01.11.2025


नमस्कार

 

पर्वों के गुलिस्तान हिन्दुस्तान के कहने ही क्या. एक के बाद एक उत्सवों का आनन्द ले रहे हैं हम लोग. सभी उत्सवों की सभी साहित्यानुरागियों को ढेर सारी बधाइयाँ. उत्तरोत्तर अपने गन्तव्य की दिशा में अग्रगामी वेबपोर्टल साहित्यम के वर्तमानाद्यातन के साथ हम पुनः उपस्थित हैं. 

एक रोचक दास्तान - वाक़ई 'नाम चलने लग गया'

एक बात बहुत अधिक सुनने में आती थी कि बड़े प्रोग्राम्स को छोड़ दें तो लोग टिकट लेकर सनीमा तो देख सकते हैं मगर किसी कवि को सुनने नहीं जाते. 

शायरी आज भी कंटेंट नहीं आर्ट ही है

इस बात में कोई दो राय नहीं कि सोश्यल मीडिया की इस अन्धी दौड़ में और विशेषकर बुलेट ट्रेन की स्पीड में दौड़ती रीलों वाले इस दौर में शायरी नयी चुनौतियों से जूझ रही है.

नस्ल-ए-नौ भारत - जेन नेक्स्ट ऑफ शायरी 2025

पिछले कुछ वर्षों में मुंबई महानगरी में  शाइरी की लोकप्रियता में बहुत अधिक उठान आया है। इसका श्रेय जिन संस्थाओं के अथक प्रयासों को दिया जाता है उनमें इंशाद फाउंडेशन एक प्रमुख नाम बन कर उभरा है। 

राष्ट्रीय कवि संगम की महाराष्ट्र इकाई का पुनर्गठन

राष्ट्र जागरण धर्म हमारा के ध्येय वाक्य के अनुसार लेखनी का उत्तरदायित्व राष्ट्र के प्रति सकारात्मक और राष्ट्रवादी विचारों का जन जन में अलख जगाना कवियों का पवित्र कार्य रहा है। इसी उद्देश्य हेतु राष्ट्रीय कवि संगम का गठन किया गया तथा इसका प्रथम अधिवेशन दिल्ली में रखा गया। 

कविता - अपनी सीमा तय करते लोग - रीता दास राम

 


हमारे समय के लोग

बातें करते हैं, बातें करते रहते है, तब तक

जब तक बातें की जा सकें

कविता - प्रेम - सन्ध्या यादव


प्रेम ...

1)अपनी बेकारी के दिनों में

एक लोहे का कड़ा खरीद 

दिया था उसने जन्मदिन पर

आज भी सोने के कंगन

के साथ पहनती हूँ

"मंदिर का चढ़ावा है " पूछने पर

सवैया छन्द - गोपाल प्रसाद गोप

 


कविता की निराली है जाति घनी कवि के अधरान हँसै कविता।

कविता जु उमंग रहै हित सौं प्रिय के हिय माँहिं बसै कविता।

कविता इक प्रेम कौ आश्रय है, बिरहीन के नैन खसै कविता।

कविता कहूँ मंचन पै ठुमकै जु अमीरन कैं बिलसै कविता।

घनाक्षरी छन्द - आयुष चराग़

 


पर्णकुटी में तुम्हें न पाया जिस क्षण सीते!

उस क्षण से तुम्हीं को पाया कण कण में।

शब्दशः मन बसी छवि को उतार दिया

वन वासियों को दिये हुए विवरण में।

दोहे - यशपाल सिंह 'यश'

 

ऊपर अंबर मौन है, नीचे धरती शांत।

मोबाइल में ढूँढ़ता, पागल मन विश्रांत।।

गीत - आवरण मन के सारे हटा दीजिए – डॉ. राखी कटियार

 


आवरण मन के सारे हटा दीजिए

आवरण युक्त मन मिल सकेंगे नहीं

बाग़ सम्वेदना के लगेंगे  मगर

प्यार के फूल तो खिल सकेंगे नहीं

नवगीत - बहुत दिनो के बाद मिली हो कैसी हो कमला - सीमा अग्रवाल

 


बहुत दिनो के बाद मिली हो

कैसी हो कमला?

नवगीत - कोयल की अमराई - राम निहोर तिवारी

 


कोयल की अमराई

कौओं के नाम

बन्धु इस व्यवस्था को

कोटिशः प्रणाम

बालगीत - आने को दीपावली - आशा पाण्डेय ओझा 'आशा'

 


आने को दीपावली, हो जाओ तैयार।

करें सफाई हर तरफ़ , करते ज्यों हर बार।।

भोजपुरी नवगीत - गइल भँइसिया पानी में – सौरभ पाण्डेय

 


गइल भँइसिया पानी में अब

कइल-धइल सब

बंटाधार !

व्यंग्य - हम गुटबाजी नहीं करते - अर्चना चतुर्वेदी

हम गुटबाजी से दूर रहते हैं ...

मठ बनाने वाले हमें सख्त नापसन्द हैं |

हम ग्रुप बनाते है, हम लोग एक दूसरे को चढाते हैं, किसी छठे को हम टिकने भी नहीं देते पर हम गुटबाजी से दूर रहते हैं |

लघुकथा - समझौता - सुरेश बरनवाल

दंगों में कत्लोगारत में शामिल थे वह दोनों। दोनों दूसरे धर्म के थे। इसलिए दोनों के दल एक-दूसरे पर हमला कर रहे थे। देर रात को जब पुलिस चारों तरफ़ फैल गई तो सभी दंगाई छिपते-छिपाते अपने-अपने घरों को जाने लगे। ऐसे में एक गली में अचानक वे दोनों अँधेरे में एक-दूसरे के सामने आ गए।

कहानी – प्रोफेशनल – जया आनन्द

आँखे सनी हों या आँखे भरी हों ,दोनो ही उदासियाँ बिखेरती हैं । आज आंखें भरी थी दो नहीं कई आँखें ,आँखों से बरस रही थी उदासियां उन बरसती उदासियों में एक चेहरा उभर रहा था साँवला  सा 

संस्कृत गजल - प्रभातं क्व यातं निशा पृच्छतीयम् - डॉ. लक्ष्मीनारायण पाण्डेय


संस्कृत (गज्जलिका भावानुवाद सहिता)

 

प्रभातं क्व यातं निशा पृच्छतीयम्

दिगन्तं तमः किं विभा पृच्छतीयम् ।

ब्रजगजल - लोहागढ़ की शान और आँखि’न कौ तारौ सूरजमल – सुरेन्द्र ‘सार्थक’

 


लोहागढ़ की शान और आँखि’न कौ तारौ सूरजमल

यों तो राजा भौत भये पर सबते न्यारौ सूरजमल

 

मुगल और अँगरेजन ते जब बडे बडे घबराय गए

दई कब्बडी, बीच खेत में खेंच्यौ फारौ, सूरजमल