संस्कृत दोहे हिन्दी अर्थ सहित - डॉ. लक्ष्मीनारायण पाण्डेय


 

याति भीतिभयभीषणं वर्षं दर्पितमेव,

जनयेज्जनगणमङ्गलं ,नववर्षं हे देव !


 भीतिभूखभय से भरा रुग्ण गया चौबीस ।

जनगणमनमंगल करे,हे भगवन् पच्चीस ।


नवलचिन्तनं दर्शनं चलनं मननं स्यात्

नवलं यज्जीवनमिदं हे भगवन् भूयात्

 

नयी सोच चिंतन नया नयी रीति हे ईश

नयी उमंगों से मधुर जीवन दे पच्चीस 

 

: डा०लक्ष्मीनारायण पाण्डेय

1 टिप्पणी:

टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.

विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.