नमस्कार
आप सभी को विजयादशमी की अनेक शुभकामनाएँ। परमपिता परमेश्वर से यही प्रार्थना
है कि आप के जीवन में आनन्द ही आनन्द भर दें। साथियो वर्तमान आयोजन की समापन पोस्ट
है आज की पोस्ट और इसीलिये विशिष्ट भी। आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी ने विशिष्ट
दोहे रचे हैं। एक ही अक्षर ‘द’ पर नवदुर्गा के चरणों में इतने और ऐसे दोहे
प्रस्तुत कर पाना माँ की अनुकम्पा से ही सम्भव हैं। इन दोहों में अलंकारों की
भरमार है। हमारे मध्य विद्वान अपरिमित मात्रा में हैं, तो ऐसे साथियों से निवेदन है कि पाठकों के आनन्द को बढ़ाने
के उद्देश्य से इन दोहों की मीमांसा करने की कृपा करें। चूँकि शब्दकोश की मदद के
बग़ैर आप को डगर कठिन लग सकती है इसलिये दोहों की संख्या सीमित रखी गयी है और
सम्भवत: शब्दार्थ भी दिये जा रहे हैं।
दुर्गा! दुर्गतिनाशिनी,
दक्षा, दयानिधान
दुष्ट-दंडिनी,
दगदगी, दध्यानी द्युतिवान
(दुर्गा = आद्याशक्ति, दुर्गतिनाशिनी =
बुरी दशा को नष्ट करनेवाली, दक्षा = दक्ष पुत्री, दयानिधान = दया करनेवाली, दुष्ट-दंडिनी =
दुष्टों को दंड देनेवाली, दगदगी – चमकदार, दध्यानी = सुदर्शन, द्युतिवान =
प्रकाशवान)
दीप्तिचक्र दिप-दिप दिपे, दमकें दीप हजार
दर्शन दे दो दक्षजा,
दया-अमिय दातार
(दीप्तिचक्र = ज्योति-वलय, दिप-दिप = झिलमिल, दिपे = चमके, दक्षजा दक्ष से उत्पन्न सती, अमिय = अमृत, दातार = देनेवाला)
दयामयी वरदायिनी,
दिल से दिखा दुलार
दिव्य-देशना दीजिये,
देवी जगदाधार
(दिव्य-देशना = दिव्य-उपदेश, जगदाधार = जग का
[की] आधार)
दिग्विजयी,
दिव्यांगना,, दिगंगना, दिग्व्याप्त
दिक्यामिनि,
दिक्सूचिका, देइ देउ
दीक्षाप्त
( दिग्विजयी = सभी दिशाओं में जीतनेवाला, दिव्यांगना =
दिव्य देहवाली, दिगंगना = दिशा
रूपिणी स्त्री, दिग्व्याप्त दिशाओं में व्याप्त, दिक्यामिनि = दिशरूपी
स्त्री, दिक्सूचिका = दिशा-बोध कराने वाली, देइ = देवी, देउ = दीजिये, दीक्षाप्त =
दीक्षा+आप्त / पूर्ण दीक्षा)
क्या ही विलक्षण दोहे हमारी झोली में डाले हैं माँ ने। जय हो जय हो जय हो। इन
दोहों के साथ ही यह वर्तमान आयोजन अपने चरम पर पहुँचता है और मैं आप सभी से आज्ञा
लेता हूँ। दिवाली के बाद की सर्दियों में यदि मौक़ा मिला तो दोहों को ले कर कोई
विशेष आयोजन करने का विचार है। आप सभी के सुझाव आमंत्रित किये जाते हैं। फिर
मिलेंगे। नमस्कार।
जय माँ शारदे !!!
जय हो जय हो जय हो ... आनद रस बह रहा है आज ...
जवाब देंहटाएंआचार्य जी जे दोहों ने इस आयोजन को शिखर तक पहुंचा दिया है ...
विजय दशमी की ढेरों बधाई ओर शुभकामनायें ...
अद्भुत दोहे...विजयदशमी की शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंदोहे -दीप दमक उठे.......दुर्गा देवी संग
दिव्य दर्शन दयामयी.....भरें दृगों में रंग
सच में विलक्षण दोहे … माँ दुर्गे की जय हो और सभी को सपरिवार दशहरे की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंसभी दोहे परम आ. आचार्य जी की प्रतिभा के अनुरूप अनुपम, दिव्य तथा काव्य सौष्ठव की दृष्टीसे अपने आप में परिपूर्ण है अतएव उनकी लेखनी एवं उन्हें मैं श्रधा से नमन करता हूँ. हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंसमापन पोस्ट की खबर को पढ़कर मन को कुछ कुछ अवश्य होता है पर क्या कहूँ ? मनोदशा कुछ ऐसी ही है.......
पोस्ट समापन की खबर, पढ़ मन हुआ अधीर।
बिछड़न अपनों की सुनो, जैसे देती पीर।।
सफल आयोजन के साथ साथ सुन्दर एवं श्रेष्ठ दोहे पढवाने के लिए परम आ. नवीन जी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ. तथा उनके साथ साथ मंच से जुड़े समस्त साहित्य प्रेमियों को विजयादशमी की हार्दिक ढेरों शुभ कामनाएं प्रेषित करता हूँ.
अभूतपूर्व अलंकृत दोहे।
जवाब देंहटाएंसुन्दर ...क्या बात है शास्त्री जी...अति सुन्दर....
जवाब देंहटाएंदयामयी की दिव्यता, दीप्त धरा-द्यौ-अंग
जवाब देंहटाएंदक्ष दयित के दोहरे, करें दृश्य से दंग .. !
(धरा-द्यौ-अंग - भू-अंतरिक्ष-मानव देह, धरती-आकाश-जीव ; दयित - प्रिय, मन से अपना ; दोहरे - द्विपदी, दोहे)
सादर
अद्भुत रचना, ज्ञान की भक्तिमयी भेंट
जवाब देंहटाएंअद्भुत...धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंअच्छे दोहों के लिए आचार्य जी को बधाई
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