नाम उसका नहीं फ़साने में - अभिनव अरुण

नाम उस का नहीं फ़साने में,
मैं ही रुसवा हुआ ज़माने में ॥

उन चराग़ों को सौ दुआएँ दो,
ख़ुद जले तुम जिन्हें जलाने में ॥

इक भरम हैं चमन के रंगों-बू ,
है मज़ा तितलियाँ उड़ाने में ॥

जाने किस जाल में फँसे पंछी ,
बच्चे भूखे रहे ठिकाने में ॥

कैसे कह दूँ मकान छोटा है ,
उम्र गुज़री इसे बनाने में ॥

दर्द कब देखा तुम ने गंगा का ,
तुम तो मशगूल थे नहाने में ॥

ताज में वे भी दफ्न हैं 'अभिनव',
हाथ जिनके कटे बनाने में ॥

--- अभिनव अरुण

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मखबून.
फ़ाएलातुन मुफ़ाएलुन फ़ालुन.

2122 1212 22

6 टिप्‍पणियां:

  1. इस मंच पर सम्मान प्रदान करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय !

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  2. आपकी लिखी रचना की ये चन्द पंक्तियाँ.........

    नाम उस का नहीं फ़साने में,
    मैं ही रुसवा हुआ ज़माने में ॥
    उन चराग़ों को सौ दुआएँ दो,
    ख़ुद जले तुम जिन्हें जलाने में ॥

    .......शनिवार 05/10/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

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