कविता की निराली है जाति घनी
कवि के अधरान हँसै कविता।
कविता जु उमंग रहै हित सौं
प्रिय के हिय माँहिं बसै कविता।
कविता इक प्रेम कौ आश्रय है, बिरहीन
के नैन खसै कविता।
कविता कहूँ मंचन पै ठुमकै जु अमीरन कैं बिलसै कविता।
कविता रण सूर कौ तेग बनै,
दुरगा सी तहाँ बिखरै कविता।
कविता कहुँ बोध कथा बनिकैं
सत्संगति में बिहरै कविता।
कविता बिचरै बिखरै बिहरै,कवि
के मुख सौं निखरै कविता।
कविता हित पावन जीवन कूँ सम
गंग तरंग सी गीत बनैं।
कविता जु सहाय करै पल में
करता हित साँचहिं मीत बनै।
कविता कहुँ प्रेम पदारथ ह्वै
दोय एक करै तँह प्रीत बनैं।
कविता मनहारी सँवारी जु हो बिन साज’न हू रस-गीत बनैं।

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