सोरठे – नवीन सी. चतुर्वेदी

 कन्या का कौमार्य - उस का ही जिम्मा नहीं।
सुनो गौर से आर्य! - ये हम पर भी फ़र्ज़ है॥

हरिक सार का सार - दो बातों में है निहित।
मधुकर की मनुहार - और कली का उन्नयन॥

सच पर नहीं विवाद - किन्तु झूठ ये भी नहीं।
हरिश्चन्द्र के बाद - सत्यवादिता कम हुई॥

डीजल वाली नाव - जब से हम खेने लेगे।
मत्स्य-मनस के घाव - दिन-दूने बढ़ने लगे॥

भरते हैं आलाप - मन-मृदंग सँग हर सुबह।
घोड़ों की पदचाप - बायसिकिल की घण्टियाँ॥

क्या बतलाऊँ यार - पहले हर दिन पर्व था।
पर अब तो त्यौहार - भी लगते हैं बोझ से॥

वो अपना अवसाद - भला भूलते किस तरह।
बारह वर्षों बाद - जिन को लाक्षागृह मिला॥

निष्कासन के तीर - ले कर सब तैयार हैं।लंका वाली पीर - कोई भी हरता नहीं॥

कैसे होती बन्द - पुरखों की छेड़ी बहस।
हम बोले मकरन्द - वो पराग पर अड़ पड़े॥

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.

विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.