31 जुलाई 2014

चन्द अशआर - सङ्कलन कर्ता – हिरेन पोपट

शब्-ए-विसाल है गुल कर दो इन चरागों को
ख़ुशी की बज़्म में क्या काम जलनें वालों का !
- मोमिन खाँ मोमिन

मैंने इस डर से लगायें नहीं ख़्वाबो के दरख़्त
कौन जंगल में उगेँ पेड़ को पानी देगा !
- दाराब बानो वफ़ा

रतजगे, ख्वाब-ए-परीशाँ से कहीं बेहतर है,
लरज़ उठता हूँ अगर आँख ज़रा लगती है ।
- अहमद फ़राज़

कितनी मासूम सी तमन्ना है...
नाम अपना तेरी ज़बां से सुनूँ...
- शहरयार

जिस ख़त पे ये लगाई उसी का मिला जवाब ...
इक मोहर मेरे पास है दुश्मन के नाम की...
- दाग दहेलवी

सोचो तो सिलवटों से भरी है तमाम रूह
देखो तो इक शिकन भी नहीं है लिबास में
- शकेब जलाली

काबे जाने से नहीं कुछ शेख़ मुझको इतना शौक़
चाल वो बतला कि मैं दिल में किसी के घर करूँ
- मीर तक़ी 'मीर

रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएगी
देखना ये है चराग़ों का सफ़र कितना है
- वसीम बरेलवी

फ़िक्र यह थी के शब् ए हिज्र कटेगी क्यूँ कर,
लुत्फ़ यह है के हमें याद न आया कोई
- नासिर काज़मी

भूले है रफ़्ता-रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए
- खुमार बाराबंकवी


खिलोने पा लिये मैंने लेकिन,
मेरे अंदर का बच्चा मर रहा है।
- परवीन शाकिर

नई सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है
ये सहर भी रफ़्ता-रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे
- शकील बदायूनी

ना जाने शाख से कब टूट जाये
वो फूलों कि तरह हँसता बहुत है
- नुसरत बद्र

हर शख्स़ दौड़ता है यहाँ भीड़ की तरफ
फिर यह भी चाहता है, उसे रास्ता मिले
- वसीम बरेलवी

किसी को जब मिला कीजे सदा हँस कर मिला कीजे
उदास आँखों को अक्सर लोग जल्दी भूल जाते हैं
- ए.एफ.'नज़र'

हर वफ़ा एक जुर्म हो गोया
दोस्त कुछ ऐसी बेरुख़ी से मिले
- सुदर्शन फ़ाकिर

# हिरेन पोपट 9824203330

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