उस का ख़याल आते ही मञ्ज़र बदल गया - रऊफ़ रज़ा

उस का ख़याल आते ही मञ्ज़र बदल गया
मतला सुना रहा था कि मक़्ता फिसल गया
मञ्ज़र - दृश्य

 बाजी लगी हुयी थी उरूजो-ज़वाल की
मैं आसमाँ-मिज़ाज ज़मीं पर मचल गया
उरूजो-ज़वाल = चढ़ाव-उतार

चारों तरफ़ उदास सफ़ेदी बिखर गयी
वो आदमी तो शह्र का मञ्ज़र बदल गया 

तुम ने जमालियात बहुत देर से पढ़ी
पत्थर से दिल लगाने का मौक़ा निकल गया 
जमालियात - सौदर्य सम्बन्धित

सारा मिज़ाज नूर था सारा ख़याल नूर
और इस के बावजूद शरारे उगल गया

: रऊफ़ रज़ा
9811326547

बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु फ़ाइलातु  मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
 221 2121 1221 212

5 टिप्‍पणियां:

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    1. ग़ज़ल की नावल्टी और रवानी देखते बनती है !! रऊफ़ भाई बैसे भी स्टार शाइर हैं धूम रहती है उनकी !!
      तुम ने जमालियात बहुत देर से पढ़ी
      पत्थर से दिल लगाने का मौक़ा निकल गया

      सारा मिज़ाज नूर था सारा ख़याल नूर
      और इस के बावजूद शरारे उगल गया

      क्या खूब शेर हैं !! क्या खूब !!! एक शेर इस गज़ल के सम्मान मे --
      उस दिन से ख़ामुशी के हुये हम असीर यूँ
      जिस दिन हक़ीर लफ़्ज़ ज़ुबाँ से फिसल गया –मयंक

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  3. बेहतरीन गजल है रौफ़् साहब।

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