ऐ जुनूँ इतना तो कर वक़्त 'अता कम-अज़-कम
कर सकूँ तुझ में इज़ाफ़े की दु'आ कम-अज़-कम
अपने रहने के लिए कुछ तो जगह
कर मुझ में
गर हटानी नहीं दुनिया तो घटा
कम-अज़-कम
कोई इल्ज़ाम तो साबित नहीं
कर पाया तू
क्या सज़ा सोच के रख्खी थी
बता कम-अज़-कम
ग़म-गुसारी के फ़राएज़ तो
समझ ले पहले
तेरे चेहरे पे ख़ुशी है वो
छुपा कम-अज़-कम
तेरी तस्वीर बनाने में मदद
कर उस की
उस मुसव्विर के लिए रंग बना
कम-अज़-कम
मैं अगर खेल हूँ तो खेलने की
कोशिश कर
मैं तमाशा हूँ तो फिर देखने
आ कम-अज़-कम
तेरा जाना हो अगर याद के
मयख़ाने में
तो मिरे नाम का इक जाम उठा
कम-अज़-कम
जाने कब से है तू मेहमान
मिरी आँखों का
तेरी आँखों को मेरे ख़्वाब
दिखा कम-अज़-कम
तुझ को लड़ना तिरे दुश्मन ने सिखाया था 'नवा'
उस की तुर्बत पे कुछ आँसू तो बहा कम-अज़-कम
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