तुलसी मीठे बैन ते सुख उपजत चहुँ ओर।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।
तुलसी सगे विपत्ति के विद्या विनय विवेक
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसा एक।।
काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान।।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।
तुलसी सगे विपत्ति के विद्या विनय विवेक
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसा एक।।
काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान।।
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।
राम नाम मनि दीप धरू जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहरौ जौ चाहसि उजियार।।
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
जवाब देंहटाएंतुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।
इस दोहे को हमारी तरफ़ कुछ यों कहते हैं -
देखत हिय हरषे नहीं नैनन नहीं सनेह
तुलसी तहाँ न जाइये कंचन बरसे मेह
तुलसी के दोहे प्रदर्शक तथा सात्विक रहे हैं.
इसका अर्थ क्या होगा
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