ये माज़ी की गलियाँ, वो यादों के घेरे
जहाँ रात-दिन हैं उदासी के फेरे
हैं अंजान से जाने-पहचाने चेहरे
मेरे दर्द-ओ-वहशत से बेगाने चेहरे
हैं ओढ़े मोहज़्ज़ब वफ़ा की नक़ाबें
पिये हैं जो जी भर ख़ुदी की शराबें
है इन पर चढ़ा उल्फ़तों का मुलम्मा
हैं बातें पहेली, अदाएँ मोअम्मा
हैं बदशक्ल चेहरे नक़ाबों के पीछे