तुलसीदास के दोहे

तुलसी मीठे बैन ते सुख उपजत चहुँ ओर।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।

तुलसी सगे विपत्ति के विद्या विनय विवेक
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसा एक।।

काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान।।

आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।

राम नाम मनि दीप धरू जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहरौ जौ चाहसि उजियार।।

2 टिप्‍पणियां:

  1. आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
    तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।

    इस दोहे को हमारी तरफ़ कुछ यों कहते हैं -
    देखत हिय हरषे नहीं नैनन नहीं सनेह
    तुलसी तहाँ न जाइये कंचन बरसे मेह


    तुलसी के दोहे प्रदर्शक तथा सात्विक रहे हैं.

    जवाब देंहटाएं
  2. इसका अर्थ क्या होगा

    जवाब देंहटाएं

टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.

विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.