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कनुआ तेरी भौत बुरी यै आदत है - https://www.youtube.com/watch?v=lgZDVANGEKM
मैं दिल की स्लेट पै - https://www.youtube.com/watch?v=8eIAYqwhovg
ग़म की अगवानी में - https://www.youtube.com/watch?v=l2a7IGpdD-g
नश्वर जगत में - https://www.youtube.com/watch?v=zYZPc8zwKH0
ऐ किसन अपने खिलौन'न कूँ - https://www.youtube.com/watch?v=L1KkfscTPjc&t=6s&list=PLf5UapaamgsyO8reluox2q_v3ZZr5IvQ0&index=2
द्वै चिरिया बतियाय रही हैं चौरे में - https://www.youtube.com/watch?v=L1KkfscTPjc&t=6s&list=PLf5UapaamgsyO8reluox2q_v3ZZr5IvQ0&index=2
हरेक ठौर सों नफरत की आग छू ह्वै जाय - https://www.youtube.com/watch?v=L1KkfscTPjc&t=6s&list=PLf5UapaamgsyO8reluox2q_v3ZZr5IvQ0&index=2
ऐ किसन अपने खिलौनन कूँ थिरकतौ कर दै – नवीन
कनुआ तेरी भौत बुरी यै आदत है - https://www.youtube.com/watch?v=lgZDVANGEKM
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ग़म की अगवानी में - https://www.youtube.com/watch?v=l2a7IGpdD-g
नश्वर जगत में - https://www.youtube.com/watch?v=zYZPc8zwKH0
ऐ किसन अपने खिलौन'न कूँ - https://www.youtube.com/watch?v=L1KkfscTPjc&t=6s&list=PLf5UapaamgsyO8reluox2q_v3ZZr5IvQ0&index=2
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हरेक ठौर सों नफरत की आग छू ह्वै जाय - https://www.youtube.com/watch?v=L1KkfscTPjc&t=6s&list=PLf5UapaamgsyO8reluox2q_v3ZZr5IvQ0&index=2
ऐ किसन अपने खिलौनन कूँ थिरकतौ कर दै – नवीन
ऐ किसन अपने खिलौनन कूँ थिरकतौ कर
दै।
नींद में खोये भये बिस्व में चाबी भर
दै॥
लीप हर घर की जमीन अपनी इनायत सूँ
किसन।
और छींकेन पै छब-छाछ की छछिया धर दै॥
याद कर्त्वें तोहि घर-घर में बने भये
आरे।
सगरे आरेन में रहमत के बतासे धर दै॥
हम जो सच्च’ऊँ एँ तिहारे तौ दया सूँ अपनी।
हमरे हिरदे की गिलसियन कूँ लबालब भर
दै॥
हाँ हमन्नें’इ खुद’इ दर्द-अलम माँगे
हते।
और अब हम्म’इ अरज
कर्त्वें उनें कम कर दै॥
आउ अब अहद कों बचायौ जाय – नवीन
आउ अब अहद कों बचायौ जाय।
तालिबे-इल्म कों पुकारौ जाय॥
जा की बारिस हैं चन्द्र की किरनें।
वा की ताकत कों और समझौ जाय॥
जिन कों लड्नो इ नाँय अँधेरे’न सों।
बिन सितारे’न कों घर बिठायौ जाय॥
हर समुद्दर नाराज ऐ धरती सों।
अब तौ परबत पे घर बसायौ जाय॥
तैरबौ जानत्वै नई पीढ़ी।
याहि अब डूबनों सिखायौ जाय॥
कछ तबीयत कौ हू खयाल रहै।
जायक’न ही पे दिल न वारौ जाय॥
संग में और जगमगामिंगे।
मोतिय’न कों लड़ी में गूँथौ जाय॥
सोचबौ भूलबे लगे हैं हम।
बक्त रहते उपाय सोचौ जाय॥
गन्ध ही स्वर्ग है ब-सर्ते 'नवीन'।
सूँघते बक्त मुस्कुरायौ जाय॥
ब्रज के सिवाय होयगी
अपनी बसर कहाँ - नवीन
ब्रज के सिवाय होयगी
अपनी बसर कहाँ।
ब्रज-भूमि कों बिसार कें
जामें किधर? कहाँ?
कनुआ सों दिल लगाय कें
हम धन्य है गये।
और काहू की पिरीत में
ऐसौ असर कहाँ॥
सूधे-सनेह की जो डगर
ब्रज में है हजूर।
दुनिया-जहान में कहूँ
ऐसी डगर कहाँ॥
तन के लिएँ तौ ठौर घनी
हैं सबन के पास।
मनुआ मगर बसाउगे मन के
नगर कहाँ॥
उपदेस ज्ञान-ध्यान रखौ
आप ही 'नवीन'।
जिन के खजाने लुट गये
विन कों सबर कहाँ॥
हठियन के हठयोग अलग्गइ होमतु एँ।
आप की हूक दिल में जो उठबे लगी –
नवीन
आप की हूक दिल में जो उठबे लगी।
जिन्दगी सगरे पन्ना पलटिबे लगी॥
बस निहारौ हतो चन्द्र-मुख आप कौ।
और ह्रिदे की नदी घाट चढ़िबे लगी॥
प्रेम कौ रंग जीबन में रस भर गयौ।
रेत जल जैसौ ब्यौहार करिबे लगी॥
हीयरे की सुनी तौ भयौ यै गजब।
ओस की बूँद सों प्यास बुझबे लगी॥
गाँठ सुरझे बिना अब न रह पायगी।
आतमा आतमा सों इरझबे लगी॥
एक लाइन में आउते बालक – नवीन
एक लाइन में आउते बालक।
एक लाइन में जाउते बालक॥
धूर-मट्टी उड़ाउते बालक।
मैल, मन कौ मिटाउते बालक॥
लौट सहरन सूँ आउते बालक।
जोत की लौ बचाउते बालक॥
बन सकै है नसीब धरती पै।
देख पढ़ते-पढाउते बालक॥
रूस [रूठ] बैठी गरूर की गुम्बद।
गुलगुली सों मनाउते बालक॥
किस्न बन कें जसोदा मैया कों।
ता-ता थैया नचाउते बालक॥
कितनी टीचर कितेक रिस्तेदार।
सब की सब सों निभाउते बालक॥
घर की दुर्गत हजम न कर पाये।
हँस कें पत्थर पचाउते बालक॥
और एक दिन असान्त ह्वै ई गये।
सोर कब लौं मचाउते बालक॥
