नागार्जुन के दोहे

सीधे सादे शब्द हैं, भाव बड़े ही गूढ़।
अन्नपचीसी खोल ले, अर्थ जान ले मूढ़।

कबिरा खड़ा बज़ार में लिए लुकाठी हाथ।
बंदा क्या घबराएगा जनता देगी साथ।

छीन सके तो छीन ले, लूट सके तो लूट।
मिल सकती कैसे भला अन्न चोर को छूट।

आज गहन है भूख का, धुंधला है आकाश।
कल अपनी सरकार का होगा पर्दाफाश।

नागार्जुन मुख से कढ़े साखी के ये बोल।
साथी को समझाइए रचना है अनमोल।

अन्न पचीसी मुख्तसर, लोग करोड़ करोड़।
सचमुच ही लग जाएगी, आँख कान में होड़।

अन्न ब्रह्म ही ब्रह्म है बाकी ब्रह्म पिशाच।
औघड़ मैथिल नाग जी अर्जुन यही उवाच।

1 टिप्पणी:

टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.

विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.