नमस्कार
सन 2010 में अन्तर्जाल पर साहित्य-सेवार्थ जब आया था तो पता ही नहीं था कि दरअसल
जाना किस तरफ़ है, किस के साथ संगत होगी, क्या और कैसे करना होगा....कुछ भी स्पष्ट नहीं था। ठीक वैसे ही जैसे आसमान
से गिरती बूँद को अपना मुस्तक़्बिल पता नहीं होता। शनै: शनै: संयोग बनते गये, साथी मिलते गये और अब लग रहा है कि शायद गंतव्य की ओर जाता रास्ता मिल जाना
चाहिये।
तीन साल पहले यानि 9 अक्तूबर को ठाले-बैठे पर पहली पोस्ट आयी थी, मत्तलब इस अन्तर्जालीय ब्लॉग यात्रा को आज तीन साल पूरे हो गये। जो कुछ भी थोड़ा कुछ हो
पाया है, आप सभी के स्नेह और सहकार से ही हो पाया है, इस में ख़ाकसार का योगदान नगण्य जैसा ही है। तीन साल
पूरा होने पर आप लोगों से सुझाव देने की प्रार्थना की गयी है। इसी पेज पर आप के लेफ्ट
हेंड पर जो स्क्रॉल है वहाँ कुछ विकल्प दिये गये हैं, आप के बहुमूल्य
समय में से थोड़ा सा वक़्त निकाल कर ठाले-बैठे की आगामी स्वरूप-संरचना में मददगार बनें। मुक्त हृदय से ठाले-बैठे से संबन्धित अपने विचार पटल पर रखने की कृपा करें, आप के विचार हमें आगे का रास्ता दिखाएंगे।
कुछ आँकड़े :-
- यह 499 वीं पोस्ट है, यानि चौथे वर्ष में पदार्पण 500 वीं पोस्ट के साथ होगा। आने वाले समय में पोस्ट्स की घट-बढ़ के साथ यह संख्या परिवर्तित हो सकती है।
- पोस्ट लिखे जाने तक 5073 टिप्पणियाँ [इस में समस्या-पूर्ति तथा वातायन की ठाले-बैठे में मर्ज होने से पहले की टिप्पणियाँ शामिल नहीं]
- वातायन में अब तक 92 रचनाधार्मियों की रचनाओं का प्रकाशन
- समस्या-पूर्ति आयोजनों में अब तक 46 रचनाधार्मियों की रचनाओं का प्रकाशन
- एक लाख से अधिक पोस्ट व्युस
- फ्लेग काउंटर के ज़रिये क़रीब 69 देशों के 102 फ्लेग्स
- अब तक 38 प्रकार के छंदों पर जानकारी एवं चर्चा
- अब तक 20 प्रकार की ग़ज़ल की बह्रों पर जानकारी
आप के प्रयासों की उपलब्धियों पर पहला अधिकार आप का है, इस लिये उपरोक्त जानकारियाँ पटल पर रखना ज़ुरूरी लगा।
छन्द-साहित्य को समर्पित ठाले-बैठे के तीन साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आने वाली
पोस्ट भी किसी छन्द से बेपनाह मुहब्बत करने वाले की हो, ऐसा मन में था। आदरणीय सलिल जी की पोस्ट आनी थी, परन्तु आचार्य जी एक विशेष पोस्ट पर मशक़्क़त कर रहे हैं इसलिये हम अपने अन्य
सहधर्मी भाई श्री सौरभ पाण्डेय जी के दोहों से नवाज़ते हैं आज की पोस्ट को। संयोग वश
दोहे भी भोजपुरी वाले हैं, अतएव मेरे भोजपुरी वाले सभी मित्रों
का आभार-ज्ञापन स्वरूप भी है आज की पोस्ट। तो आइये पढ़ते हैं सौरभ जी के भोजपुरी दोहे :-
जोन्ही भर के जोर पर, चिहुँकल छनकि अन्हार
ढिबरी भर के आस ले, मनवाँ सबुर सम्हार
रहि-रहि मन अकुतात बा, दुअरा लखन-लकीर
सीता सहमसु चूल्हि पर, बाया-बाया पीर
दर-दर भटकसु रामजी, रावन बड़हन पेट
चहुँप अजोध्या जानकी, भइली मटियामेट
तुलसी देई पूरि दऽ, भाखल अतने बात
बंस-बाँस के सोरि पर, कसहूँ नति हो घात
हमरो राजाराम के, लछमन भइले लाल
अँगना-दुअरा-खेत पर, सहमत लागो चाल
शब्दों का भावार्थ