हमारी गैल में रपटन मचायबे बारे –
नवीन
हमारी गैल में रपटन मचायबे बारे।
तनौ ई रहियो हमन कों गिरायबे बारे॥
बस एक दिन के लिएँ मौन-ब्रत निभाय
कें देख।
हमारी जीभ पे तारौ लगायबे बारे॥
जनम-जनम तोहि अपनेन कौ संग-साथ मिले।
हमारे गाम सों हम कों हटायबे बारे॥
हमारे लाल तिहारे कछू भी नाँइ नें
का।
हमारे ‘नाज में कंकर मिलायबे बारे॥
हमें जराय कें अपनी हबस बुझाय मती।
पलक-पलक सों नदिन कों बहायबे बारे॥
कमल, गुलाब, जुही, गुलमुहर बचात भए – नवीन
कमल, गुलाब, जुही, गुलमुहर बचात भए।
महक रहे हैं महकते नगर बचात भए॥
ये खण्डहर नहीं ये तौ धनी एँ महलन
के।
बिखर रहे हैं जो बच्चन के घर बचात
भए॥
चमन कों देख कें माली के म्हों ते
यों निकस्यौ।
कटैगी सगरी उमरिया सजर बचात भए॥
जो छन्द-बन्ध सों डरत्वें बे देख
लेंइ खुदइ।
मैं कह रहयौ हों गजल कों बहर बचात
भए॥
सरद की रात में चन्दा के घर चली पूनम।
अधर, अधर
पे धरैगी अधर बचात भए॥
मीठे बोलन कों सदाचार समझ लेवें हैं
– नवीन
मीठे बोलन कों सदाचार समझ लेवें हैं ।
लोग टीलेन कों कुहसार समझ लेवें हैं ॥
दूर अम्बर में कोऊ आँख लहू रोवै है।
हम यहाँ वा’इ चमत्कार समझ लेवें हैं ॥
कोऊ बप्पार सों भेजै है बिचारन की फौज।
हम यहाँ खुद कों कलाकार समझ लेवें
हैं ॥
पैलें हर बात पे लड्बौ ही सूझतौ हो
हमें।
अब तौ बस रार कौ इसरार समझ लेवें हैं
॥
भूल कें हू कबू पैंजनिया कों पाजेब न
बोल।
सब की झनकार कों फनकार समझ लेवें हैं
॥
एक हू मौकौ गँबायौ न जखम दैबे कौ।
आउ अब संग में उपचार समझ लेवें हैं ॥
अपनी बातन कौ बतंगड़ न बनाऔ भैया।
सार इक पल में समझदार समझ लेवें हैं ॥
सरगम की धुन गढ़वे बारे साज हबा में
उड़ रए एँ – नवीन
सरगम की धुन गढ़वे बारे साज हबा में
उड़ रए एँ।
पगडण्डिन पे चलबे बारे मिजाज हबा में
उड़ रए एँ॥
रात अँधेरी, नील-गगन, चलते भए बादर, तेज हबा।
बच्चा बोले पानी बारे जहाज हबा में
उड़ रए एँ॥
दूर अकास में ल्हौरे-ल्हौरे तारेन की
पंगत कों देख।
ऐसौ लागत है जैसें पुखराज हबा में उड़
रए एँ॥
सच्ची बात तौ यै है पानी जैसौ बहनौ
हो, लेकिन।
माफी दीजो भैया सगरे समाज हबा में उड़
रए एँ॥
मन में आयौ माखनचोर कों माखन-मिसरी
भोग धरों।
बा दिन सों ही यार अनाज और प्याज हबा
में उड़ रए एँ॥
और कहाँ टिकते भैया जी सब की काया सब
के मन।
महारानी धरती पे हैं महाराज हबा में
उड़ रए एँ॥
अब तक के सगरे राजा-महाराजा आय कें
देखौ खुद।
प्रेम सबन कौ है सरताज और ताज हबा
में उड़ रए एँ॥
कुहासौ छँट गयौ और, उजीतौ ह्वै गयौ ऐ।
सब कछ हतै कन्ट्रौल में तौ फिर
परेसानी ऐ चौं – नवीन
सब कछ हतै कन्ट्रौल में तौ फिर
परेसानी ऐ चौं।
सहरन में भिच्चम –भिच्च और गामन में
बीरानी ऐ चौं॥
जा कौ डस्यौ कुरुछेत्र पानी माँगत्वै
संसार सूँ।
अजहूँ खुपड़ियन में बु ई कीड़ा
सुलेमानी ऐ चौं॥
धरती पे तारे लायबे की जिद्द हम नें चौं
करी।
अब कर दई तौ रात की सत्ता पे हैरानी
ऐ चौं॥
सगरौ सरोबर सोख कें बस बूँद भर
बरसातु एँ।
बच्चन की मैया-बाप पे इत्ती महरबानी
ऐ चौं॥
सब्दन पे नाहीं भाबनन पे ध्यान धर
कें सोचियो।
सहरन कौ खिदमतगार गामन कौ हबा-पानी ऐ
चौं॥
घर की अँखियान कौ सुरमा जो हते –
नवीन
घर की अँखियान कौ सुरमा जो हते।
दब कें रहनौ परौ दद्दा जो हते॥
बिन दिनन खूब’इ मस्ती लूटी।
हम सबन्ह के लिएँ बच्चा जो हते॥
आप के बिन कछू नीकौ न लगे।
टोंट से लाग’तें सीसा जो हते॥
चन्द बदरन नें हमें ढाँक दयो।
और का करते चँदरमा जो हते॥
पेड़ तौ काट कें म्हाँ रोप दयौ।
किन्तु जा पेड़ के पत्ता जो हते॥
देख सिच्छा कौ चमत्कार ‘नवीन’।
ठाठ सूँ रहतु एँ मंगा जो हते॥
दौरिबे बारेन के पिछबाड़ें दुलत्ती दै दई – नवीन
दौरिबे बारेन के पिछबाड़ें दुलत्ती दै दई।
रेंगबे बारेन कूँ मैराथन की ट्रॉफ़ी
दै दई॥
जैसें ई पेटी में डार्यौ बोट – कछ
ऐसौ लग्यौ।
देबतन नें जैसें महिसासुर कूँ बेटी
दै दई॥
मैंने म्हों जा ताईं खोल्यौ ताकि
पीड़ा कह सकूँ।
बा री दुनिया तैनें मो कूँ फिर सूँ
रोटी दै दई॥
सब कूँ ऊपर बारौ फल-बल सोच कें ई देतु ऐ।
मन्मथन कूँ मन दये मस्तन कूँ मस्ती
दै दई॥
जन्म लीनौ जा कुआँ में बाई में मर
जाते हम।
सुक्रिया ऐ दोस्त जो हाथन में रस्सी
दै दई॥
लौट आमंगे सब सफर बारे – नवीन
लौट आमंगे सब सफर बारे।
हाँ ‘नवीन’ आप के सहर बारे॥
आँख बारेन कों लाज आबै है।
