रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुस, चून॥
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
साँचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥
गरज आपनी आप सों रहिमन कही न जाय।
जैसे कुल की कुल वधू पर घर जात लजाय॥
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन बिस ब्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥
जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जाँहि।
गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नाँहि॥
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे ना दबें, जानत सकल जहान॥
टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥
रहीम खानखाना के दोहों पर विशेष दृष्टि पड़ी है तो यह उचित भी है.
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