ग्राम सुधार - यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'

सुघरे मकान होंय, चहुंधा उद्यान होंय,
सब ही समान होंय, ध्यान होंय काम में।

 छोटे परिवार होंय, ब्रिच्छ हू हज़ार होंय,
होंय व्हाँ बजार, मिलें - वस्तु सत्य दाम में।

कूप होंय, ताल होंय, सुंदर चौपाल होंय,
बाल हू खुसाल होंय, खेलें केलि धाम में।

'प्रीतम' अपार अन्न-धन के भण्डार होंय,
होंय यों सुधार यथा सीघ्र गाम-गाम में।।
:- यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'
['राष्ट्र हित शतक' से साभार]

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