देख’तें ख्वाब जब नजर बारे॥
नेंकु तौ देख तेरे सर्मुख ही।
का-का कर’तें तिहारे घर बारे॥
एक कौने में धर दियौ तो कों।
खूब चोखे तिहारे घर बारे॥
रात अम्मा सों बोलत्वे बापू।
आमत्वें स्वप्न मो कों डर बारे॥
खूब ढूँढे, मिले न सहरन में।
संगी-साथी नदी-नहर बारे॥
जहर पी कें सिखायौ बा नें हमें।
बोल जिन बोलियो जहर बारे॥
बाकी सब साँचे ह्वै गए – नवीन
बाकी सब साँचे ह्वै गए।
मतबल हम झूठे ह्वै गए॥
कैसे-कैसे हते दल्लान।
अब तौ बँटबारे ह्वै गए॥
सब कूँ अलग्गइ रहनौ हो।
देख ल्यो घर महँगे ह्वै गए॥
इतने बरस बाद आए हौ।
आईने सीसे ह्वै गए॥
बाँधन सूँ छूट्यौ पानी।
खेतन में नाले ह्वै गए॥
हाथ बँटान लगी औलाद।
कछुक दरद हल्के ह्वै गए॥
गिनबे बैठे तिहारे करम।
पोरन में छाले ह्वै गए॥
घर कौ रसता सूझत नाँय।
हम सच्च’ऊँ अन्धे ह्वै गए॥
कहाँ गागर में सागर होतु ऐ भैया –
नवीन
कहाँ गागर में सागर होतु ऐ भैया।
समुद्दर तौ समुद्दर होतु ऐ भैया॥
हरिक तकलीफ कौं अँसुआ कहाँ मिल’तें।
दुखन कौ ऊ मुकद्दर होतु ऐ भैया॥
छिमा तौ माँग और सँग में भलौ हू कर।
हिसाब ऐसें बरब्बर होतु ऐ भैया॥
सबेरें उठ कें बासे म्हों न खाऔ कर।
जि अतिथी कौ अनादर होतु ऐ भैया॥
कबउ खुद्दऊ तौ गीता-सार समझौ कर।
जिसम सब कौ ही नस्वर होतु ऐ भैया॥
जब’इ हाथन में मेरे होतु ऐ पतबार।
तब’इ पाँइन में लंगर होतु ऐ भैया॥
बिना आकार कछ होबत नहीं साकार।
सबद कौ मूल - अक्षर होतु ऐ भैया॥
देखत रह गए ताल-तलैया भैंस पसर गई
दगरे में – नवीन
देखत रह गए ताल-तलैया भैंस पसर गई
दगरे में।
गरमी झेल न पाई भैया भैंस पसर गई
दगरे में॥
बीस बखत बोल्यौ हो तो सूँ दानौ पानी
कम न परै।
अब का कर्तु ए हैया-हैया भैंस पसर गई
दगरे में॥
ऐसी-बैसी चीज समझ मत जे तौ है सरकार
की सास।
जैसें ई देखे नकद रुपैया भैंस पसर गई
दगरे में॥
कारी मौटी धमधूसर सी नार थिरकबे कूँ
निकरी।
नाचत-नाचत ता-ता थैया भैंस पसर गई
दगरे में॥
खान-पान के असर कूँ देखौ जैसें ई
कीचम-कीच भई।
पड़-पड़ भज गई गैया-मैया, भैंस पसर गई दगरे में॥
जा लँग भीर घनी है भैया कछ तौ सरकौ –
नवीन
जा लँग भीर घनी है भैया कछ तौ सरकौ
पर्लँग कूँ।
अपनी-अपनी तसरीफन की बीन बजाऔ पर्लँग
कूँ॥
जा लँग टाट-दरी के प्रेमी पर’ लँग सिंहासन बारे।
प्रेमी हौ तौ जा लँग आऔ नईं तौ टरकौ
पर्लँग कूँ॥
हम सूँ जादा किस्न के पाछें भूत परौ
हो पलायन कौ।
कछू जने जा लँग भी ठहरौ सब जिन जाऔ
पर्लँग कूँ॥
खेतन में बरसात कौ पानी भर ऊ गयो तौ
का चिन्ता।
तनिक बहाऔ पानी जा लँग तनिक उलीचौ
पर्लँग कूँ॥
कित्ती पुस्त गिनौगे भैया जे तौ
पुरानौ रिबाज ई ए।
जा लँग आँगन साफ़ करौ और धूर उड़ाऔ
पर्लँग कूँ॥
अपनी खुसी सूँ थोरें ई सब नें करी
सही – नवीन
अपनी खुसी सूँ थोरें ई सब नें करी
सही।
बौहरे नें दाब-दूब कें करबा लई सही॥
जै सोच कें ई सबनें उमर भर दई सही।
समझे कि अब की बार की है आखरी सही॥
पहली सही नें लूट लयो सगरौ चैन-चान।
अब और का हरैगी मरी दूसरी सही॥
मन कह रह्यौ है बौहरे की बहियन कूँ
फार दऊँ।
फिर देखूँ काँ सों लाउतै पुरखान की
सही॥
धौंताए सूँ नहर पे खड़ो है मुनीम साब।
रुक्का पे लेयगौ मेरी सायद नई सही॥
म्हाँ- म्हाँ जमीन आग उगल रइ ए आज तक।
घर-घर परी ही बन कें जहाँ बीजरी सही॥
तो कूँ भी जो ‘नवीन’ पसंद आबै मेरी
बात।
तौ कर गजल पे अपने सगे-गाम की सही॥
अँधेरी रैन में जब दीप जगमगावतु एँ – नवीन
अँधेरी रैन में जब दीप जगमगावतु एँ।
अमा कूँ बैठें ई बैठें घुमेर आमतु एँ॥
अब’न के दूध सूँ मक्खन की आस का करनी।
दही बिलोइ कें मठ्ठा ई चीर पामतु एँ॥
दही बिलोइ कें मठ्ठा ई चीर पामतु एँ॥
अब उन के ताईं लड़कपन कहाँ सूँ लामें
हम।
जो पढते-पढते कुटम्बन के बोझ उठामतु एँ॥
जो पढते-पढते कुटम्बन के बोझ उठामतु एँ॥
हमारे गाम ई हम कूँ सहेजत्वें साहब।
सहर तौ हम कूँ सपत्तौ ई लील जामतु एँ॥
सहर तौ हम कूँ सपत्तौ ई लील जामतु एँ॥
सिपाहियन की बहुरियन कौ दीप-दान अजब।
पिया के नेह में हिरदेन कूँ जरामतु एँ॥
पिया के नेह में हिरदेन कूँ जरामतु एँ॥
तरस गए एँ तकत बाट चित्रकूट के घाट।
न राम आमें न भगतन की तिस बुझामतु एँ॥
न राम आमें न भगतन की तिस बुझामतु एँ॥
साहिबन कौ नहीं, सभा कौ रुख – नवीन
साहिबन कौ नहीं, सभा कौ रुख।
बात कर - देख कें - हबा कौ रुख॥
बेरुखी में ई बक्त बीत गयौ।
हम न कर पाये इब्तिदा कौ रुख॥
