कविता – खिड़की भर दुनिया - डॉ कनक लता तिवारी


खिड़की भर दुनिया

अस्पताल की खिड़की से

दुनिया कुछ अलग दिखती है—

यहाँ समय की चाल धीमी,

पर बाहर ज़िंदगी तेज़ भागती है।

खिड़की के पार

धूप एक पतली-सी किरण में

मेरे बिस्तर तक आती है,

जैसे कहती हो— “मैं अब भी तुम्हारे साथ हूँ।”

दूर सड़क पर

किसी बच्चे की हँसी उड़ती है,

किसी ऑटो की सीटी,

किसी पेड़ की शाखों पर झूमती हवा—

ये सब मिलकर बताते हैं

कि दुनिया रुकती नहीं।

अंदर बीप-बीप मशीनें,

दवाइयों की महक,

धीमे कदमों वाले नर्सों के साये—

और बाहर

खुला आसमान अपने पूरे रंगों के साथ।

खिड़की का काँच

जैसे दो दुनियाओं के बीच

एक पतला पर्दा है—

एक में दर्द है, इलाज है, धीरज है,

दूसरी में उम्मीद, रोशनी और जीवन का शोर।

मैं रोज़ इस खिड़की से

थोड़ी-सी दुनिया उधार लेता हूँ,

और दुनिया

थोड़ी-सी हिम्मत मुझे लौटा देती है।

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