ये सत्य है कि तुमसे प्रेम है
प्रेमरत जिसे निहारती हूँ
रोज़
उस चाँद का घटना-बढ़ना भी
सत्य है
कड़ुआ सच यह भी है कि
पूर्णता में चाँद की
सड़क किनारे खड़े वृक्षों
में
जो चमकता है सर्वाधिक
वो एक ठूँठ है
निर्बाध चलती सड़क भी सत्य
है
शेष सब झूठ है...
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बरसात का मौसम कभी नहीं
बदलता
घिरते रहते हैं
समय के बादल
और बरसते रहते हैं पल
मैं बस यूँ ही
जीवन का आकाश तकती
हूँ
कि सरका कर बादल का कोई कोना
अचानक चमक उठे
तुम्हारी याद
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बड़ी नखरीली थीं कुछ चोटें
चिहुँकती रहीं
जब तक नहीं किये गए उपचार
भीतर ही भीतर बनाकर दर्द की
सुरंगें
पहुँची आँखों तक
और बहने लगीं
मरहमों के लेप लगे
दी गयीं सहानुभूतियां
तब जाकर पपड़ाईं
कुछ समझदार चोटें
ओढ़ कर सहनशीलता का आवरण
पड़ी रहीं चुपचाप
देर सबेर
पपड़ा वे भी गयीं
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आओ लड़ें
धर्म के मुद्दे गरम हैं
अस्मिता के सवाल हैं
और भी बवाल हैं
उत्तेजित करने वाले सभी तर्क
मुस्तैद हैं
और सबसे बड़ी बात
शान्ति के कबूतर
राजनीति के दड़बों में
क़ैद हैं
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अबके मिलो तो
मुट्ठियों में लेकर आना
सहानुभूतियों की रेत.....
मुलाकात के मध्य से बहते समय
को
इससे रोकने का करेंगे
पुख़्ता प्रबन्ध,
जब चाहो लौटना
तो ध्वंस कर देना
फिर से वो बाँध
समय के तेज़ बहाव में
बह जाएंगी सारी ग्लानियाँ ;
हम फिर से रचेंगे
नयी मुलाकात की कहानियाँ,
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गहरी रात ढल जाए शीघ्र
अच्छा दिन हौले चले ...
बस इतना भर
भूख में न हो विचलन
प्यास हो तो हो भरपूर
आचमन...
बस इतना भर
घृणाएं घट जाएं बढ़ते बढ़ते
प्रेम में न हो अधूरापन...
बस इतना भर
समझ भर हों कविताओं के कथन
सुखद हों सभी अनिश्चित
मिलन...
बस इतना भर
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तुम्हारी अनुपस्थितयों में
बड़ा आनंद था
उदासियों के टीले पर
मैंने स्वयं के साथ बहुत समय
गुज़ारा
यादों के लिए ख़ूब चटखारे
मौन की भाषा में बतियाया देर
तक
प्रतीक्षाओं की पगडंडियों पर
टहलती रही
प्रत्यागमन की आस की उँगली
थामे,
रात के आसन पर बैठकर
सपनों की डोरियों में गूँथते
हुए
तुम्हारी कल्पनाएं
चढ़ाती रही नींदों पर ,
तुमसे की गई बातों से
कहीं अच्छे हैं
स्वयं से किए गए वार्तालाप
बस यही आश्वासन था
विपरीत परिस्थितियों में
हाँ, बहुत आनन्द था
तुम्हारी अनुपस्थितियों में
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🙏🙏
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