अब तौ घर फूँकबौ ई सेस रह्यौ।
दिलजले कर चुके अना कौ रुख॥
हम ते पूछौ उरूज की उलझन।
हम नें देख्यौ ऐ चन्द्रमा कौ रुख॥
छान मारे जुगन-जुगन के ग्रन्थ।
इक पहेली ए दिलरुबा कौ रुख॥
बेरुखी में ई बक्त बीत गयौ।
हम न कर पाये इब्तिदा कौ रुख॥
अब तौ घर फूँकबौ ई सेस रह्यौ।
दिलजले कर चुके अना कौ रुख॥
हम ते पूछौ उरूज की उलझन।
हम नें देख्यौ ऐ चन्द्रमा कौ रुख॥
छान मारे जुगन-जुगन के ग्रन्थ।
इक पहेली ए दिलरुबा कौ रुख॥
म्हैफिलन कों गुजार
पाये हम – नवीन
म्हैफिलन कों गुजार
पाये हम।
तब कहूँ खल्बतन पै छाये हम॥
हम उदासी के कोख-जाये हैं।
जिन्दगी कों न रास आये हम॥
खाद-पानी बनाय खुद कों ही।
सिलसिलेबार लहलहाये हम॥
नस्ल तारेन की जिद्द कर बैठी।
इस्तआरे उतार लाये हम॥
आतमा कों दबोच कें माने।
हरकतन सों न बाज आये हम॥
फर्ज हम पै है रौसनी कौ सफर।
नूर की छूट के हैं जाये हम॥
‘प्यास’ कों बस्स ‘प्यार’ करनौ हो ।
एक अक्षर बदल न पाये हम॥
तब कहूँ खल्बतन पै छाये हम॥
हम उदासी के कोख-जाये हैं।
जिन्दगी कों न रास आये हम॥
खाद-पानी बनाय खुद कों ही।
सिलसिलेबार लहलहाये हम॥
नस्ल तारेन की जिद्द कर बैठी।
इस्तआरे उतार लाये हम॥
आतमा कों दबोच कें माने।
हरकतन सों न बाज आये हम॥
फर्ज हम पै है रौसनी कौ सफर।
नूर की छूट के हैं जाये हम॥
‘प्यास’ कों बस्स ‘प्यार’ करनौ हो ।
एक अक्षर बदल न पाये हम॥
मैं दिल की स्लेट
पै जो गम तमाम लिख देतो – नवीन
मैं दिल की स्लेट
पै जो गम तमाम लिख देतो।
कोऊ न कोऊ म्हईं इन्तकाम लिख देतो॥
खमोसियन कों इसारेन सों हू रह्यौ परहेज।
नईं तौ कैसें कोऊ शब कूँ शाम लिख देतो॥
मेरे मकान की सूरत बिगारिबे बारे।
तू या मकान पै अपनौ इ नाम लिख देतो॥
वहाँ पहुँच कें उ बा की तलब खतम न भई।
फकीर कैसें खँडर कों मकाम लिख देतो॥
मेरे हू आगें मुँड़ासेन के ढेर लग जाते।
जो अपने नाम के आगें इमाम लिख देतो॥
कोऊ न कोऊ म्हईं इन्तकाम लिख देतो॥
खमोसियन कों इसारेन सों हू रह्यौ परहेज।
नईं तौ कैसें कोऊ शब कूँ शाम लिख देतो॥
मेरे मकान की सूरत बिगारिबे बारे।
तू या मकान पै अपनौ इ नाम लिख देतो॥
वहाँ पहुँच कें उ बा की तलब खतम न भई।
फकीर कैसें खँडर कों मकाम लिख देतो॥
मेरे हू आगें मुँड़ासेन के ढेर लग जाते।
जो अपने नाम के आगें इमाम लिख देतो॥
कर्ज हैबानिअत उठावै
है – नवीन
कर्ज हैबानिअत उठावै
है।
किस्त इन्सानियत चुकावै है॥
हम नें बस आसमान ही देखे।
जब कि कन-कन कों नींद आवै है॥
हम बचामें हैं लौ मुहब्बत की।
फिर यही लौ हमें जरावै है॥
एक पोखर समान है जीबन।
जा में किसमत कमल खिलावै है॥
दिल के टुकड़ा समेंट लेउ 'नवीन'।
तेज अँसुअन की ल्हैर आवै है॥
किस्त इन्सानियत चुकावै है॥
हम नें बस आसमान ही देखे।
जब कि कन-कन कों नींद आवै है॥
हम बचामें हैं लौ मुहब्बत की।
फिर यही लौ हमें जरावै है॥
एक पोखर समान है जीबन।
जा में किसमत कमल खिलावै है॥
दिल के टुकड़ा समेंट लेउ 'नवीन'।
तेज अँसुअन की ल्हैर आवै है॥
न तौ अनपढ़ ही
रह्यौ और न ही काबिल भयौ मैं – नवीन
न तौ अनपढ़ ही
रह्यौ और न ही काबिल भयौ मैं।
खामखा धुन्ध के इसकूल में दाखिल भयौ मैं॥
खामखा धुन्ध के इसकूल में दाखिल भयौ मैं॥
मेरे मरते ही जमाने कौ लहू खौल उठौ।
खामुसी ओढ़ कें आबाज में सामिल भयौ मैं॥
ओस की बूँद मेरे चारौ तरफ जमबे लगीं।
देखते-देखते दरिया के मुकाबिल भयौ मैं॥
अब हु तकदीर की जद पै है मेरौ मुस्तकबिल।
कौन से म्हों ते कहों कल्ल-ते-काबिल भयौ मैं॥
अपने भीतर सों उबरते ही मिलौ सन्नाटौ।
घर ते निकरौ तौ बियाबान में दाखिल भयौ मैं॥
सच कहबे सों फर्ज
अदा ह्वै जावै है – नवीन
सच कहबे सों फर्ज
अदा ह्वै जावै है ।
किन्तु हृदय टुकड़ा-टुकड़ा ह्वै जावै है ॥
हरे नाँय करने हैं फिर सों दिल के घाव।
हस्ती कौ उनबान खला ह्वै जावै है ॥
या’इ जगें इनसान बनावै है तकदीर।
या’इ जगें इनसान हबा ह्वै जावै है ।
ज्ञान अकड़ कें आवै है भगतन के पास।
बच्चन सों मिल कें बच्चा ह्वै जावै है ॥
यार ‘नवीन’ अब इतनौ हू सच मत बोलो।
सगरौ कुनबा सन्जीदा ह्वै जावै है ॥
किन्तु हृदय टुकड़ा-टुकड़ा ह्वै जावै है ॥
हरे नाँय करने हैं फिर सों दिल के घाव।
हस्ती कौ उनबान खला ह्वै जावै है ॥
या’इ जगें इनसान बनावै है तकदीर।
या’इ जगें इनसान हबा ह्वै जावै है ।
ज्ञान अकड़ कें आवै है भगतन के पास।
बच्चन सों मिल कें बच्चा ह्वै जावै है ॥
