21 जनवरी 2013

सोचता रहता हूँ उसको देखकर - आलम खुर्शीद

आलम खुर्शीद
ज़िन्दगी में अब तक न जाने कितने सारे 'अच्छे' रचनाधर्मी मिले हैं पर याद करने बैठूँ तो सहसा याद नहीं आते। इसीलिए अपने ब्लॉग पर वातायन के अंतर्गत ऐसे ख़ास रचनाधर्मियों को सहेजना शुरू किया है ताकि आप सभी के साथ मैं भी जब चाहूँ अलबम की तरह समय-समय पर गुजरे लमहात का आनंद ले सकूँ। आइये एक मतला पढ़ते हैं :-

देख रहा है दरिया भी हैरानी से।
हमने पार किया कितनी आसानी से।।

ये मतला पढ़ते ही मैं मुरीद हो गया था इस दौर के एक अज़ीम शायर मुहतरम आलम खुर्शीद साहब का। देश-विदेश में छपने वाले इस शायर की
ग़ज़लों को जिसने भी एक बार पढ़ा, इन का मुरीद हो गया। आइये इस गुण गाहक शायर के कुछ और अशआर और पढ़ते हैं:-

दो घड़ी के साथी को हमसफ़र समझते हैं
किस क़दर पुराने हैं हम नये ज़माने में 
*
आये हो नुमाइश में तो ये ध्यान भी रखना
हर शय जो चमकती है, चमकदार नहीं है 
*
जलेगा सुब्ह तलक या हवा बुझा देगी
ये सोचता ही नहीं मैं दिया जलाते हुये
 *
कहा था हमने फ़क़ीरों से दिल्लगी है बुरी 
सो देख! तेरा भी हँसना मुहाल कर तो दिया 
 मेरी प्रबल इच्छा थी कि आलम भाई की एक ग़ज़ल वातायन का हिस्सा बने। संकोच के साथ दरख़्वास्त की और आप ने सहर्ष एक ग़ज़ल भेज दी।

फूल की डाली है या शमशीर है
ऐ मुसव्विर ! ख़ूब ये तस्वीर है
शमशीर - तलवार, मुसव्विर - चित्रकार 
 
सोचता रहता हूँ उसको देखकर
ख़्वाब है या ख़्वाब की ताबीर है

चुप हूँ मैं और बोलती जाती है वो
सामने मेरे कोई तस्वीर है

भूल बैठा हूँ मैं तर्ज़े-गुफ़्तगू
उसकी बातों में अजब तासीर है

दिल खिंचा जाता है ख़ुद उसकी तरफ़
हाय ! कितना खूबसूरत तीर है

वो तो 'आलम' खूबसूरत हार है
तुम समझते थे जिसे ज़ंजीर है
:- आलम खुर्शीद

7 टिप्‍पणियां:

  1. आलम खुर्शीद जी से परिचय कराने एवं उम्दा गजल पढवाने के लिए आभार,,,

    आलम खुर्शीद जी अगर ब्लॉग लिखते हो तो कृपया
    लिंक दे,,,

    recent post : बस्तर-बाला,,,

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  2. सच में, बड़े सरल ढंग से अपनी बातें कहने में सिद्धहस्त हैं आलमजी।

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  3. नवीन जी !
    आप की मुहब्बतों का शुक्रिया किन शब्दों में अदा करूँ ..समझ में नहीं आता . बस दुआ करूँगा कि आप सलामत रहें और अच्छा ...बहुत अच्छा लिखते रहें ......!
    ग़ज़ल के प्रोत्साहन के लिए धीरेन्द्र जी . विजेन्द्र जी और प्रवीण पाण्डेय जी का बेहद शुक्रगुज़ार हूँ .

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  4. एक संज़ीदा ग़ज़लकार की उम्दा शायरी से ताअर्रुख कराने के लिए शुक्रिया, भाईजी.
    जिस मतले ने आपको चौंकाया और आपको इन आलम खुर्शीद साहब का मुरीद बना दिया, उस मतले पर हम भी क़ुर्बान हो गये.

