31 जुलाई 2014

एक तुम्हारा साथ क्या मिला सारे तीरथ धाम हो गये - मधु प्रसाद

एक तुम्हारा साथ क्या मिला
सारे तीरथ धाम हो गये
छन्द, बिना लय-ताल-सुरों के –
वेद ऋचा औ साम हो गये

अनगिन शैल-प्रवाल बह गये
एक तुम्हारे दुलराने में
कङ्कड़-पत्थर सीप बन गये,
आँखों के घर तक आने में
एक तुम्हारा साथ क्या मिला
आज दर्द नीलाम हो गये
एक तुम्हारा साथ क्या मिला सारे तीरथ धाम हो गये

धूप, धूप लगती थी पहले,
पर, अब, मेघ, तरल लगते हैं
कठिन-कठिन सारे प्रश्नों के,
उत्तर सहज-सरल लगते हैं 
एक तुम्हारा साथ क्या मिला
सपनों के भी दाम हो गये
एक तुम्हारा साथ क्या मिला सारे तीरथ धाम हो गये

अन्तर के मधुमय कोषों में
छिपी हुईं मधु-स्मृतियाँ क्षण की
दिनकर के उगते ही उभरीं,
स्वर्ण-रश्मियाँ आत्म-मिलन की
एक तुम्हारा साथ क्या मिला
प्रेमिल आठों याम हो गये
एक तुम्हारा साथ क्या मिला सारे तीरथ धाम हो गये

रूपान्तरित हुआ है जीवन,
अर्थ मिला है हर तलाश में
सहज हो रही शब्द-साधना,
भक्ति-पूर्ण पावन उजास में
एक तुम्हारा साथ क्या मिला

गीत-गीत अभिराम हो गये 
एक तुम्हारा साथ क्या मिला सारे तीरथ धाम हो गये

:- मधु प्रसाद

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