यार ‘नवीन’ अब इतनौ हू सच मत बोलो।
सगरौ कुनबा सन्जीदा ह्वै जावै है ॥
कहाँ रहे अब बे दिन, बे बातें और
- नवीन
कहाँ रहे अब बे दिन, बे बातें और बैसी मस्ती यार ।
घर सों निकसे स्कूल की ताईं और पहुँच
गये पल्लीपार॥
हाय रे बे किरकेट के दिन और
कैसी-कैसी बदमासी।
जैसें-इ अपनी चाल भई, मैदान सूँ भाज गये सरदार ॥
जाड़ेन में स्कूल न जानौ परै जा ताईं
मत पूछौ ।
मरे भए पुरखा फिर सूँ परलोक सिधारे
कितनी बार॥
रुपैया जितने पॉण्ड चुकाये जाएँ तौ ऊ
मिल न सकै ।
दादी नें अपने हाथन सूँ खबायौ जो
नींबू कौ अचार ॥
बटला बारी दार, कढ़इया बारे झोर के जुग बीते।
बूरे बारी खीर-उ कितने लोग जिमामें
पत्तर डार ?
एक बिलिस्त के कुल्ला में लस्सी पीबे
की याद आई।
और गुलाबी दूध कढाउ कौ पीनौ रोज मलाई
मार॥
ब्याउ-बरात-जनेउ-जुनार सबन की रीत
बिगार दईं ।
जितने छोटे बस्त्र भए उन सूँ जादा
ओछे ब्यौहार॥
अच्छी-खासी मस्ती
पै गोला दग रए एँ – नवीन
अच्छी-खासी मस्ती
पै गोला दग रए एँ।
धौंताए सूँ टी बी पै गोला दग रए एँ॥
दोउ तरफ के बड़े-बड़े सब-लोग सुरक्षित।
बस गरीब आबादी पै गोला दग रए एँ॥
कबू-कभार बिकास कछुक यों हू लागै ज्यों ।
हरी-भरी फुलबारी पै गोला दग रए एँ॥
कोन सौ दिन होबैगौ जब जै न्यूज सुनंगे।
नफरत की सहजादी पै गोला दग रए एँ ॥
बउअन में बिटियन कूँ ढूँढ्यौ तब समझे हम।
कहूँ जाउ बिटियन ही पै गोला दग रए एँ ॥
धौंताए सूँ टी बी पै गोला दग रए एँ॥
दोउ तरफ के बड़े-बड़े सब-लोग सुरक्षित।
बस गरीब आबादी पै गोला दग रए एँ॥
कबू-कभार बिकास कछुक यों हू लागै ज्यों ।
हरी-भरी फुलबारी पै गोला दग रए एँ॥
कोन सौ दिन होबैगौ जब जै न्यूज सुनंगे।
नफरत की सहजादी पै गोला दग रए एँ ॥
बउअन में बिटियन कूँ ढूँढ्यौ तब समझे हम।
कहूँ जाउ बिटियन ही पै गोला दग रए एँ ॥
अध-रतियन में घाट
किनारें जामें चौं – नवीन
अध-रतियन में घाट
किनारें जामें चौं।
जाइ कें जलडुब्बन सूँ नैन लड़ामें चौं॥
भूत कहानी में ई नीके लागतु ऐं।
आँगन में बेरी कौ पेड़ लगामें चौं॥
जाइ कें जलडुब्बन सूँ नैन लड़ामें चौं॥
भूत कहानी में ई नीके लागतु ऐं।
आँगन में बेरी कौ पेड़ लगामें चौं॥
दूध अगर फट जाय तौ छैना कर लिंगे।
जान बूझ कें दूध में नौन मिलामें चौं॥
बरफ के गोलन की
बरखा जब ह्वै रई होय।
ऐसे में हम अपनौ मूँड़ मुँड़ामें चौं॥
तुम हुस्यार हौ तुमइ करौ जै पेसल काम ।
हम पनफत के बीच पतंग उड़ामें चौं॥
ऐसे में हम अपनौ मूँड़ मुँड़ामें चौं॥
तुम हुस्यार हौ तुमइ करौ जै पेसल काम ।
हम पनफत के बीच पतंग उड़ामें चौं॥
बन्दे पै इतनौ
एहसान करें साहब – नवीन
बन्दे पै इतनौ
एहसान करें साहब।
नजर जोर कें इस्माइल बखसें साहब॥
बाट निहारतु ए कब सूँ मन की मेहराब।
अब तौ जा पै बन्दनवार लगें साहब॥
हम तौ कब सूँ सेहरा बाँधें बैठे हतें।
आज कहौ तौ आज इ माँग भरें साहब॥
धुर सूँ लै कें एण्ड तलक मीटिंग-मीटिंग।
दफ्तर छूटै तौ कछ काम करें साहब॥
बचत बचाबैगी हम कूँ सच्ची ए मगर।
महँगाई में का इनबेस्ट करें साहब॥
नजर जोर कें इस्माइल बखसें साहब॥
बाट निहारतु ए कब सूँ मन की मेहराब।
अब तौ जा पै बन्दनवार लगें साहब॥
हम तौ कब सूँ सेहरा बाँधें बैठे हतें।
आज कहौ तौ आज इ माँग भरें साहब॥
धुर सूँ लै कें एण्ड तलक मीटिंग-मीटिंग।
दफ्तर छूटै तौ कछ काम करें साहब॥
बचत बचाबैगी हम कूँ सच्ची ए मगर।
महँगाई में का इनबेस्ट करें साहब॥
द्वै चिरिया बतराय
रई ऐं चौरे में – नवीन
द्वै चिरिया बतराय
रई ऐं चौरे में।
दरपन हम कूँ दिखाय रई ऐं चौरे में॥
गोरस कूँ गोरस कैसें कह देंइ कहौ।
गैया कूरौ खाय रई ऐं चौरे में॥
गामन सों हू स्वच्छ हबा के जुग बीते।
फटफटिया दन्नाय रई ऐं चौरे में॥
जीन्स और मोबाइल उन सूँ छीनंगे का।
बे जो जंगल जाय रई ऐं चौरे में॥
दरपन हम कूँ दिखाय रई ऐं चौरे में॥
गोरस कूँ गोरस कैसें कह देंइ कहौ।
गैया कूरौ खाय रई ऐं चौरे में॥
गामन सों हू स्वच्छ हबा के जुग बीते।
फटफटिया दन्नाय रई ऐं चौरे में॥
जीन्स और मोबाइल उन सूँ छीनंगे का।
बे जो जंगल जाय रई ऐं चौरे में॥
हम नें उन पे जब-जब जो-जो जुलम किये।
जमना जी दरसाय रई ऐं चौरे में॥
कैसें होय समाज समृद्ध तुम’इ बोलौ।
गागर छलकत जाय रई ऐं चौरे में॥
दूध की दुकानन पै
बर्गरन के जलबे एँ – नवीन
दूध की दुकानन पै, बर्गरन के जलबे एँ।
बर्गरन की किरपा सों, डॅाक्टरन के जलबे एँ॥
