हैं साथ इस खातिर कि दौनों को रवानी चाहिये
पानी को धरती चाहिए धरती को पानी चाहिये
हम चाहते थे आप हम से नफ़रतें करने लगें
सब कुछ भुलाने के लिए कुछ तो निशानी चाहिये
उस पीर को परबत हुए काफ़ी ज़माना हो गया
उस पीर को फिर से नई इक तर्जुमानी चाहिये
हम जीतने के ख़्वाब आँखों में सजायें किस तरह
लश्कर को राजा चाहिए राजा को रानी चाहिये
कुछ भी नहीं ऐसा कि जो उसने हमें बख़्शा नहीं
हाजिर है सब कुछ सामने बस बुद्धिमानी चाहिये
लाजिम है ढूँढें और फिर बरतें सलीक़े से उन्हें
हर लफ्ज़ को हर दौर में अपनी कहानी चाहिये
इस दौर के बच्चे नवाबों से ज़रा भी कम नहीं
इक पीकदानी इन के हाथों में थमानी चाहिये
पानी को धरती चाहिए धरती को पानी चाहिये
हम चाहते थे आप हम से नफ़रतें करने लगें
सब कुछ भुलाने के लिए कुछ तो निशानी चाहिये
उस पीर को परबत हुए काफ़ी ज़माना हो गया
उस पीर को फिर से नई इक तर्जुमानी चाहिये
हम जीतने के ख़्वाब आँखों में सजायें किस तरह
लश्कर को राजा चाहिए राजा को रानी चाहिये
कुछ भी नहीं ऐसा कि जो उसने हमें बख़्शा नहीं
हाजिर है सब कुछ सामने बस बुद्धिमानी चाहिये
लाजिम है ढूँढें और फिर बरतें सलीक़े से उन्हें
हर लफ्ज़ को हर दौर में अपनी कहानी चाहिये
इस दौर के बच्चे नवाबों से ज़रा भी कम नहीं
इक पीकदानी इन के हाथों में थमानी चाहिये
: नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे रजज मुसम्मन सालिम
2212 2212 2212 2212
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 12/12/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteगज़ब की गज़ल है!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-12-2012) के चर्चा मंच-१०८८ (आइए कुछ बातें करें!) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
इस दौर के बच्चे नवाबों से ज़रा भी कम नहीं
ReplyDeleteइक पीकदानी इन के हाथों में थमानी चाहिये
:)
सही कहा !!
गंगा निकली भी, बही भी
ReplyDeleteबहुत प्रभावशाली
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ... वाकई नयी तर्जुमानी चाहिए
ReplyDeleteहैं साथ इस खातिर कि दौनों को रवानी चाहिये
ReplyDeleteपानी को धरती चाहिए धरती को पानी चाहिये.
बहुत सुंदर.
bahut sunder naveen ji
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत...:)
ReplyDeleteलाजिम है ढूँढें और फिर बरतें सलीक़े से उन्हें
ReplyDeleteहर लफ्ज़ को हर दौर में अपनी कहानी चाहिये
इस दौर के बच्चे नवाबों से ज़रा भी कम नहीं
इक पीकदानी इन के हाथों में थमानी चाहिये.
वाह ...बेहतरीन गजल
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है बेतुकी खुशियाँ
लाजिम है ढूँढें और फिर बरतें सलीक़े से उन्हें
ReplyDeleteहर लफ्ज़ को हर दौर में अपनी कहानी चाहिये
इस दौर के बच्चे नवाबों से ज़रा भी कम नहीं
इक पीकदानी इन के हाथों में थमानी चाहिये.
वाह ...बेहतरीन गजल
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है बेतुकी खुशियाँ
बहुत बढ़ियाँ गजल...
ReplyDelete:-)