एक हरियाणवी रागिनी किस्सा मदनसेन चन्दकिरण - शिवचरण शर्मा 'मुज़्तर'

 

उमर जवान चमक चेहरे पै शान शकल का सूणा हे।

चंद किरण तेरी झांकी नीचै बाबा लारया धूणा हे।

इसा तपस्वी ना देखा,मनै साधू संत बड़े देखे।

इसा ओजस्वी ना देखा मनै पंडित पंत बड़े देखे।

इसा तेजस्वी ना देखा मनै मुल्लाह महंत बड़े देखे।

इसा यशस्वी ना देखा माणस गुणवन्त बड़े देखे ।

मैनै देख देख के अचरज आवे बाबा नया नमूना हे/1

 

वोतो खैंच कपाली बैठासै हे हिलताऔर डोलता ना।

जाणु समाधि तुर्यापद में लागी आंख खोलता ना।

दसवें द्वार प्राण पहुंचे सैं सुणता और बोलता ना।

मैं तो सौ बै बाबा बाबा बोली कोय बात गोलता ना।

बैरी कै कित निघाह चढा सै मारे महल का कूणा हे/2

 

बेरा ना के फुकै से धुणे मैं बांस बेवड़े सी।

देही मांह तैं लपट आंवती केसर इत्र केवड़े सी।

आपस के मां उलझ रही बल खाके लटा जेवड़े सी।

मनै आंँख मिलातीं डर लाग्या बैरी की शक्ल सेवड़े सी

कदे फुलते फलते घर पै करदे जादू टूणा से/3

 

कुछ ले देके पिंड छूड़वाले हे भिक्षा दान धरम कर दे।

कदे बैठजा अड़के नै उरै मारे नाक में दम कर दे ।

फफ्ड़गारा फंड खिंढादे गाल के बीच उधम कर दे।

कदे महल पै मूठ छोड़ दे फेंक दे राख भस्म कर दे।

कदे शिवचरण छौ मैं आके कह दे बोल कसूणा हे/4

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