रक्खा जमा के पाँव फिसलने
नहीं दिया
जो तय किया फिर उसको बदलने नहीं दिया
आती भी कैसे आँच अना-ओ-वक़ार
पर
किरदार हम ने अपना पिघलने
नहीं दिया
तेरी जफ़ा का ज़िन्दगी अहसास
था हमें
अरमां कोई भी दिल में मचलने
नहीं दिया
बदले हज़ार रास्ते मंज़िल की
चाह में
चलते रहे जुनून को ढलने नहीं
दिया
क़िस्मत ने दाँव खेला कुछ
ऐसे तमाम उम्र
दिल को कभी ख़ुशी से उछलने
नहीं दिया
ढलती रही ये उम्र तो
तक़लीद-ए-वक़्त में
ख़ुद को मगर ढलान पे चलने
नहीं दिया
कहते हैं लोग मौत से हारी है
ज़िन्दगी
ख़्वाबों में भी ख़याल ये
पलने नहीं दिया
दौलत मिली जो इल्मो-अदब की
तो बस उसे
बाँटा सँजोया दिल से निकलने
नहीं दिया
हमको मिला ये तज्रिबा “रूपम”
हयात से
जो आज ने दिया कभी कल ने नहीं दिया

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