खेत और बगीचिन पै, साढ़े-साती बैठी है।
लीडरन की किरपा सों, बिल्डरन के जलबे एँ॥
हल धर्यौ नहीं लेकिन, टैक्स छूट पामतु ऐं।
आज के जमाने के, हल-धरन के जलबे एँ॥
ढ़ूँढ-ढ़ूँढ घोड़न कूँ, एक्सपोर्ट कर डारौ।
अब तौ रेस-कोर्सन में, खच्चरन के जलबे एँ॥
घर में घर गिरस्थी सों, कच्छु बच न पामतु ऐ।
और गली बजारन में, बन्दरन के जलबे एँ ॥
बर्गरन की किरपा सों, डॅाक्टरन के जलबे एँ॥
खेत और बगीचिन पै, साढ़े-साती बैठी है।
लीडरन की किरपा सों, बिल्डरन के जलबे एँ॥
हल धर्यौ नहीं लेकिन, टैक्स छूट पामतु ऐं।
आज के जमाने के, हल-धरन के जलबे एँ॥
ढ़ूँढ-ढ़ूँढ घोड़न कूँ, एक्सपोर्ट कर डारौ।
अब तौ रेस-कोर्सन में, खच्चरन के जलबे एँ॥
घर में घर गिरस्थी सों, कच्छु बच न पामतु ऐ।
और गली बजारन में, बन्दरन के जलबे एँ ॥
दिन ढलें दफ्तर में
घुसत्वें खैर काँ सों होयगी – नवीन
दिन ढलें दफ्तर में
घुसत्वें खैर काँ सों होयगी।
सोयबे की बेर जगत्वें खैर काँ सों होयगी॥
दण्ड-बैठक पेलत्वे और खेलत्वे जा ठौर हम।
आज म्हाँ पिस्तौल चलत्वें खैर काँ सों होयगी॥
हर्द, चन्दन, घी, मलाई और केसर की जगह।
कैमिकल जिसमन पै मलत्वें खैर काँ सों होयगी॥
जिनकी तनखा मात्र पखवाड़े ई में पत जातु ऐ।
बे ई पूरौ टैक्स भरत्वें खैर काँ सों होयगी॥
अपने मैया-बाप कूँ ढेला तलक बखस्यौ नहीं।
बिस्व भर की फिक्र करत्वें खैर काँ सों होयगी॥
सोयबे की बेर जगत्वें खैर काँ सों होयगी॥
दण्ड-बैठक पेलत्वे और खेलत्वे जा ठौर हम।
आज म्हाँ पिस्तौल चलत्वें खैर काँ सों होयगी॥
हर्द, चन्दन, घी, मलाई और केसर की जगह।
कैमिकल जिसमन पै मलत्वें खैर काँ सों होयगी॥
जिनकी तनखा मात्र पखवाड़े ई में पत जातु ऐ।
बे ई पूरौ टैक्स भरत्वें खैर काँ सों होयगी॥
अपने मैया-बाप कूँ ढेला तलक बखस्यौ नहीं।
बिस्व भर की फिक्र करत्वें खैर काँ सों होयगी॥
जिन के चरनन में
बरकत और हाथन में रहमत – नवीन
जिन के चरनन में
बरकत और हाथन में रहमत।
ऐसे लोगन की सुहबत - मतलब रब की सुहबत॥
जिन की अँखियन सों दुनिया की पीर छलकती होय।
ऐसी अँखियन की हसरत - मतलब सब की हसरत॥
प्यार मुहब्बत अपनौपन करुना किरपा उपकार।
ऐसे तत्वन की किल्लत - मतलब सच्ची किल्लत॥
जिन की देखन-गत, सोचन-गत अपने जैसी होय।
ऐसे लोगन सों नफरत - मतलब खुद सों नफरत॥
ऐसे लोगन की सुहबत - मतलब रब की सुहबत॥
जिन की अँखियन सों दुनिया की पीर छलकती होय।
ऐसी अँखियन की हसरत - मतलब सब की हसरत॥
प्यार मुहब्बत अपनौपन करुना किरपा उपकार।
ऐसे तत्वन की किल्लत - मतलब सच्ची किल्लत॥
जिन की देखन-गत, सोचन-गत अपने जैसी होय।
ऐसे लोगन सों नफरत - मतलब खुद सों नफरत॥
नाच-गाने के तईं
पूजन-हबन महँगे परे – नवीन
नाच-गाने के तईं
पूजन-हबन महँगे परे।
हर समय सस्ते समय के आचरन महँगे परे॥
हर समय सस्ते समय के आचरन महँगे परे॥
क्रिस्न कौ उपदेस
अर्जुन कौ धनुस अपनी जगें।
कौरबन कूँ भीस्म के आसिर्बचन महँगे परे॥
बात रामायन की होवै या हमारे दौर की ।
सोचे-समझे बिन दिये जो हू बचन - महँगे परे॥
कौरबन कूँ भीस्म के आसिर्बचन महँगे परे॥
बात रामायन की होवै या हमारे दौर की ।
सोचे-समझे बिन दिये जो हू बचन - महँगे परे॥
हरेक ठौर सों नफरत की आग छू ह्वै जाय
– नवीन
हरेक ठौर सों नफ़रत की आग छू ह्वै
जाय।
तिहारे रह्म की बरसात चार-सू ह्वै
जाय॥
जो मेरे दिल कों इबादत अज़ाब लगबे लगै।
तौ या’इ खन मेरी काया लहू-लहू ह्वै जाय॥
यै का कि रोज बहार’न कों ढूँढ़ौ हौ साहब।
कबू-कभार खुद अपनी हू जुस्तजू ह्वै
जाय॥
जो बफादार हैं उन कों ही बफादार
मिलें – नवीन
जो बफादार हैं उन कों ही बफादार
मिलें।
हम गुनहगार हैं हम कों तौ गुनहगार
मिलें॥
हम फरिस्त'न की रिहाइस में न रह पामंगे।
बे जो यप्पार मिले हैं बे'इ बप्पार मिलें॥
बात-ब्यौहार-बजार'न सों ही सब रौनक है।
हम हू सामान हैं हम कों हू
खरीदार मिलें॥
एक मुद्दत भई बरसात झमाझम न भई।
अब तौ अँखियन के मरुस्थल कों मददगार
मिलें॥
जिन की बानी में असर होय दवा कौ
मौजूद।
ऐ किसन ऐसे मसीहान कों बीमार मिलें॥
देख अपने'न ते नजर फेरबौ अच्छौ नहिं है।
अब तौ उलफत के तरफदार'नें दरबार मिलें॥
अन्न-दानिन सों निवेदन है बस इतनौ सौ
'नवीन'।
ऐसौ कछ कीजै कि मजदूर'नें रुजगार मिलें॥
टूट कें काँच की रकाबी
से – नवीन
टूट कें काँच की रकाबी
से।
हम बिखर ही गए सराबी से॥
नेह के बिन सनेह की
बतियाँ!