[जोन्ही - सितारे ; चिहुँकल - चौंकना ; छनकि - चट् से, छिनक कर ; अन्हार - अँधेरा ; सबुर - धीरज ; अकुताना - चंचल होना ; दुअरा - द्वार पर ; लखन-लकीर - लक्ष्मण-रेखा ; सहमसु - सहमती हैं ; चूल्हि - चूल्हा ; बाया-बाया - रोम-रोम ; पीर - दर्द, पीड़ा ; बड़हन - बहुत बड़ा ; चहुँप - पहुँच ; देई - देवी ; पूरि दऽ - पूरा कर दो ; भाखल -
भाखा हुआ, मनता माना हुआ ; अतने - इतना ही ; सोरि - जड़, मूल ; नति हो - मत हो ; घात - षड्यंत्र, आघात ; सहमत लागो चाल -
मतैक्यता बनी रहे ]
शब्दों के भावार्थ से दोहों की भावदशा को समझ
पाना सुगम हो सकेगा ऐसा विश्वास है. भोजपुरी भाषा की महत्ता किसी अंचल विशेष की
भाषा होने के कारण नहीं है, बल्कि यह भाषा अपनी ठसक और
अपने लालित्य दोनों के लिए जानी जाती है. कहना न होगा ऐसा अद्वितीय आचरण और अन्य
भाषाओं में विरले मिलें. हाँ, दो भाषाएं अवश्य ही ऐसा
आचरण निभाती दीखती हैं. उनमें से एक इसकी सहोदरा है, यानि, काशिका (बनारसी), तो दूसरी इसकी समभावी, यानि, अवधी. भोजपुरी भाषा का इतिहास जुझारुओं का
इतिहास रहा है. जिजीविषा के परम भाव से आप्लावित जनों की भाषा ! और, इसके बाह्य और आंतरिक रूपों की प्रत्यक्ष
भिन्नता और उनका प्रच्छन्न वैविध्य जानकारों तक को चकित करता है. प्रस्तुत दोहों
के माध्यम से भोजपुरी भाषा के आंतरिक रूप के इसी लालित्यपूर्ण आचरण को समक्ष लाने
का प्रयास हुआ है. : [सौरभ पाण्डेय]
शर्ट-पेण्ट पहनना ग़लत नहीं है, कुर्सी
टेबल पर बैठ कर खाने से भी कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ता, रोज़मर्रा
की बातचीत में अङ्ग्रेज़ी गिट-पिट कर लेने से भी कोई भूकम्प नहीं आ जाता......... परन्तु
यदि हम अपनी माँ-बोलियों को भूल गये तो कलेज़े को ज़िन्दगी भर ठण्डक के लिये तरसना पड़ेगा।
अपनी बोलियों को न भूलें मेरे भाई, यदा-कदा जब भी मौक़ा मिले उसे
कलम-बद्ध करते रहें।
सौरभ भाई आप के दोहों की तारीफ़ में बस इतना ही कहूँगा कि इन्होंने पोस्ट की शान
बढ़ा दी। जियो भाई, ख़ुश रहो और ख़ूब साहित्य-सेवा करो। साथियो सौरभ जी चमत्कृति के बनिस्बत संदेश पर अधिक ध्यान देते हैं, जो कि साहित्य का बहुत ही महत्वपूर्ण अङ्ग है। आज कल चारों तरफ़ हम देख पा रहे हैं कि चटपटे शब्दों और अभिनव प्रतीकों की लाली-लिपिस्टिक लगा के कविता-माई को बड़ी ही ख़ूबसूरत-नचनिया बना के पेश किया जा रहा है, और उस के पक्ष में ढ़ोल-नगाड़े बजाते हुये काफ़ी कुछ शोर-शराबा भी किया जा रहा है। ऐसे में शांति से अपना संदेश देने में सक्षम कविता का भरपूर मान होना चाहिये। सौरभ जी आप के इन दोहों के सम्मान में मैं अपना एक शेर पेश करना चाहूँगा
हमने गर हुस्न और ख़ुशबू ही को तोला होता
फिर तो हर पेड़ गुलाबों से भी हल्का होता
नमस्कार
विशेष निवेदन :- कृपया जिन लोगों ने दोहे भेजने हैं वे सभी प्लीज कल [बुधवार, 9 अक्तूबर] तक भेज दें, ताकि दशहरा तक उन
दोहों को शामिल किया जा सके। यह आयोजन सिर्फ़ दशहरा तक ही चलना है।
वाह वाह वाह ... इस अनद की कोई सीमा नहीं ... आभार सौरभ जी ... आभार नवीन जी ...
जवाब देंहटाएंदिगम्बर भाईजी, एक अरसे बाद आपसे भेंट हो रही है. इस बधाई के लिए हार्दिक धन्यवाद.
