हाइकु - गुञ्जन गर्ग अग्रवाल










हाय रे रोटी

ता-उम्र खींचती है

दीन की बोटी











गुञ्जन गर्ग अग्रवाल
9911770367


1 टिप्पणी:

  1. रचना रचनाकार को नमन !-
    पता न था ,पहले से मुझे ,मेरी उम्र ,महल उसके ,बनाने में ,ठहर जाएगी |
    दुनिया दुखी ,उसकी खुशी ,आजादी मिली ,जहर हवा में ,पानी ठहर ,घुल जाएगा ?

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