11 मई 2020

कोरोना काल और फेसबुक लाइव सेशन - ब्रजभाषा व्यंग्यालेख

जय श्री कृष्ण । राधे राधे ।

 

भैया यै भूतनी कौ करोना जो न दिखावै सो थोरौ है । यानें जीव-जिनावरन पै बड़ी किरपा करी है । कबूतरन कों मुक्तगगन में विचरिवे कौ लाइसेंस दै दियौ है और मनुष्यन कों फ्लैटन में यानि कबूतरन के दड़वन में कैद कर दियौ है । दारू-गुटखा भलें ही महँगे कर दिये हैं मगर पेट्रोल-डीजल यानि तेलन कौ तेल निकार दीनों है । रोज-रोज लेक्चर पेलिवे वारे नेतन कों भाषणन के लाले परवाय दीने हैं तौ घर-घर बैठे वॉट्सऐप-फेसबुक वीरन के हाथन में माइक पकराय दीने हैं ।

 

फेसबुक सों याद आयौ कि आजकल फेसबुक लाइव की फैसन चल निकसी है । जहाँ देखौ वहीं फेसबुक लाइव । कहुँ फेसबुक-ग्रुपन पै लाइव सेशन चल रहे हैं तौ कहूँ फेसबुक पेजन पै; और भैया जिनकों कोउ भाव नाँय दै रह्यौ वे अपने चेला-चपाटेन के थ्रू अवतरित है रहे हैं । लाइव-सेशनन के कछु प्रेमी विन भँगडिन के जैसे हैं जिन्हें न तौ कोउ बगीची-अखाड़े वारौ बुलाय रह्यौ है और न ही वे बिचारे रोज-रोज चेला-चपाटेन के लिएँ फ्री की छनवाय सकें । तौ भैया ऐसे पीर-फकीर अपने-अपने छज्जे-छजली यानि अपनी-अपनी टाइमलाइनन सों अभिव्यक्त है रहे हैं ।

 

अच्छा, एक बात और देखी कि लाइव सेशन काहु भी ग्रेड कौ होय यानि भलें ही कोऊ नफीरी-बैंड-बाजे वारी बरात होय या कड़ी-कड़क्का वारी या करोना काल की वर्च्युयल वेडिंग टाइप; हाजिरीन पाँच-पच्चीस या भौत सों भौत सौ-पचास ही दिखवे में आय रहे हैं । भैया जैसें सहालगन में सब बराबर ऐसें ही करोना काल में हु सब बराबर । माल मिलै तौ भीर हु जुरै । जैसे जिजमान वैसे प्रावधान ।

 

जा तरियाँ ब्याउ-बरातन में सब जगें रिस्ते निभाने परें ऐसें ही इन फेसबुक लाइवन में हु भैया फोर्मेलिटी निभानी ही परै है । वेडिंग कार्ड की तरह पहिले सों सूचित कर दियौ जावै कि कौन सौ बकरा कब कहाँ शहीद होनों है । फिर सेम डे हु इन्फॉर्म कियौ जावै कि भैया भूल मत जइयौ आप कौ ही कार्यक्रम है आप कों जरूर आनों है ।

 

अब भैया हर दिन चार-चार पाँच-पाँच और कबू-कबू तौ लैन लगाय कें लाइव-सेशन होमें हैं । समय लगभग सबन्ह कौ सेम । अब बराती का करै वाय तौ सब सों रिस्ते निभाने हैं । या तौ वौ शहीद है चुकौ है जा में सब नें रिस्ते निभाये हुते या वा की या वा के घर के काहु की शहादत ड्यू है । यानि हर तरह सों रिस्ते तौ निभाने ही हैं ।

 

अभी कछ दिन पहिले की ही बात है साब हम बड़े बन-ठन कें मतलब मन ही मन में बन-ठन कें निछावर करिवे यानि लाइव-सेशनन में हाजिर हैवे कों निकसे ।

 

सब सों पहिलें झगड़ू झाँसवी के सेशन में गये । शायरी में इनकौ भौत बड़ौ नाम है साब । पचास माँगें और दस ते कम पै तौ ये यवे सहर में हु माइक हाथ में नाँय लेमें। कोरोना जो न करावै सो थोरौ । आजकल बिचारे फ्री में मुसायराय रहे हैं । तौ साब हमनें का देखौ कि झाँसवी साब पसीना-पसीना है रहे हुते । लै-दै कें 18 व्यूअर दिख रहे हुते । भैया कवि-सम्मेलन मुसायरेन में तौ सामनें भलें ही पच्चीस हु न बैठे होंय परंतु विनकी दाद और बीच-बीच में खाज यानि तारी (कबू-कबू सरोता हाथ खुजायवे के लिएँ हु तारी बजायवे के उपक्रम करें हैं) की अवाज सुनि-सुनि कें माइकेश्वर में ऊर्जा कौ संचार होतौ रहै । फेसबुक लाइव में तौ पतौ ही नाँय चलै । हमनें जब झाँसवी साब कों झूला झूलते देखौ तौ वहाँ सों चुपचाप निकस लैवौ ही ठीक समझौ ।