ये दरस तौ हैं बस नवाबी
से॥
हक्क तजबे कों नेंकु
राजी नाँय।
गम के तेवर हैं इनकिलाबी
से॥
बैद, कोऊ तौ औसधी बतलाउ।
घाव, गहराए हैं खराबी से॥
राख हियरे में खाक
अँखियन में।
अब कपोल'उ कहाँ गुलाबी से॥
प्रश्न बन कें उभर न
पाये हम।
बस्स, बन-बन, बने
- जवाबी से॥
हमरे अँचरा में आए हैं
इलजाम।
बिन परिश्रम की कामयाबी
से॥
ब्रज-गजल के प्रयास अपने
लिएँ।
सच कहें तौ हैं पेचताबी
से॥
बस्स बदनौ* है, कच्छ करनों नाँय।
हौ 'नवीन' आप हू
किताबी से॥
*बोलना
सुनबे बारौ कोउ नाँय, टर्रामें चों – नवीन
"सुनबे बारौ कोउ
नाँय, टर्रामें
चों"।
ऐसौ कह कें अपनौ जोस
घटामें चौं॥
जिन कों बिदरानों है -
बिदरामंगे ही।
हम अपनी भासा-बोली
बिदरामें चौं॥
ब्रजभासा की गहराई
जगजाहिर है।
तौ फिर या कों उथलौ
कुण्ड बनामें चौं॥
ऐसे में जब खेतन कों
बरखा चँइयै।
ओस-कनन के जैसें हम झर
जामें चौं॥
जिन के हाथ अनुग्रह कों
पहिचानत नाँय।
हम ऐसे लोगन के हाथ
बिकामें चौं॥
मन-रंजन-आनन्द अगर
मिलनों ही नाँय।
तौ फिर दुनिया के आगें
रिरियामें चौं॥
हम कों गूँगौ-बहरौ थोरें'इ बननौ है।
फोन करंगे - चैटिंग में
चिटियामें चौं॥
मनुवादिन सौं जिन कों
नफरत है वे लोग।
मनुवादिन कों बेटा-बेटी
ब्यामें चौं॥
नाँय नहाए तौ का कछ घट
जावैगौ।
द्वारें ठाड़ी लछमी कों
बिदरामें चौं॥
अन्य गजल में बतरामंगे
बाकी बात।
या कों ही द्रौपद कौ चीर
बनामें चौं॥
हालत'न नें या तरें घाइल कियौ – नवीन
हालत'न नें या तरें घाइल कियौ।
निल बटा निल करते-करते
निल कियौ॥
हम नें कातिब के चरन
चाँपे नहीं।
जिन्दगी कौ फॅार्म खुद
ही फिल कियौ॥
हम महूरत सोध कें निकरे
ही कब।
चल पड़े जब हू हमारौ दिल
कियौ॥
नीर जैसौ साफ-सुथरौ हो
सुभाउ।
बिस-बुझे ब्यौहार नें
फैनिल कियौ॥
जा हबा के दम सों हम
परबत भये।
वा हबा नें ही हमें
तिल-तिल कियौ॥
जिन्दगी दर जिन्दगी दर
जिन्दगी।
"जिन्दगी नें इक
सबक हासिल कियौ"॥
कछेक लोग यही ता-हयात
करते रहे – नवीन
कछेक लोग यही ता-हयात
करते रहे।
अदालतन की नजर कागजात
करते रहे॥
हम आसथा की नजर सों अगर
न देखें तौ।
महान-लोग महा-पक्षपात
करते रहे॥
इबादतन के पुजारी उपासना
में मगन।
अदाबतन के रसिक रक्तपात
करते रहे॥
हम अपनी जात के बारे में
और का बोलें।
समस्त पन्थ हमें आत्मसात
करते रहे॥
पबन के पुत्र नें गढ-लंक
जब जराय दियौ।
बिफर-बिफर कें असुर
तात-मात करते रहे॥
सकुन्तला के बिरह में
बिलख-बिलख दुस्यन्त।
"तमाम रात सितारेन
सों बात करते रहे"॥
शीघ्र ही नाँय शीघ्रतर
आबै – नवीन
शीघ्र ही नाँय शीघ्रतर
आबै।
अब तौ अच्छी सी कछ खबर
आबै॥
कोउ तौ उन अँधेरी गैलन
में।
रात कों जाय दीप धर आबै॥
राह तौ बीसियन मिलीं मग
में।
अब जो आबै तौ रहगुजर
आबै॥
मेरी उन्नति कौ मोल है
तब ही।
जब समस्तन पै कछ असर
आबै॥
है अगर सच्च-ऊँ गगन में
वौ।
एक-दो दिन कों ही उतर
आबै॥
बा कौ उपकार माननों
बेहतर।
जा की बिटिया हमारे घर
आबै॥
जुल्म की धुन्ध में, भलाई की।
"घाम निकरै तौ कछ
नजर आबै"॥
एक बनती बिगार कें
हम-लोग – नवीन
एक बनती बिगार कें
हम-लोग।
खुस भये घर उजार कें
हम-लोग॥
पूर्वजन नें महल-टहल
सौंपे।
थक गये धूर झार कें
हम-लोग॥
तान देवें हैं नित नये
परचम।
ध्वज पुराने उखार कें
हम-लोग॥
नित-नई भूल कर रहे हैं
नित्त।
खूब सोच और बिचार कें
हम-लोग॥
एक पगड़ी की लाज राखि
रहे।
दस मुँड़ासे उछार कें हम लोग॥
उन्नती कर रहे हैं
जुग्गन सों।
आज कों कल पै टार कें हम
लोग॥
और कब तक 'नवीन' माँगंगे।
अपनी झोली पसार कें हम
लोग॥
और कहाँ का ठौर जावैगी
फसल – नवीन
और कहाँ का ठौर जावैगी
फसल।
खेत-खलिहान’न सों गुम होती फसल॥
अब तौ कंकर ही मिलंगे
भोज में।
क्यों पराये हाथ में
सौंपी फसल॥
लहलहाती दिख रही है ठाठ
