31 जुलाई 2014

अवधी गजल – राति भ तौ भिनसार भी होये - सागर त्रिपाठी

राति भ तौ भिनसार भी होये
कजरी भै उजियार भी होये

देखा हियाँ गुलाब खिला बा
इहीं कतौ फिर खार भी होये

नदी इहाँ ठहरी-ठहरी बा
लख्या इहीं घरियार भी होये

सब से पीछे खड़ा अहें जो
उन के कछु दरकार भी होये

फक्कड़ बौडम भलें लगें ये
इन कै घर परिवार भी होये

सच सूली पे लटकावा बा
खुलि के अत्याचार भी होये

राम इहीं से उतरे 'सागर'

अपनौ बेड़ा पार भी होये 

:- सागर त्रिपाठी
9920052915

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