शम्म कुछ पल झिलमिलायी झिलमिला कर बुझ गयी - नवीन

शम्म कुछ पल झिलमिलायी झिलमिला कर बुझ गयी ।
ज़िन्दगानी मुस्कुरायी मुस्कुरा कर बुझ गयी ॥

माँ तुम्हारी शान में गर यह नहीं तो क्या कहें।
एक शख़्सीयत१ हमें जलना सिखा कर बुझ गयी॥

हम ने भी चाहा कि दुनिया को बदल देंगे मगर।
इक तमन्ना थी जो दिल में लौ लगा कर बुझ गयी॥

मुफ़लिसी२ की जोत हाये तूने ये क्या कर दिया।
क्यों अमीरे-शह्र३ की बातों में आ कर बुझ गयी॥

हम ने गंगा-घाट पर देखा ये नज़्ज़ारा ‘नवीन’।
तेज़-लौ पत्तल के दोने को जला कर बुझ गयी॥

१ व्यक्तित्व, किरदार २ ग़रीबी ३ नगरसेठ, धन दौलत वाला

नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.

विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.