हमारी नज़्म को तब इक नई
हयात मिली
तुम्हारे हिज्र में जब रतजगे की रात मिली
बुझी न प्यास
समन्दर तेरे शिनावर की
जो ख़ुद में डूब गया उसको
कायनात मिली
महाज़े-वक्त पे
ऐसे भी शहसवार हुए
क़दम-क़दम पे जिन्हें पैदलों
से मात मिली
तड़प तो खूब हुयी दिल के
टूटने पे मगर
सुक़ूं भी है कि चलो शोर से
नजात मिली
वो इज़्तिराब अभी तक दिलों
में रौशन है
जो थी शक़ेब* में हमको न
फ़िर वो बात मिली
चमन में इसलिए गिरगिट चिढ़े
हैं तितली से
ये डाल-डाल चले पर वो पात-पात मिली
कोई गुलाब हो
जैसे तेरे गुलिस्तां का
कि हमको इश्क के मक़तल में
अपनी ज़ात मिली
हमारा दिल था समंदर ये सबने
जान लिया
सभी की ज़िद को यहां
राहते-सबात मिली
जिस एक शख़्स से डरती है ये
हुक़ूमत भी
जब उसके घर को खॅंगाला क़लम दवात मिली

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