9 अगस्त 2013

जल को ज़मीं, ज़मीन को सरगोशियाँ - नवीन

जल को ज़मीं, ज़मीन को सरगोशियाँ मिलीं। 
तब जा के इस दयार को ख़ुशफ़हमियाँ मिलीं।। 

सूरज ने चन्द्रमा को उजालों से भर दिया। 
हासिल ये है कि रात को परछाइयाँ मिलीं।। 

अब्रों ने ज़र्रे-ज़र्रे को अच्छे से धो दिया। 
बाद उस के आसमान को बीनाइयाँ मिलीं।। 

दैरो-हरम हों या कि बयाबाँ, हरिक जगह। 
शेखी बघारती हुई अय्याशियाँ मिलीं।। 
 
उड़ते हुये परिन्द - हमारी 'व्यथा' न पूछ। 
दरकार शाहराह थी - पगडण्डियाँ मिलीं।। 

क़िस्मत को ये मिला तो मशक़्क़त को वो मिला। 
इस को मिला ख़ज़ाना उसे चाभियाँ मिलीं।। 

जब-जब किया है वक़्त से हमने मुक़ाबला। 
उस को बुलन्दियाँ हमें गहराइयाँ मिलीं।। 

रहमत का राग अपनी जगह ठीक है मगर। 
जिसने पसारा हाथ उसे रोटियाँ मिलीं।। 

कितने ही नौज़वान ज़मींदोज़ हो गये। 
वो तन हैं ख़ुशनसीब जिसे झुर्रियाँ मिलीं।। 

हमने दिलेफ़क़ीर टटोला तो क्या बताएँ। 
ख़ामोशियों से तंग परेशानियाँ मिलीं।। 

तुम को बता रहा हूँ किसी को बताना मत। 
ख़ुद को किया ख़राब तभी मस्तियाँ मिलीं।। 

सौ-फ़ीसदी मिठास किसी में नहीं 'नवीन'। 
जितनी ज़बाँ हैं सब में कई गालियाँ मिलीं।। 

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

बहरे मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ़ महजूफ
मफ़ऊलु फाएलातु मुफ़ाईलु फाएलुन 
221 2121 1221 212 

8 टिप्‍पणियां:

  1. कितने ही नौज़वान ज़मींदोज़ हो गये
    वो तन है ख़ुशनसीब जिसे झुर्रियाँ मिलीं
    बहुत सुंदर ग़ज़ल ....हर शेर के गहन भाव ...!!
    शुभकामनायें .

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  2. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 10/08/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

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  3. वाह, वाह, वाह !
    बहुत खूब, बहुत ही सुन्दर नविन जी :-)

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  4. वाह! एक से एक उम्दा !
    उड़ते हुये परिन्द - हमारी 'व्यथा' न पूछ
    दरकार शाहराह थी - पगडण्डियाँ मिलीं
    वाह!

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  5. लाजबाब, पर इस उम्र में आप जैसी उर्दू कहाँ से सीखें।

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  6. सूरज ने चन्द्रमा को उजालों से भर दिया
    हासिल ये है कि रात को परछाइयाँ मिलीं ..

    सुभान अल्ला ... नवीन भई अब ये न पूछना एक शेर ही क्यों कोट कर रहा हूं ... इसलिए की कहीं पूरी गज़ल न उतर जाए दुबारा से ...

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  7. सभी शेर में बहुत गहरे भाव हैं. उम्दा शेर के लिए दाद स्वीकारें.

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