 

फिर हम पहुँचे सुन्दरी संतो सीतापुरी के सेशन में । संतो जी भौत ही मलूक सायरा हैं साब । एकदम शोले की बसंती टाइप । बड़े ही लटके-झटके दिखाय कें काव्य पाठ करें हैं । इन के यहाँ साब पूरे पेंसठ व्युअर अपनी-अपनी बीन बजाते भए जमे भए दिखे । ये बीन बजामें और संतो जी झूम-झूम कें दिखामें सॉरी सॉरी काव्य पाठ करें । जहाँ पहिले सों ही पेंसठ बीन बज रही होंय वहाँ अपनी पींपनी की का बखत सो भैया हम वहाँ सों हु सटक लिये ।

 

अब हम पहुँचे एक नवोदित शायर जौन जयपुरी के सेशन में । हम एंट्री लै कें कछु सुनिवे कौ उपक्रम करते वा सों पहिलें ही जौन साब बोले अरे क्या बात है आज तो हमारी बज्म में नवीन साहब भी तशरीफ लाये हैं । भैया हम भोंचक्के रह गये । पिछली दो बरातन में तौ काहु नें घास हु न डारी और यहाँ तौ आते ही वेलकम । मन प्रसन्न है गयौ साब । एक ही मिनट में हम अपने आप कों मीर-गालिबन की पंगत में बिराजमान महसूसवे लगे । परन्तु भैया हमारी खुसी भौत देर तक टिक न सकी । अब तौ साब जौन जयपुरी साब हर शेर यै ही कह कें पढ़ें नवीन साब ये शेर बतौरे-खास आप की खिदमत में पेश कर रहा हूँ और शेर कैसे-कैसे हुते एक बानगी देखौ

 

तू चौदवीं का चाँद है न आफताब है ।

पर क्या करें गुलाबो तेरा बाप नवाब है ॥

 

अब साब ऐसे शेरन पै का दाद देवें और कब तक दाद देवें । चुप रह जामें तौ पट्ठा टोकिवे लगै नवीन साब एम आय औडिबल? यानि नवीन साब क्या आप मुझे सुन पा रहे हैं? बड़े ही मरे मन सों कहनों परै वा साब वा । अपनी हालत ऐसी है गयी मानों घर सों तीन जगें निछावर करिवे कों निकसे होहु और पहिली अगयौनी (घुड़चढ़ी) में ही दूल्हे राजा के बाप नें आप कौ हाथ पकर लीनों होय । ऐसे में और करौ हु का जाय सकै । बस प्रतीक्षा करी जाय सकै काहु और रिसतेदार के आयवे की जा कौ हाथ पकारिवे के लिएँ दूल्हे राजा के पिता श्री हमारौ हाथ छोड़ें । सो भैया हमनें हु प्रतीक्षा करिवौ ही ठीक समुझौ । अगलौ शेर

 

दुखड़े भरी हैं ये जीवन की राहें ।

ऐसे में हमें चाहिए आप की बाँहें ॥

 

साब मन में आयौ कि साले कों पकरि कें द्वै-चार जमाय देंय फिर सुन्दरी संतो सीतापुरी जी की याद आय गयी । सोची या में तौ जमाय देउगे लल्ला परन्तु संतो की तरफ नेंक आँख हु तरेरी तौ वे पेंसठ बीन-बाज तुमारी खटिया खड़ी कर दिंगे । मन मसोस कें चुप्प रहिवौ ही नीकौ लगौ साब ।

 

कछु ही देर बाद ऊपर वारे नें हमारी सुन लीनी साब । यहाँ एक और रिस्तेदार आय कें टपकौ वहाँ हमारौ हाथ मुक्त भयौ और साब फिर कौन रुकै हम ये गये वे गये और नौ दो ग्यारह यानि अंतर्ध्यान है गये । जान बची और लाखों पाये । लौट कें कवि जी घर कों आये ।

 

नवीन सी चतुर्वेदी

मुम्बई
9967024593