31 जुलाई 2014

साहित्यम् - वर्ष 1 - अङ्क 6 - जुलाई-अगस्त' 2014

सम्पादकीय

पिछला अङ्क आने के बाद लोगों लोगों ने उसे सराहा। इसी सराहना क्रम में एक सज्जन का फोन आया। उन्हों ने कुछ ज़ियादा ही सराहा। इस शैशव-प्रयास को न जाने किन-किन अलङ्कारों से नवाज़ा। अपनी तारीफ़ किसे बुरी लगती है सो हम भी हो रही तारीफ़ों के गुब्बारे में बैठ कर सैर कर रहे थे। परन्तु मन ही मन लग रहा था कि ये कुछ ज़ियादा ही तारीफ़ नहीं हो रही? सो फौरन ही सवाल किया

भाई साहब आप ने अङ्क पढ़ा?
अरे जनाब मैं तो इन्तज़ार में रहता हूँ कि कब साहित्यम आये और मैं उसे पढ़ूँ।
शुक्रिया। आप को साहित्यम में क्या अच्छा लगा?
हर काम अच्छा है साब। कविता, कहानी, ग़ज़ल या व्यंग्य सब कुछ। चुट्कुले [?] और वर्ग-पहेली [?] तो मुझे बहुत अच्छे लगते हैं।
[मैं ने सोचा यार अपने साहित्यम में न तो चुट्कुले आते हैं न वर्ग-पहेली। ये जनाब किस का ज़िक्र कर रहे हैं? फिर भी कन्ट्रोल करते हुये...]
आप का कोई अच्छा सुझाव हो तो ज़रूर दीजियेगा।
हाँ-हाँ, मेरा एक सुझाव है कि आप साहित्यम में छंदों और गीतों को भी शामिल करें।

अब मेरा पारा सटकने की बारी थी। बिना गाली-गलोच वाली भाषा में जो कुछ भी थमा सकता था, थमा दिया। साथ ही मन में बड़ा क्षोभ हुआ और एक प्रश्न भी उपस्थित हुआक्या वाक़ई लोग पढ़ते हैं उसे जो हम ढूँढ-ढूँढ कर एकत्रित कर रहे हैं? इस विषय पर नरहरि जी से बात हुई तो उन्हों ने कहा कि “लोग तो उस पेज को भी नहीं पढ़ते जिस पर वो ख़ुद छपे होते हैं। यक़ीन न आये तो किसी की रचना में बदलाव कर के छाप कर देख लीजिये। कोई जैबिल्ला ही पलट कर आयेगा।“ अब क्या कहिये उन स्वनाम-धन्य साहित्यकारों को जो साहित्य की दुर्दशा को ले कर दिन-रात दुखी रहते हैं।

पिछले दिनों आदरणीय श्री तुफ़ैल चतुर्वेदी जी की माता जी श्रीमती शरद चतुर्वेदी जी एवम मुम्बई में रहने वाले प्रख्यात हास्य-मूर्ति हुल्लड़ मुरादाबादी जी का देहावसान हुआ। परम पिता परमेशर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्माओं को चिर-शान्ति एवम परिवारी जनों को इस वज्राघात को सहन करने की शक्ति प्रदान करें। 

साहित्यम में साहित्य से जुड़ी बातें होना सामान्य बात है। कुछ लोगों मे अलग-अलग समय पर मयङ्क अवस्थी जी को अलग-अलग व्यक्तियों का शागिर्द न सिर्फ़ समझा बल्कि ज़ाहिरन कहा और लिखा भी। मयङ्क जी पूर्व में भी इस बात पर कई बार स्पष्टीकरण दे चुके हैं कि उन का कोई भी उस्ताज़ नहीं है। एक बार स्वयं मैं भी ऐसे दो व्यक्तियों से इस बात की पुष्टि कर चुका हूँ। मगर लोग हैं कि उन्हें न पढ़ना है न सुनना बस अपनी बातों को दन्नाये जाना है। मयङ्क जी इस प्रकरण से काफ़ी व्यथित हुये और उन्हों ने अपना दुख मेरे साथ साझा किया। अपना दायित्व समझते हुये मुझे लगा कि इस बात को स्पष्ट कर देना ठीक रहेगा।

मोदी साहब ने मंत्रियों और अफसरों को काम पर लगाया हुआ है इस बात के समाचार निरन्तर मिल रहे हैं। अच्छे दिनों वाले समाचार का इंतज़ार है। हम समझ सकते हैं कुछ समय लगेगा। कुछ महीनों का इंतज़ार करने में हर्ज़ है भी नहीं।

इस अङ्क से हम ने कुछ नये प्रयास आरम्भ किये हैं और आशा करते हैं आप लोगों को पसन्द आयेंगे। साहित्यम की वैविध्य-पूर्ण गुणवत्ता बनाये रखने के लिये अब से इसे त्रैमासिक किया जा रहा है। अगला अंक अक्तूबर के अन्त में आयेगा। समस्त रचनाधर्मियों / सहयोगियों से साग्रह-विनम्र-निवेदन है कि अपनी-अपनी अच्छी रचनाएँ / अपना-अपना सङ्क्लन वर्ड फाइल में यूनिकोड में ठीक से टाइप कर के शीघ्रातिशीघ्र भेजने की कृपा किया करें। जो सहयोगी किसी कारण-वश कुछ समय से समय नहीं निकाल पा रहे थे, आशा करते हैं कि उन का योगदान अगले अङ्क में अवश्य मिलेगा। हर वह व्यक्ति जिस ने प्रत्यक्ष / परोक्ष रूप से इस अङ्क को पूर्णत्व पर पहुँचाने में सहायता की, उस का हृदयातल से बारम्बार आभार। नमस्कार।

