सच कहने से फ़र्ज़ अदा हो जाता है
लेकिन सब का दिल खट्टा हो जाता है
हरे नहीं करने हैं फिर से दिल के ज़ख़्म
हस्ती का उनवान ख़ला हो जाता है
स्टेज ने मेरा नाम भी छीन लिया मुझसे
क्या कीजे! किरदार बड़ा हो जाता है
इसी जगह इन्सान पलटता है तक़दीर
इसी जगह इन्सान हवा हो जाता है
जिसकी नस्लें उसके साथ नहीं रहतीं
ऐसा देश अपाहिज सा हो जाता है
ज्ञान अकड़ कर आता है भक्तों के पास
बच्चों से मिल कर बच्चा हो जाता है
[सन्दर्भ - उद्धव-गोपी सम्वाद]
यार ‘नवीन’ अब इतना भी सच मत बोलो
सारा कुनबा संज़ीदा हो जाता है
नवीन सी चतुर्वेदी
वाह! बेहतरीन! उम्दा!
जवाब देंहटाएंस्टेज ने मेरा नाम और जिकीनस्लें .. इन दो अश’आर के ख़याल.. वाह !
जवाब देंहटाएंबधाई.. बधाई..
सुन्दर रचना
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