हटाएंसौरभ भाई को पढना हमेशा एक सुखद अनुभव से गुजरने जैसा है . दोहे पूरी तरह से समझ नहीं आये उनके केवल भाव ही पकड़ में आये हैं लेकिन जितने भी समझ आये हैं उसी में परम आनंद आ गया है .
जवाब देंहटाएंनवीन भाई आपका ब्लॉग साहित्य की अनेक विधाओं को संकलित किये हुए ,अपने आप में अनूठा है . आप जिस लगन और मेहनत से साहित्य सेवा करते हैं वो अनुकरणीय है आपने जो आंकड़े दिए हैं वो मेरी बात को सिद्ध करने के लिए काफी हैं .
खुश रहें
नीरज
आभारी हूँ बड़े भाई, आप का आशीर्वाद अनमोल है मेरे लिए
हटाएंआदरणीय नीरजभाईजी, आपसे बधाई पाना सदा से आत्मीय अपेक्षा रही है.
हटाएंसादर
वाह वाह नवीन भाई साब ! आपको आपकी तीन वर्ष की साधना के लिए साधुवाद. मैं भी नीरज जी की इस बात से पूर्णतय सहमत हूँ की आपकी लगन वास्तव में अनुकरणीय है.
जवाब देंहटाएंसौरभ जी के दोहे अभी कई बार पढने होंगे तब पूरी तरह समझ पाउँगा शायद. लेकिन भोजपुरी बोली का रस जरूर पाया है. आपका धन्यवाद.
शेखर आप उन साथियों में से हैं जो ठाले-बैठे को अपना ब्लॉग समझते हैं व इस से जुड़ी ख़ुशी को अपनी ख़ुशी। बहुत-बहुत आभार व आप को भी बधाइयाँ....
हटाएंभाई शेखरजी, आप अवश्य इन दोहों का रस लें. आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी.
हटाएंशुभ-शुभ
दोहों का भावार्थ तो समझ में आ गया। लय ही आनंद का एहसास करा देती है। भाषा का ज्ञान होता तो बात ही और थी। शब्दार्थ दिये हुए हैं लेकिन अर्थ देखने लगें तो ध्यान भंग और आनंद चौपट...इसलिए 3-4 बार पढ़कर समझ लिया। आदरणीय सौरभ जी का हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंआदरणीया कल्पनाजी, आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया सदा से कुछ बेहतर करने को उत्साहित करती रही है.
हटाएंसादर आभार.
सौरभ भाई !! क्या खूबसूरत दोहे कहे हैं आपने ??!! भाषा, भाव और अभिव्यक्ति की सामर्थ्य से हर दोहा चमक रहा है। मेरा भोजपुरी भाषा से परिचय नाममात्र का ही है लेकिन अर्थ पंजिका देखने के बाद दोहे स्पष्ट हुये और अधिक प्रभावी हो गये। वैसे जो कुछ उत्कृष्ट साहित्यिक अभिव्यक्ति में होना चहिये वो सब कुछ तो है इन दोहों में !!!! भाषा को भी भावी प्रवाह के लिये ऐसे ही समर्थ और सशक्त आधारों की आवश्यकता होती है – बधाई इन दोहो के लिये –मयंक
जवाब देंहटाएंभाई मयंकजी, मैं सदा से आपकी अनुमोदन-प्रतिक्रियाओं से धनी होता रहा हूँ. सही कहूँ तो, आपकी प्रस्तुत उदार प्रतिक्रिया ने मुझे कुछ और साहसी बना दिया है.
हटाएंसादर आभार
परम आदरणीय सौरभ जी तथा नवीन जी आपसे सदैव बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है. यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है. आज की पोस्ट भी उसी का एक हिस्सा है. शब्दों के भावार्थ से दोहों की भावदशा को समझ पाना सुगम हो गया है.
जवाब देंहटाएंआज भी समाज में पुरुष प्रधान संस्कृति का कितना वर्चस्व है जिसका आकलन हम निम्न दोहे को पढ़कर कर सकते है. आपका आभारी हूँ आदरणीय
रहि-रहि मन अकुतात बा, दुअरा लखन-लकीर
सीता सहमसु चूल्हि पर, बाया-बाया पीर
आदरणीय सत्यनारायणजी, ऐसा प्रतीत हो रहा है मानों, एक अरसे बाद आपसे मुलाकात हो रही है.
हटाएंआपका अनुमोदन सहर्ष स्वीकार करता हूँ.
सादर
राम कथा दोहावली, को हम ह्रदय उतार
जवाब देंहटाएंसौरभमय होते गए, पढ़ते बारम्बार
कितने अद्भुत भाव हैं, कितना मोहक स्नेह
हटाएंदोहामय यह टिप्पणी, जैसे रिमझिम मेह.. .
