1 जून 2014

गुबार-ए-फ़िक्र को तहरीर करता रहता हूँ - सालिम शुजा अन्सारी


गुबार-ए-फ़िक्र को तहरीर करता रहता हूँ
मैं अपना दर्द हमागीर करता रहता हूँ

रिदा-ए-लफ़्ज़ चढ़ाता हूँ तुरबते-दिल पर
ग़ज़ल को ख़ाके-दरे-मीर करता रहता हूँ

नवर्द-आज़मा हो कर हयात से अपनी
हमेशा फ़त्ह की ताबीर करता रहता हूँ

न जाने कौन सा ख़ाका कमाले-फ़न ठहरे
हर इक ख़याल को तसवीर करता रहता हूँ

बदलता रहता हूँ गिरते हुए दरो-दीवार
मकाने-ख़स्ता में तामीर करता रहता हूँ

लहू रगों का मसाफ़त निचोड़ लेती है
मैं फिर भी ख़ुद को सफ़र-गीर करता रहता हूँ

उदास रहती हैं मुझ में सदाक़तें मेरी
मैं लब कुशाई में ताखीर करता रहता हूँ

सदाएँ देती हैं सालिम बुलन्दियाँ लेकिन
ज़मीं को पाँव की ज़ंजीर करता रहता हूँ



तहरीर करना – लिखना, शब्दांकित करना, रिदा-ए-लफ़्ज़ – शब्दों
की चादर, तुरबत – क़ब्र, हयात – जीवन, ताबीर – कोशिश,
हमागीर – फैलाने के संदर्भ में, तामीर – निर्माण, मसाफ़त – यात्रा,
सफ़र-गीर, यात्रा में व्यस्त, लबकुशई, ताखीर,


सालिम शुजा अन्सारी
9837659083


बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22

1 टिप्पणी:

  1. मुझे यह कहने का पूरा हक है कि हमें अपने दौर का मोज़िज़ा हासिल है लेकिन हमारा दौर कम्नज़र है कि उसे अभी सहीह माने मे पहचान नही पाया – जो मेयार और शेर कहने का हुनर और फन सलिम शुजाअ अंसारी के पास है वो और किसी के पास नही – सिर्फ और सिर्फ 30 मिनट लगे होन्गे उनको ये गज़ल कहने मे –मेरा दावा है –लेकिन कोई अन्य शाइर ऐसी गज़ल 20 उस्तादों से इस्लाह ले कर 30 दिनो मे भी कह कर दिख दे तो मै पनी बात हार जाऊँ और तब्सरा छोद दूँ !!! कमाल की क्षमता दी है उन्हें ईश्वर ने !! और इससे बढकर एक बात और कि उनके जैसा ज़िन्दादिल इंसान और हस्सास तबीयत फरिश्ता मैने नहीं देखा !!! कलम हाथ मे है –ये बात सिर्फ कहने के लिये नही कह रहा !! इस गज़ल से गुज़रिये और ग़ालिब और मीर को याद कीजिये –जोश और इकबाल को चैलेंज कीजिये और फिराक़ और साहिर को मश्वरे दीजिये !! सालिम साहब !!! मुझे फख़्र है कि इस जनम मे मुझे आप जैसा इंसान देखने सुनने और बात करने के लिये मालिक की नेमत के तौर पर हासिल रहा है !! वाह !! ग़ज़ल पर कुछ नही कहूँगा –अल्फाज़ गुंग हैं – लेकिन इस गज़ल के इस्तकबाल मे दो शेर कहूँगा !!


    नवेदे सुबह के ख्वाबो को ले के आँखो मे
    रिदाये शाम को जागीर करता रहता हूँ

    बहुत है कुव्वते पर्वाज़ जिस्म मे लेकिन
    मै तेरे प्यार को ज़ंजीर करता रहता हूँ –मयंक

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