कितना भी कोई घर को भरे
जोड़-तोड़ कर
निश्चय ही सब को जाना है सर्वस्व छोड़ कर
सरसों सा कर गया है वो मुखड़ा
गुलाब सा
ज्यों ले गया है रक्त-शिराएं
निचोड़ कर
कल उसके प्रेम-पत्र सभी कर
दिये हवन
लख बार पढ़ चुकी हूँ उन्हें
आँखें फोड़कर
अब कैसे कोई चाँद सा मुखड़ा
लिखेगा और
अब कैसे कोई लायेगा तारों को
तोड़ कर
दीपा ये तेरे पंख हैं उत्साह
से भरे
जो उड़ रहे हैं स्वप्न में उनसे न होड़ कर

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