हार्दिक धन्यवाद, वीनसभाई.
शुभ-शुभ
नवीन जी ! आपको ब्लोगिंग जगत में तीन वर्ष की (साधना )पूरे करने के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाए,,, !
जवाब देंहटाएंRECENT POST : अपनी राम कहानी में.
आभार मान्यवर
हटाएंआद. धीरेन्द्र भाईजी, सादर..
हटाएंसौरभ भाई भोज के,दोहे कहले नेक
जवाब देंहटाएंहरषित मनवा हो गइल, कोटि अभिषेक
आ. भाईसाहब मज़ा आ गया
मन में नेह-सुमान के, बनल रहो बर्ताव
हटाएंकोटि-कोटि अभिषेक से, रचि-रचि भीजल भाव..
हार्दिक धन्यवाद, खुर्शीदभाईजी.
शुभ-शुभ
भाई नवीनजी, मेरे मन में मंच के प्रति सदा से हार्दिक और सरस भाव रहे हैं.
जवाब देंहटाएंताने-बाने को साध कर ही कोई बुनकर नहीं हो जाता, भाईजी, बल्कि कला-साधना हेतु सकारात्मक वातावरण, साथ ही, अभ्यासी के कंधों पर किन्हीं आत्मीय हथेलियों का आश्वस्तिकारक स्पर्श दोनों कितना आवश्यक हुआ करते हैं, इसका सार्थक भान उसी अभ्यासी को हो सकता है जिसने साधना-क्रम में धागे के रेशे-रेशे को महसूसा है, और फिर, कताई-बुनाई को जाना-सीखा है. आज इस मंच की अभिनव उपलब्धि पर मैं स्वयं को जोड़ कर ऐसे ही कुछ भाव साझा करना चाहता हूँ.
भोजपुरी दोहों के प्रति सुधीजनों के उदार भाव मुझे व्यक्तिगत रूप से आह्लादकारी लगे हैं. मैं सभी पाठकों को सादर नमन करता हूँ तथा आपको आपकी तथा आपके मंच की उपलब्धि पर हार्दिक बधाई देता हूँ.
आज हरिद्वार में हूँ. दिन भर की कार्यालयी व्यस्तता के बाद अभी प्रस्तुत पोस्ट को देख पा रहा हूँ. कहना न होगा, मन आह्लादित है.
शुभ-शुभ
सादर आभार, रविकर भाईजी.
जवाब देंहटाएंवाह...आज की पोस्ट पर तो डबल खुशियाँ हैं...ब्लॉग ने चौथे वर्ष में प्रवेश किया...इसके लिए अनंत बधाई एवं शुभकामनाएँ ...दूसरी अच्छी बात है आ० सौरभ भइया की भोजपूरी दोहावली...मेरी भाषा मागधी है...पर भोजपूरी मे ही कह रही हूँ...सभे दोहा नीक बा...:)...सादर
जवाब देंहटाएंऋता शेखर मधुजी, आपकी प्रतिक्रिया ने मुग्ध कर दिया. आश्वस्त हूँ कि रचना भाषा की कसौटी पर खरी है. भोजपुरी के अलावे बिहार राज्य में बहुतायत से बोली जाने वाली मागधी, मैथिली, बज्जिका के साथ-साथ अन्य मिश्रित भाषाओं से भी मेरा आत्मीय सम्बन्ध रहा है. इन भाषाओं का विन्यास, इनका लालित्य, इनका व्यवहार मोहता ही नहीं, बल्कि प्रयुक्त करने के लिए सुप्रेरित भी करता है.
हटाएंदोहे आपको नीक लगे, यह मेरे लिए भी आश्वस्ति का कारण है. ऋताजी, आपके माध्यम से यह भी अवश्य साझा करना चाहूँगा कि प्रस्तुत सभी दोहे ग्रामीण परिवेश की महिलाओं की आशाओं, दशाओं, पक्षों, मनोभावनाओं को ही संप्रेषित कररहे हैं.
शुभ-शुभ
जय हो जय हो मान्यवर, नमन करें स्वीकार
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहों को पढ़ें, सरस्वती सौ बार
जय हो जय हो मान्यवर, नमन करें स्वीकार
हटाएंदोहों की भी चाह थी, पढ़ें धरम इक बार .. . ..
सादर
तीन वर्ष पूरे हुये, ठाले बैठे आप
जवाब देंहटाएंकिंतु काल के भाल पर, छोड़ रहे हैं छाप
जय हो जय हो मान्यवर, नमन करें स्वीकार
आयोजन चलते रहें, यूँ ही बारंबार