माना कि तुझसा है नहीं तैराक
यार देख
इस फील्ड में है तू बड़ा ही
होनहार देख
लेकिन ज़माने पर नहीं है एतबार देख
होगा कहीं से तुझ पे अचानक
ही वार देख
पानी न देख मनचले पानी की
धार देख
हर एक चीज को तू नहीं देख
एकटक
है डर मुझे तू जाए नहीं यार
अब बहक
ता-ज़िंदगी रहे न तेरे दिल
में ये कसक
जितनी ज़रूरी है यहॉं उतनी ही
रख झिझक
जो देखने की चीज़ है वो बार
बार देख
अब उसकी बेवफ़ाई बतानी नहीं
मुझे
ख़ुद की हँसी ज़हाँ में उड़ानी
नहीं मुझे
गढ़नी नई है रोज़ कहानी नहीं
मुझे
सुनता तो हर कोई है सुनानी
नहीं मुझे
तू देख पाए गर कभी मेरी
पुकार देख
तकनीक ने भले हमें कुछ तो
हैं हल दिए
लेकिन नए-नए हमें हर रोज़ छल
दिए
फिर भी उठा के मुँह सभी उस
ओर चल दिए
'स्क्रीन' ने है सोच के नक्शे बदल दिए
हम लोग चल पड़े हैं किधर मेरे
यार देख
इंसान की है देखनी गर कैफ़ियत
तुझे
सच में अगर है देखनी अब
शख्सियत तुझे
पहचाननी है आदमी की ज़हनियत
तुझे
है जाननी जो आदमी की असलियत
तुझे
ट्रेनों के वॉशरूम की कोई
दीवार देख
ख़ुद पर नहीं हरेक को है
एतबार पर
मुश्किल बहुत है रोकना ख़ुद
को भी यार पर
स्लोगन लिखे लुभावने हैं हर
दीवार पर
ऑफर तो मन को खींचते हैं
बार-बार पर
पहले ज़रूरतों को समझ फिर
बाज़ार देख
आसान ही नहीं यहाँ करनी गुज़र
बसर
आकर कभी तो देख ले तू इक दफा
बशर
माना फ़ज़ा हसीन है सरसब्ज़ हैं डगर
'अनमोल' वादियाँ हैं यहाँ ख़ुशनुमा मगर
आकर पहाड़ पर कभी कुदरत की
मार देख
(मूल शायर के. पी. अनमोल)

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