नवगीत - सोच रहा सुधुआ - राम निहोर तिवारी


सोच रहा सुधुआ

धरती भूले आसमान में

ठहरे नेताजी.

सुविधाओं के लहरताल में

लहरे नेता जी.के

जब तक रहे पहुँच के भीतर,

सब की सुनते थे.

गनी- गरीबों की गुहार तब-

मन से गुनते थे.

जब से बने वजीर हो गए

बहरे नेता जी.

 

बड़े दिनों के बाद वसंती-

मौसम आया है

जो चाहें सो करें बड़ी

कुरसी की छाया है.

अब तो लगा रहे हैं डुबकी

गहरे नेता जी.

 

चमचों की आँखों में जगते

आँखों में सोते.

चमचों के कहने पर सारे-

काम-काज होते. क

चमचों के हाथों झंडे सा-

फहरे नेता जी.

 

नेता जी से बात न होगी

कहता 'पीए' है.

बादल हैं बरसात न होगी

कहता 'पीए' है.

'पीए' के प्रायोजित पथ पर

डहरे नेता जी.

 

नेता जी से अब लोगों का,

मिलना कठिन हुआ.

सिंहद्वार के बाहर बैठा

सोच रहा सुधुआ.

लगा रखे हैं कई परत के-

पहरे नेता जी.

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