9 जुलाई 2012

अजनबी हरगिज़ न थे हम शहर में - नवीन

अजनबी हरगिज़ न थे हम शहर में। 
वक़्त ने कुछ देर से जाना हमें।। 

उलझनों से वासता तक था नहीं। 
क्या मज़े थे माँ तुम्हारी गोद में।। 

चाशनी हो जिस की बातों में हुज़ूर। 
वो ही पाता है जगह बाज़ार में।। 

अब हिफ़ाज़त का हुनर सिखलाएँगी। 
मछलियाँ जो फँस न पायीं जाल में।।

मैं ने ही धक्का दिया होगा मुझे। 
तीसरा था ही न कोई रेस  में।। 

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे रमल मुसद्दस महजूफ
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलुन

2122 2122 212