संस्कृत गजल - चिन्त्यते यन्नो तथा संजायते – डॉ. लक्ष्मी नारायण पाण्डेय

 


चिन्त्यते यन्नो तथा संजायते

किं विधातुर्वामता लोलायते

आग्रहे यद्विग्रहो लोकेखिले

मानसं तीर्थेपि हा पापायते

 

सभ्यता दीनोपमेयं दृश्यते

कर्णयोःकालोधुना कुन्तायते

 

रञ्जने भुवि नन्दने प्रस्ताविते

जीवनं मन्येधुना कारायते

 

पद्मिनीनामाकरे मोदालसे

किंशुको दर्पोद्धतः शोभायते

 

यत्र वक्तव्यं भवेद्विधिसम्मतं

तत्र सभ्योयं कथं मूकायते

 

राजधान्यां गर्दभश्चैकोधुना

श्रूयते विहसन्नहो ह्यश्वायते

 

काललीला बलवतीयं वर्तते

यदृजुः काले कुतो वक्रायते

 

स्वप्नभङ्गे वेदनापूरे गृहे

नेत्रमधुना मामकं मेघायते 

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