सों।
अब तौ सब देस’न में परदेसी फसल॥
और नहीं कछ करनों हम कों
बस – नवीन
और नहीं कछ करनों हम कों
बस यै रस्म निभानी है।
तुम सों मिलनौ है और मिल
कें दिल की बात बतानी है।
अपने हिरदे के हाथन में
चाहत की चरखी लै कें।
छोह-छतन पै आय हू जाऔ
प्रीत-पतंग उड़ानी है॥
पल-पल हाँ-हाँ ना-ना कर
कें ऐसें तौ उकसाऔ मत।
आग नहीं लगवानी हम कों
चिंगारी बुझवानी है॥
आमत ही जाबन की बतियाँ
कर कें छतियाँ फारौ मत।
आज तुम्हारे हाथन अपनी
किस्मत हू लिखबानी है।
एक बेर फिर सुन लेउ हम
सों नफरत-बफरत होनी नईं।
"हम कों जो या काम
कौ समझै वा की यै नादानी है" ॥
काहे कों भगतन कों नाच
नचावत है – नवीन
काहे कों भगतन कों नाच
नचावत है।
कनुआ तेरी भौत बुरी यै
आदत है॥
ऐ रे मनमोहन यै कैसौ
प्रेम कियौ।
एक'हु बार न पूछी कैसी हालत है॥
आज'हु गैया, बछरा,
मोर, मनक्खन कों।
कारी-कामरिया बारे की
जरूरत है॥
तै नें राज भवन पायौ, हम नें जंगल।
सच्च'उँ सब की अपनी-अपनी किसमत है॥
आज'हु नन्द-भवन के बाहर नन्द-बबा।
बाट तिहारी जोहत-जोहत
रोवत है॥
कैसें या बिसदा कों हम
बिसराएँ किसन।
"बिरह-बेदना
ब्रज-बासिन की दौलत है"॥
खसबुअन के बासतें खुद
धूप गूगर ह्वै गए – नवीन
खसबुअन के बासतें खुद
धूप गूगर ह्वै गए।
देख लै दुनिया हम’उ तेरे बरब्बर ह्वै गए॥
अब न कोऊ चौंतरा लीपै न
छींके ही धरै।
कैसे-कैसे घर हते, सब ईंट-पत्थर ह्वै गए॥
एक बेरी साँच में
घनश्याम नें बोल्यौ हो झूठ।
तब सों ही ऊधौ हमारे
द्रग समन्दर ह्वै गए॥
जैसें तैसें आदमीयत कौ
हुनर सीख्यौ मगर।
लोमड़िन के राज में हम
फिर सों बन्दर ह्वै गए॥
ऐसी अदभुत बागबानी कौन
सों सीखे 'नवीन'।
ऐसे-ऐसे गुल खिलाए खेत
बंजर ह्वै गए॥
बस वे ही चाँद सितारे'न कों समझ पामें हैं – नवीन
बस वे ही चाँद सितारे'न कों समझ पामें हैं ।
इस्क बारे ही इसारे'न कों समझ पामें हैं ॥
खुद नदी चीर कें बढबे की
हवस में साहब ।
हम कहाँ कटते किनारे'न कों समझ पामें हैं ॥
फूँक भर कें जो उड़ामें
हैं - न समझंगे वे ।
बस गुबारे ही गुबारे'न कों समझ पामें हैं ॥
आज कौ दिन हू जिरह करते
भये बीत गयौ।
खास मनुआ ही खसारे'न कों समझ पामें हैं ॥
आप के हक्क में अब आप
सों बिछड़ेंगे हम ।
बे-सहारे ही सहारे'न कों समझ पामें हैं ॥
जो मुकद्दर कौ भँवर काट
कें उबरे हैं 'नवीन'
।
वे ही तकदीर के मारे'न कों समझ पामें हैं ॥
जीउ जब उन के जमाने सों
उचट जामें हैं – नवीन
जीउ जब उन के जमाने सों
उचट जामें हैं।
नेह के मेह सनेहिन सों
लिपट जामें हैं॥
रोय, हँस-बोल कें इक रोज निमट जामें
हैं।
"दिन मुसीबत के
हरिक हाल में कट जामें हैं"॥
नेह इरझात कहाँ? नेह तौ सुरझावैट है।
नैन य्हाँ इरझे वहाँ
फन्द सुलट जामें हैं॥
हम कहा जानें जबान और
बफा की कीमत।
हम तौ हर दिन ही कसम खाय
पलट जामें हैं॥
राधे रानी जू अगर रूठें
तौ रूठें हू कब।
अब तौ कान्हा ई बिना बात
बिनट जामें हैं॥
बाय मिल पाय कछू टैम तौ
कछ बात बनै।
जायबे कों तौ हमूँ बा के
निकट जामें हैं॥
ऐसे लोगन कों तनिक
बुद्धि बखस देउ प्रभू।
जो कि सण्डे कों अचानक
ही प्रगट जामें हैं॥
हम कों रँगियो तौ फकत
प्रीत के रंगन सों 'नवीन'।
और सब रंग तौ द्वै दिन
में उकट जामें हैं॥
हमारे काम न आई कबू
बफादारी – नवीन
हमारे काम न आई कबू
बफादारी।
हमारे संग हमेसा रही है
लाचारी ॥
बतामें कों'नें कि सब तौ समझ न पामंगे।
हमें डरान लगी है हमारी
खुद्दारी ॥
दवा नें काम कियौ तब
हमें समझ आयौ।
कि कौन-कौन के हक में
रही है बीमारी॥
हमें बचाने हे पुरखन के
सन्सकार मगर।
बनाय डारौ समय नें हमें
हू ब्यौपारी॥
नयी हवा कों पुरानी महक
चखानी है ।
चलौ 'नवीन' चतुर्दिक
लगामें फुलबारी॥
बहुत उत्तम,
जवाब देंहटाएं