    वैसे यह शेर भी कमाल का है -
    दो घड़ी के साथी को हमसफ़र समझते हैं
    किस क़दर पुराने हैं हम नये ज़माने में


    ग़ज़ब !

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  5. ग़ज़ल पर जब आम बहस होती है तो कुछ मुद्दे आम होते हैं -- दौरे हाज़िर का सबसे मक़बूल शायर कौन है?! कौन सबसे ज़ियादा मानीख़ेज़ कह रह है ?! किसे अर्से तक नहीं भुलाया जा सकता ?! कौन आइना कहलाने के क़ाबिल है ?! अदब के लिये सबसे क़ीमती नुमांइदगी किसकी है ?! वगैरह
    ये सारी बहसें चन्द नामों के इर्द-गिर्द घूमती हैं । तनक़ीदकारो के अपने नाम होते हैं ग़ज़ल को चाहने वालों के अपने अक़ीदे होते हैं –लेकिन ऐसी तमाम बह्सो की रोशनी यह साबित कर देती है कि – आलम खुर्शीद का नाम उन ज़रूरी और अमिट नामो मे शुमार है जिनके बगैर आज की गज़ल की चर्चा नही की जा सकती । उनकी शायरी ने एक ज़ाँविदानी सरहद पहले ही अपने नाम से मंसूब कर ली है और उसमें वो तमाम खूबियाँ अपने परवान के साथ मौजूद है जो किसी शायर को अज़ीम बनाती हैं और एक मोतबर मुक़ाम देती हैं । फिर भी मुझे ऐसा लगता है कि जिस मुक़ाम के वो दरअस्ल हक़दार हैं वो उन्हें तनक़ीदकारों ने अभी नहीं दिया है । सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि उनका नाम उर्दू अदब और देवनागरी में पढी जाने वाली ग़ज़ल की मैगज़ीनों में सबसे पसन्दीदा नामो में शुमार किया जाता है। कोई मैगज़ीन उनके नाम को अपनी इंडेक्स से गैरहाज़िर नही देखना चाहती और इसकी माकूल वज़्ह भी है -- उनकी ग़ज़लो में जो खूबी है –1) ख्याल की गौर तलब गहराई के साथ ज़बान की असानी 2) बयान अपने वक्त का आइना तो है ही साथ तारीख़ के उन तमाम वाकयात का दस्तावेज़ भी है जो इन हालात का सबब हैं 3) फिक्रो-फ़न के अरूज़ के साथ अवाम के जज़बात को अपने में समोने की एक ज़बर्दस्त ताकत समाहित है – वो अपना शिल्प ऐसे बुनते हैं कि पाठकों और सुनने वालों के दिलोजेहन की तमाम ज़रूरतो का ख्याल उसमें बाकायदा रहता है ।
    अपने पहले ही संकलन “ नये मौसमों के फूल” के साथ उन्होने अदब में वह दर्ज़ा हासिल कर लिया था जो बेशतर शायरो के लिये सपना होता है इसके बाद से आज तक उन्होंने आज तक अपनी इस हैसियत को न केवल बरक़ार रखा है बल्कि इसमें ढेर सारे तमगों का इज़ाफा भी किया है साथ ही साथ अदब की अज़्मत को भी भरपूर नूर से नवाज़ा है ।
    भाई आलम खुर्शीद की ग़ज़ल एक बहुत ही रख्शिन्दा पहलू यह है कि वे अपने दौर के कई अन्य नामवर शायरों की तरह अपने महौल से बेरुख नहीं है— कुछ लोग जहाँ शदीद प्यास के बावज़ूद पानी छूना नहीं पसन्द करते वहीं आलम बहते पानी से कुछ रिश्ता होने का खुला इज़हार अपनी गज़ल में कर चुके हैं । उनकी गज़लों में उम्मीद की एक किरन मुसल्सल जलती बुझती रहती है जो कभी खोये हुये दिनों की चमक को फिर पाना चाहती है कभी एक ऐसी दुनिया की तख़्लीक चाहती है जो पुरखुलूस हो और मासूम और मुकद्दस दिलों की परवा करती हो । सियासी साजिशों ने आलम को कभी तंज़बर नहीं बनाया – हाँ हालात से लड़ने का हौसला और नाराज़गी ( जो कि अपनेपन की सनद है ) का इज़हार ज़रूर है – उनके बयान की अज़्मत यह है कि वो किसी को चोट पहुँचाये बगैर सिर्फ अपने दर्द की बात बहुत ही छू लेने वाले अल्फाज़ में बयान करते हैं उनके लहज़े की नरमी काबिले गौर होती है—

