दुखों को पार कर
मैं लौटना चाहता हूँ
जैसे लौट आता है सूरज
रोज़ रोज़ अल सुबह
मैं लौटना चाहता हूँ
जैसे लौट आता है चाँद
हर अगली रात नियत समय पर
मैं लौटना चाहता हूँ
जैसे लौट आती है याद
अक्सर बुरे दिनों की वक़्त
बे वक़्त
मैं लौटना चाहता हूँ
जैसे लौट कर आती है हवा भोर
होते ही
तन बदन को आह्लादित करती हुई
मैं लौटना चाहता हूँ
जैसे लौट आते हैं मेहमान
अपने घर
कुछ दिन कहीं रहकर
मैं लौटना चाहता हूँ
जैसे लौट आता है मेरा अतीत
हमेशा अपने पूरे वजूद के साथ
मैं लौटना चाहता हूँ
जैसे लौट आती है खुशी
यदा-कदा
लाख दुखों को पार कर के भी
मैं लौटना चाहता हूँ
ख़ुद में, जैसे, लौट आई थी करुणा
लौटा था आत्म ज्ञान गौतम बुद्ध के पास।
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