं किया बस कुछ मित्रों तक यह बात पहुंचा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान ली जोकि आप की सहजता और सरलता का द्योतक है.
रंगमंच
से जुड़ाव ने आपके व्यक्तित्व में एक अतिरिक्त रचनात्मक ऊर्जा का संचार किया है.
मंच ने आपको मनुष्य, व्यवहार और
भावनाओं के बहुरंगी आयामों को समीप से देखने-समझने का अवसर दिया. यही रंगमंचीय
अनुभव आपकी भाषा में सजीवता, संवादों में आत्मीयता और व्यक्तित्व
में सहज मिलनसारिता के रूप में अनुवादित होता रहता है.
ऐसा
विरला ही देखने को मिलता है कि किसी अधिकारी के बारे में उसके मातहत बड़ी आत्मीयता
और सम्मान से बात करते हों. आपके परिचितों का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारी के
रूप में आपका कार्यकाल भी कम प्रशंसनीय नहीं रहा. पद आपकी पहचान नहीं बना, बल्कि आपके आचरण और कर्तव्यनिष्ठा ने पद को
गरिमा प्रदान की. अपने अधीनस्थों को पहले ‘मनुष्य’ और फिर ‘कर्मचारी’ मानने का
आपका स्वभाव सहज ही आपकी सफलता की कुंजी सिद्ध हुआ.
साहित्य
से पहले कारोबार और उससे भी पहले समाज-परिवार आपका मूलमंत्र सहज ही दृष्टव्य होता है. अपने कर्तव्यों, व्यस्तताओं
और रचनात्मक गतिविधियों के बीच घर-परिवार-समाज को प्राथमिकता देना आपके जीवन का अनुपम संतुलन
है. इसी तरह बच्चों के साथ बच्चों की तरह व्यवहार रखते हुए आपने सिद्ध किया कि उम्र केवल शरीर की होती है,
मन की नहीं. बच्चों के प्रति यह अपनापन एक विलक्षण तत्व है,
जो आपके स्वभाव को सम्मोहक बनाता है.
आपके परिचितों का कहना है कि परोपकार आपके जीवन का सबसे उज्ज्वल पक्ष है. आप किसी की मदद करने से
पहले उसके योग्य-अयोग्य होने की कसौटी नहीं पूछते. आपके अनुसार सहायता का आधार
‘मानवीयता’ है न कि ‘स्वार्थ’ या ‘अपेक्षा’. शायद यही कारण है कि आपके जीवन में शत्रुता जैसी
कोई जगह नहीं बन पाई. यह भी दृष्टव्य है कि आप विवादों के नहीं, समाधान के पक्षधर हैं; कटुता के नहीं, संवाद के संवाहक हैं।
साहित्य, शायरी, रंगमंच और
समीक्षा—ये चारों आयाम मिलकर आपके बहुआयामी व्यक्तित्व का सृजन करते हैं. आप
केवल लेखक या समीक्षक नहीं; बल्कि पाठकों, लेखकों, मित्रों और परिचितों के बीच एक पुल की तरह
हैं, जो अन्तर्मनों को जोड़ता है, संवाद का
परिवेश बनाता है और सृजन को प्रोत्साहित करता है.
आपके
जीवन में ऊर्जा एक अनिवार्य तत्व है, जिसे आप प्रतिदिन गढ़ते, जीते और बाँटते हैं. उम्र के इस पड़ाव पर
भी सीखने की ललक आपके भीतर उसी तरह जीवित है जैसे किसी नवयुवक के भीतर. यह ललक आपको
निरंतर सक्रिय रखती है, चाहे वह नई पुस्तकें पढ़ना हो, नई
विधाओं में समझ विकसित करना हो या समाज और साहित्य की नई धाराओं से स्वयं को
जोड़ना हो.
हमें यह स्वीकार करते हुए अत्यन्त ही प्रसन्नता एवं गौरव की अनुभूति हो रही है कि इस वेबपोर्टल साहित्यम् (पूर्व में ठाले बैठे, समस्या पूर्ति आदि नामों से प्रसिद्द) को आपका स्नेह और सहयोग अनेक वर्षो से निरन्तर प्राप्त होता रहा है. आभार कहना बहुत ही छोटा शब्द होगा फिर भी यह अनिवार्य है कि हम आपका आभार व्यक्त करें. थेंक यु वैरी मच बड़े भैया.

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