ख़्वाब जैसा ही इक रतजगा हो गया
मैं तेरी हो गई तू मेरा हो गया
ये वही वक़्त था ये वही शाम थी
हम क़रीब आ गए और क्या हो गया
चाँदनी हो के मैं झील में घुल गई
रात होते ही तू चाँद सा हो गया
फिर वो तेरे ख़यालों के बादल घिरे
कितना दिलकश ये रँग -ए- फ़ज़ा हो गया
तूने इतनी मोहब्बत से देखा मुझे
मेरे एहसास में सब नया हो गया
तुझसे तुझसा ही कोई हुआ जो अलग
मुझसे मुझसा ही कोई जुदा हो गया
कुछ न हासिल हुआ इस सफ़र से मगर
कम से कम रास्ता तो पता हो गया
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