ग़ज़ल - ऐ जुनूँ इतना तो कर वक़्त 'अता कम-अज़-कम - नवीन जोशी नवा



ऐ जुनूँ इतना तो कर वक़्त 'अता कम-अज़-कम

कर सकूँ तुझ में इज़ाफ़े की दु'आ कम-अज़-कम

 

अपने रहने के लिए कुछ तो जगह कर मुझ में

गर हटानी नहीं दुनिया तो घटा कम-अज़-कम

 

कोई इल्ज़ाम तो साबित नहीं कर पाया तू

क्या सज़ा सोच के रख्खी थी बता कम-अज़-कम

 

ग़म-गुसारी के फ़राएज़ तो समझ ले पहले

तेरे चेहरे पे ख़ुशी है वो छुपा कम-अज़-कम

 

तेरी तस्वीर बनाने में मदद कर उस की

उस मुसव्विर के लिए रंग बना कम-अज़-कम

 

मैं अगर खेल हूँ तो खेलने की कोशिश कर

मैं तमाशा हूँ तो फिर देखने आ कम-अज़-कम

 

तेरा जाना हो अगर याद के मयख़ाने में

तो मिरे नाम का इक जाम उठा कम-अज़-कम

 

जाने कब से है तू मेहमान मिरी आँखों का

तेरी आँखों को मेरे ख़्वाब दिखा कम-अज़-कम

 

तुझ को लड़ना तिरे दुश्मन ने सिखाया था 'नवा

उस की तुर्बत पे कुछ आँसू तो बहा कम-अज़-कम

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