माज़ी की गलियाँ - मुमताज़ अज़ीज़ नाज़ाँ



ये माज़ी की गलियाँ, वो यादों के घेरे

जहाँ रात-दिन हैं उदासी के फेरे

हैं अंजान से जाने-पहचाने चेहरे

मेरे दर्द-ओ-वहशत से बेगाने चेहरे

हैं ओढ़े मोहज़्ज़ब वफ़ा की नक़ाबें

पिये हैं जो जी भर ख़ुदी की शराबें

है इन पर चढ़ा उल्फ़तों का मुलम्मा

हैं बातें पहेली, अदाएँ मोअम्मा

हैं बदशक्ल चेहरे नक़ाबों के पीछे

मुबारक साल नया – देवमणि पाण्डेय



आकाश में दिन भर जलकर जब

घर लौट के सूरज आया है

तब शाम ने अपने आंचल में

हौले से उसे छुपाया है

एक बड़े आदमी की पत्नी हूँ मैं – सन्ध्या यादव



भाग्यशाली हूँ, ईर्ष्या, कुण्ठा, प्रतिस्पर्धा का कारण हूँ

वैसे तो रीढ़ की हड्डी ही उसके संसार की हूँ ,पर

ब्रांडेड, चमकदार कपड़ों से ढँकी -छुपी रहती हूँ

एक बड़े आदमी की पत्नी हूँ मैं…

संस्कृत दोहे हिन्दी अर्थ सहित - डॉ. लक्ष्मीनारायण पाण्डेय


 

याति भीतिभयभीषणं वर्षं दर्पितमेव,

जनयेज्जनगणमङ्गलं ,नववर्षं हे देव !


 भीतिभूखभय से भरा रुग्ण गया चौबीस ।

जनगणमनमंगल करे,हे भगवन् पच्चीस ।

दोहे - राजमूर्ति 'सौरभ'


 

राधे! राधे!राधिका, मोहन!मोहन! श्याम।

दोनों ही जपने लगे,अपना-अपना नाम।।

 

एक दूसरे को जपें, निशिदिन, आठों याम।

साधारण प्रेमी नहीं, हैं राधा-घनश्याम।।

एक नायाब पेशकश - 2024 की दिलकश ग़ज़लें

25 अगस्त, 1953 को  जितौरा ,पियरो,आरा , बिहार में जन्मे आदरणीय रमेश कँवल जी भी उन चुनिन्दा लोगों में शामिल हैं जिनकी कि ऊर्जा कोविड के  बाद कई गुना बढ़ गयी. कोविड की त्रासदी को दरकिनार करते हुए आप ने ईसवी सन 2021 में विभिन्न शायरों द्वारा

नये साल के दोहे - रमेश शर्मा



आई है नव वर्ष की, नई नवेली भोर ।

खिड़की से दिल की मुझे, झाँक रहा चितचोर ।।

 

पहुँची हो चौबीस में, लेखन से कुछ ठेस ।

क्षमा ह्रदय से माँगता, उनसे आज रमेश ।।

बुलबुल का भी दिल अब पिंजरे में शायद बेताब नहीं होता - मसऊद जाफ़री



बुलबुल का भी दिल अब पिंजरे में शायद बेताब नहीं होता

जिस दिन से सुना है   फूलों पर वो हुस्नो शबाब नहीं होता

वक़्त को मैने कुछ इस तरह बदलते देखा - हसन फ़तेहपुरी



वक़्त  को मैने कुछ  इस तरह  बदलते देखा

चढ़ते  सूरज को सर-ए-शाम ही ढलते देखा

मेरी बे-लौस चाहत का भरम रख - पूनम विश्वकर्मा



मेरी बे-लौस चाहत का भरम रख

कहीं दिल में मुझे भी तो सनम रख

लोकतंत्र उर्फ़ ढीठ तंत्र - अनिल गौड़

राजनीति में कितना बल है

वह हर चीज़ बदल सकती है

अपने हित में जो संभव है

उस कुमार्ग पर चल सकती है