किसी तिनके से आलम सर हुआ क्या
मेरे दिल में ठहरना चाहते हो
ज़रा फिर से
कहो – तुमने कहा क्या
डरा-धमका के बदलोगे ज़माना
अमाँ! तुमने धतूरा खा लिया क्या
उन्हें लगता है बाकी सब ग़लत हैं
वो खेमा साम्प्रदायिक हो गया क्या
बदल सकते नहीं पल में अनासिर
हज़ारों साल
मैं सोता रहा क्या
अँधेरे यूँ ही तो घिरते नहीं हैं
उजालों ने
किनारा कर लिया क्या
बड़े उम्दा क़सीदे पढ़ रहे हो
वजीफ़े में
इजाफ़ा हो गया क्या
क़दम रहते नहीं उस के ज़मीं पर
वो पैदा भी हुआ उड़ता हुआ क्या
झगड़ता है कोई यूँ अजनबी से
उसे मुझ में कोई अपना दिखा क्या
तुम्हारे वासते कुछ भी किया नईं
तुम्हारे वासते करना था क्या-क्या
फ़लक पर थोड़ा सा हक़ है मेरा भी
परिंदों को ही उड़ते देखता क्या
नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे हजज मुसद्दस महजूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122
बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंलाजवाब गज़ल...
सादर
अनु
क़दम रहते नहीं उस के ज़मीं पर
जवाब देंहटाएंवो पैदा भी हुआ उड़ता हुआ क्या
बहुत खूब..
अँधेरे यूँ ही तो घिरते नहीं हैं
जवाब देंहटाएंउजालों ने किनारा कर लिया क्या
बहुत उम्दा गज़ल
बदल सकते नहीं पल में अनासिर
जवाब देंहटाएंहज़ारों साल मैं सोता रहा क्या... behad badhiya
वाह ! बहुत खूब, बहुत सुन्दर :-)
जवाब देंहटाएंशानदार गजल
जवाब देंहटाएंसादर
फ़लक पर थोड़ा सा हक़ है मेरा भी
जवाब देंहटाएंपरिंदों को ही उड़ते देखता क्या
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंशानदार गजल....
:-)
आज 09/09/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
sundar ,gahare bhaav , achchhee rachanaa
जवाब देंहटाएंफ़लक पर थोड़ा सा हक़ है मेरा भी
जवाब देंहटाएंपरिंदों को ही उड़ते देखता क्या
बहुत खूब !!