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  6. ये ग़ज़ल भी नर्म अल्फाज़ के साथ –रेशा ए गुल से पहाड़ काटने का कार्य ज्कर रही है –

    फूल की डाली है या शमशीर है
    ऐ मुसव्विर ! ख़ूब ये तस्वीर है
    मुसव्विर –खुदा है उसकी दुनिया बहुत सुन्दर है फूलों की डाली के जैसी –लेकिन इसकी तासीर या सिफत उल्टे है है ये हमारे अस्तित्व को काटती है –हम अपने माहौल में ही हर लम्हा तक़्सीम हो रहे हैं – शेर पुर असर है।

    सोचता रहता हूँ उसको देखकर
    ख़्वाब है या ख़्वाब की ताबीर है
    गुमाँ हो या यकीं –दोनो वसवसे की ज़द में हैं – बहुत सुन्दर सौन्दर्यबोध का शेर कहा है – विश्वास नहीं होता महबूब को देख कर कि वो सपना है या सपने का साकार रूप !!!!

    चुप हूँ मैं और बोलती जाती है वो
    सामने मेरे कोई तस्वीर है
    यादे माजी – या कोई दिल को छूने वाला मंज़र वो तस्वीर है –जो म्रेरे किसी कहानी को मुझे बार बार सुना रही है।

    भूल बैठा हूँ मैं तर्ज़े-गुफ़्तगू
    उसकी बातों में अजब तासीर है
    करने गये थे उनसे तगाफुल का हम गिला
    की एक ही निगाह कि बस ख़ाक हो गये –ग़ालिब
    जादू है या तिलस्म तुम्हारी ज़बान में
    तुम झूठ कह रहे थे मुझे ऐतबार था
    इसी माहौल का शेर है कि –उससे मिलने के बाद मेरी ज़ुबान गुँग हो गई है।

    दिल खिंचा जाता है ख़ुद उसकी तरफ़
    हाय ! कितना खूबसूरत तीर है
    आशियाने पर गिरीं तो मुझको गुज़री नागवार
    जब गिरीं दिल पर तो मुझको बिजलियाँ अच्छी लगीं – राजेन्द्र तिवारी
    इसी शेर के आलोक में आलम भाई का शेर पढिये—जो दिल को बींध डालेगा उसकी तरफ ही दिल खिंचा जा रहा है – उसी को देख कर जीते हैं जिस कातिल से दम निकले –ग़ालिब

    वो तो 'आलम' खूबसूरत हार है
    तुम समझते थे जिसे ज़ंजीर है

    जिसे आप सज़ा समझ रहे है –इंकलाबी सोच के चलते वह शहादत देने वाले का गहना है –ठीक इसके पलट यह शेर अपना वर्तुल भी बना रहा है दूसरे मिसरे में जिसे के आगे कामा लगा देने से शेर ये अर्थ भी देता है कि जिसे खूबसूरत हार समझा गया –वो ज़ंज़ीर है – ये शादी की जयमाल है – आलम भाई साहब हमारे दौर के रोल माडल शाइर है और मैं पिछले 15 बरस से उनका अननय प्रशंसक हूँ –आज उनकी ग़ज़ल पढ कर फिर बहुत अच्छा लगा –मयंक

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