सादर

नवीन सी. चतुर्वेदी
 


साहित्यम्  अन्तरजालीय पत्रिका / सङ्कलक

जुलाई-अगस्त 2014      वर्ष – 1 अङ्क  6

विवेचना                       मयङ्क अवस्थी
                                    07897716173

छन्द विभाग                 संजीव वर्मा सलिल
                                    9425183144

व्यंग्य विभाग               कमलेश पाण्डेय
                                    9868380502

कहानी विभाग             सोनी किशोर सिंह
                                    8108110152

राजस्थानी विभाग        राजेन्द्र स्वर्णकार
                                    9314682626

अवधी विभाग               धर्मेन्द्र कुमार सज्जन
                                    9418004272

भोजपुरी विभाग            इरशाद खान सिकन्दर
                                    9818354784

विविध सहायता           मोहनान्शु रचित
                                   9457520433  
                                   ऋता शेखर मधु

सम्पादन                      नवीन सी. चतुर्वेदी
                                    9967024593

अनुक्रमाणिका
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कहानी - क्राइम बीट – सोनी किशोर सिंह

व्यंग्य - कुछ फेयर और हैंडसम प्रश्नोत्तर - आलोक पुराणिक

व्यंग्य - संदेसे आते हैं, हमें फुसलातेहैं! - नीरज बधवार

व्यंग्य पेड़ों से जुड़े उद्योग- एक ताज़ा रिपोर्ट - कमलेश पाण्डेय

दो व्यंग्य आलेख - अनुज खरे

व्यंग्य - निमंत्रण से धन्य हुआ सुदामा - मधुवन दत्त चतुर्वेदी

व्यंग्य - राष्ट्रीय मौसम - शरद सुनेरी

दो कवितायें - सञ्जीव निगम

दो कवितायें - सुमीता प्रवीण केशवा

प्रीत के अतीत से - जितेन्द्र 'जौहर'

पेङ, पर्यावरण और कागज – नवीन सी. चतुर्वेदी

नज़्म - रिश्वत – जोश मलीहाबादी

एक हाइकु - भगवत शरण अग्रवाल

तकलीफ़ों के बाद तनिक आराम है - डा. राम मनोहर त्रिपाठी

यह मेरा अनुरागी मन - सरस्वती कुमार ‘दीपक’

मैं ने देखा है धरती को बड़े पास से - पुरुषोत्तम दुबे

देहरी क्यों लाँघता है आज गदराया बदन - ब्रजेश पाठक मौन

ओ विप्लव के थके साथियो - बलबीर सिंह रङ्ग

मैं प्रकाश की गरिमा को पहिचान सका - रामचन्द्र पाण्डे श्रमिक

एक तुम्हारा साथ क्या मिला सारे तीरथ धाम हो गये - मधु प्रसाद

आज साफ़ की अलमारी, कुछ पत्र पुराने पाये - डा. कमलेशद्विवेदी

ढल न जाये ज़िन्दगी की शाम आओ प्यार कर लें - डा. उर्मिलेश

बेच दो ईमान तुम, दुनिया की दौलत लूट लो - नीलकण्ठतिवारी

दोहे – बी. के. शर्मा ‘शैदी’

दोहे – सुशीला शिवराण

दोहे – सुमन सरीन

दोहे – शैलेन्द्र शर्मा

छन्द और मुक्तक - सागर त्रिपाठी

दोहे – नवीन सी. चतुर्वेदी

सोरठे – नवीन सी. चतुर्वेदी

प्यार का दीप किसी राधा ने बाला होगा - महीपाल

अपनी-अपनी कारस्तानी - शैल चतुर्वेदी

ऐसे भक्तों की भीड़ आई है सहमे-सहमे सभी नज़ारे हैं - श्री हरि

वो भली थी, या बुरी, अच्छी लगी - दानिश भारती

4 ग़ज़लें - मेराज फैज़ाबादी

3 ग़ज़लें - नीरज गोस्वामी

3 ग़ज़लें - पवन कुमार

रूई डाल के सोये हो क्या कानों में - अखिल राज

7 ग़ज़लें मयङ्क अवस्थी

3 ग़ज़लें इरशाद खान सिकन्दर

वेद-पुराण और उपनिषदों का पीछा कर के - नवीन

फ़ुजूल चुलबुले जुमलों की ओर क्यों ले जाऊँ - नवीन

भर दुपहरी में कहा करता है साया मुझ से - नवीन

भोजपुरी गजलें - पवन श्रीवास्तव

भोजपुरी गजलें - इरशाद खान सिकन्दर

भोजपुरी गजल - मन में नेह के तार बहुत बा - देवेंद्र गौतम

अवधी गजल – राति भ तौ भिनसार भी होये - सागर त्रिपाठी

चन्द अशआर - सङ्कलन कर्ता – हिरेन पोपट

मस्तानी यादें - राजू

प्रयोग - नव कुंडलिया 'राज' छंद

प्रयास – कविता कोष - ललित कुमार

जीवन व्यवहार - सदाचार - आनन्द मोहनलाल चतुर्वेदी

छन्दालय - 9 मात्रा वाले छन्द - आ. सञ्जीव वर्मा 'सलिल'




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2 टिप्‍पणियां:

  1. दादा प्रणाम
    एक साथ कई विषयों को स्पर्श करता हुआ खरा सम्पादकीय
    साहित्यम के प्रति आपका समर्पण प्रेरणादायी है

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