अमीर खुसरो के दोहे

चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय।
ये मारे करतार के रैन बिछोया होय।।

नदी किनारे मैं खड़ी, पानी झिलमिल होय।
पी गोरे मैं साँवरी, किस बिधि मिलना होय।।

खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पीय को, दोउ भए इक रंग॥

खीर पकायी यत्न से, चरखा दिया चलाय।
आया कुत्ता खा गया, बैठी ढोल बजाय॥

गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस।
चल खुसरो घर आपने, साँझ भयी चहुं देस॥

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