फ़ुजूल चुलबुले जुमलों की ओर क्यों ले जाऊँ
ग़ज़ल को सिर्फ़ लतीफ़ों की ओर क्यों ले जाऊँ
ग़ज़ल की रूह ज़मानों की प्यास ढोती है
पराई प्यास पियालों की ओर क्यों ले जाऊँ
नहीं ये बात नहीं है कि भीड़ से है गुरेज़
मगर तलाश तमाशों की ओर क्यों ले जाऊँ
न जी भरा है सफ़र से न ही थका है बदन
अभी से नाव किनारों की ओर क्यों ले
जाऊँ
जिरह के मोड़ कई रासते सुझाते हैं
अभी से बह्स नतीज़ों की ओर क्यों ले
जाऊँ
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22

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