गणपति महोत्सव की ढेर सारी बधाइयाँ. विगताद्यतन को आप सभी से मिले उत्साहवर्धक प्रतिसाद से प्रेरित हो कर हम नवीनाद्यतन के साथ पुनः उपस्थित हैं. विभिन्न भाषाओं की स्वीकार्य, सम्भाव्य एवं रुचिकर विविध विधाओं के प्रकाशन के लिए समर्पित वेबपोर्टल साहित्यम के सद्याद्यतन में निम्नलिखित कृतियों का समावेश किया गया है.
ग़ज़ल - तेरे होते हुए तेरी कमी में - पूजा भाटिया
तेरे होते हुए तेरी कमी में
कहूँ क्या लुत्फ़ क्या था
तिश्नगी में
करेंगे याद साअत हिज्र की हम
बजेगा एक अब जब भी घड़ी में
मराठी गझल - डाग कुणाला लागत नाही कुठल्याही बेमानीचा - चन्द्रशेखर सानेकर
डाग कुणाला लागत नाही कुठल्याही बेमानीचा
आजकालचे जगणे म्हणजे धंदा
हातचलाखीचा
काही प्रेषित
शांतीसाठी चर्चा करायला गेले
येउ घातला आहे म्हणजे भीषण काळ लढाईचा
ગુજરાતી ગઝલ - પથ્થર ને દેવ માની, બહુધા નમી ગયો છું - ચેતન ફ્રેમવાલા
પથ્થર ને દેવ માની, બહુધા નમી ગયો છું .
લઈ રામ નામ દિલથી, સાચે તરી ગયો છું
એવું નથી ઓ ઈશ્વર આજે ડરી ગયો છું
વ્યથાઓ વ્યક્ત કરતાં, હા! કરગરી ગયો છું
कविता - रहे रेडियो के हम श्रोता, बड़े प्रेम से सुनते थे - अटल राम चतुर्वेदी
रहे रेडियो के हम श्रोता, बड़े प्रेम से सुनते थे
फिल्मी गीतों को सुन-सुन कर, स्वर्णिम सपने बुनते थे
रहे रेडियो के हम श्रोता, बड़े प्रेम से सुनते थे
गीत - इक दिन तुम पर गीत लिखूंगा - अशोक अग्रवाल 'नूर'
इक दिन तुम पर गीत लिखूंगा
तुमको मन का मीत
लिखूंगा
सांसें बंसी
की पुरवाई
तन में मुरकी की
अंगड़ाई
पग-पग में ज्यों बजे पखावज
स्वर खां साहब की शहनाई
व्यंग्य - शादी के मौसम में भूषण के छंद - अरुणेन्द्र नाथ वर्मा
शादी की मौसम गर्माया हुआ है. बैंड-बाजा-बारात के धंधे के आगे अन्य हर धंधा मंदा पड़ गया है. शहर की सडकों पर बारातियों के झुंड के झुंड टिड्डी दल की तरह उमड़ पड़े हैं. गलियों के ऊपर शामियाने तने हुए हैं. बारातों से अवरुद्ध सड़कें ज़ुकाम के प्रकोप से बंद नाक की तरह न अनुलोम के लायक रह गई हैं ना विलोम के. घंटों पहले घर से निकली गृहस्वामिनी
ग़ज़ल - मेरे फ़र्दा में बड़ी दूर तलक बनती है - नवीन जोशी नवा
मेरे फ़र्दा में बड़ी दूर तलक बनती है
मेरी बीनाई से कोहरे की सड़क
बनती है
पहले मिट्टी से बनाती है
पसीना मेहनत
फिर पसीने से ही मिट्टी में महक बनती है
ग़ज़ल - ख़ुशबू है सहमी सहमी सी, गुल भी उदास है - देवमणि पाण्डेय
ख़ुशबू है सहमी सहमी सी, गुल भी उदास है
गुम है किसी ख़याल में लड़की
उदास है
दो चार पल ठहर के जो बादल
चले गए
बारिश के इंतज़ार में मिट्टी उदास है
ग़ज़ल - हुनर किसीको जीने का सिखा रही है ज़िन्दगी - ताज मोहम्मद सिद्दीक़ी
हुनर किसीको जीने का सिखा रही है ज़िन्दगी
कहीं किसी को ख़ाक में मिला
रही है ज़िन्दगी
मसर्रतों से भी
कभी तो रू -ब -रू करे हमें
फक़त हसीन ख़्वाब क्यों दिखा रही है ज़िन्दगी
दोहे - डॉ. अवधी हरि
होने देते युद्ध क्या, कभी कृष्ण भगवान।
बात, बात
से मानते, अगर दुष्ट इन्सान।।
नहीं थोपना चाहिए, अपना
कहीं महत्व।
लाख हमारा हो कहीं, प्रेम और अपनत्व।।
कविता - बिछड़े सभी बारी-बारी - सन्ध्या यादव
बिछड़े सभी बारी-बारी...
1 ) बारी -बारी बिछड़ने
का एक फायदा हुआ
कच्चे मकान सा दिल बैठा नहीं
पहाड़ सा मजबूत हो गया...
व्यंग्य - शो ऑफ युग - अर्चना चतुर्वेदी
कलियुग सतयुग आदि चार युगों के बाद जो पांचवा युग है वो है दिखाबा युग अंग्रेजी में बोलेन तो शो ऑफ़ युग ...इस युग के लोग हर चीज दुनिया को दिखाकर ही खुश होते हैं ..वे जमाने गए जब कहा जाता था दान गुप्त रखो ..अपनी तारीफ़ खुद मत करो आदि | अब तो दिखाया नहीं तो समाज में बैठने लायक नहीं समझे जायेंगे