एक नज़्म़ पूना शहर के नाम – उद्धव महाजन ‘बिस्मिल’

 


इस जहाँ के सारे शहरों में बडा़ जाँबाज़ है,

तेरी ये तारीख़ सुनकर होता ये दिलसाज़ है,

हर हुनरवाले बशर पे होता  हमको नाज़ है,

सुन के शोहरत के फसाने होता ये दिलसाज़ है!

जाने तुझमें कितने ही फनकार पस-अंदाज़ हैं,

धारिया, भिमसेन के होते यहाँ एजा़ज़ हैं,

कारनामों पे ही उनके होता हमको नाज़ है.

जाने कितने ही मुसव्विर और नगीना साज़ हैं!

 

वीरता से आज चाफेकर की तू पहचान है,

ज्योतिबाजी फूले ने इसकी बढा़ई शान है,

बाजी शिवबा ही से इसकी आज भी पहचान है,

ये ज़मीं इल्मो अदब की जो हमारी जान है!

 

हरतरह के फ़न से यारो ये ज़मीं मशहूर है,

अपने अपने फन में देखो हर कोई मसरूर है,

कौन कहता दिल हमारा सरहदों से दूर है,

नज़रे बद से कोई देखे किसमें ये मक़दूर है!

 

वीर नाईक,और लहूजी ने बढा़ई शान है,

ज्योति ,सावित्री,रमा से इल्म की पहचान है,

फ़ातिमा ने भी तो इस मक़सद में डाली जान है,

गोरे,एस एम ने बढाई ख़ूब इसकी शान है!

 

काकासाहब गाडगिल से आज भी तो शान है,

कर्वे ,तीलक से हमारी आज भी पहचान है,

साठे आण्णा भी अदब की तो यहाँ की जान हैं,

सिंधुताई से हमारे जाग उठे अरमान हैं!

 

गिर्द इसके पेड़ पौधों,झील झरनों का जमाल,

फिरभी हमको खौ़फ़ है,अफसोस है और है मलाल,

आज फिर ताजा़ हवा का उठ रहा है ये सवाल,

अब न रंगीनी ए मग़रीब सिर्फ़ है बादे-ज़वाल!

 

उर्दू,हिंदी, और मराठी के रिसाले हैं यहाँ,

कितने ही मंदीर मस्जिद और शिवाले हैं यहाँ,

ताना जैसे भी बहादुर और जियाले हैं यहाँ,

हर तरह की महफिलों वाले उजाले हैं यहाँ!

 

खूबसूरत बस्तियाँ हैं दूर सरसाती हुईं,

घूमती हैं आरजू़एँ पीर दरसाती हुईं,

दामने गुलजा़र पर हैं प्यार बरसाती हुईं,

सीना ए कोहसार पर ये रंग बरसाती हुईं!

 

माजी़ को ताजा़ किया है आज देखो शहर ने,

इस तरह से तीरगी को है मिटाया शहर ने,

कारवाँ ये वक़्त का जो चल रहा हैं अब यहाँ,

हर तरफ इक खूबसूरत सा नजा़रा है यहाँ!

 

कुछ समझ आता नहीं के अब मैं तुझसे क्या कहूँ,

छोड़कर मैं तेरा दामन दूर अब कैसे रहूँ,

तू अमानत है वतन की और मेरी जान है,

इसलिए ऐ शहरे पूना तुझ पे दिल कु़रबान है!

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